लघुकथा विमर्श–संकलन -सम्पादक :रामकुमार घोटड़ अयन प्रकाशन,1/20,महरौली, नई दिल्ली 110030, मूल्य(सजिल्द): 250/- ,पृष्ठ :192
[ इस पुस्तक में लघुकथा के चर्चित 23 हस्ताक्षरों के साक्षात्कार हैं । लघुकथा के विकास और स्वरूप को जानने के लिए अध्येताओं और शोधार्थियों के लिए महत्त्वपूर्ण पुस्तक है । ]
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साहित्य की बात हो तो चंडीगढ़ के साथ इसके संलग्न क्षेत्र मोहाली (पंजाब ) और पंचकुला (हरियाणा) भी इसमें शामिल हो जाते हैं. ट्राईसिटी के नाम से मशहूर इस क्षेत्र के साहित्यकार इन satellite शहरों में लगातार साहित्यिक गोष्ठियाँ करते रहते हैं, पर पंचकुला में आयोजित साहित्य संगम संस्था की यह गोष्टी इस मायने में में यादगार रहेगी कि विगत लगभग पच्चीस वर्षों में पहली बार लघुकथा के शिल्प और संरचना पर एक सार्थक गोष्ठी यह गोष्ठी सेक्टर-21 पंचकुला (हरियाणा) में 6 दिसम्बर 2009 को डॉ.जगमोहन चोपड़ा के आवास पर हुई । इसकी अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रमेश कुंतल मेघ ने की. वे भी इस गोष्ठी से इतने अभिभूत दिखे की यहाँ पढ़ी गयी लघुकथाओं को सुनकर अपने आप को यह कहने से नहीं रोक पाए कि लघुकथा सचमुच क्या होती है, इसके बारे में आज पहली बार ज्ञात हुआ। लघुकथा विधा को संजीदगी से लेने वाले करनाल (हरियाणा) से आए डॉ.अशोक भाटिया, बंगा (पंजाब ) के डॉ.सुरेन्द्र मंथन, जीरकपुर (पंजाब ) के प्रो.फूल चंद मानव, कुरुक्षेत्र (हरियाणा) के रामकुमार आत्रेय, चंडीगढ़ के रतन चंद 'रत्नेश' और घरौंदा (हरियाणा) के राधेश्याम भारतीय की लघुकथाओं को ध्यान से सुनने के बाद उन्होंने कहा, "आज मुझे पहली बार लघुकथा का सही अर्थ जानने का अवसर मिला है वर्ना मैं भी इसे अलग से कोई विधा स्वीकार नहीं करता था. यहाँ पढ़ी गयी लघुकथाओं से मैंने यह निष्कर्ष निकला की लघुकथा unistructure होती है.और इसमें inquiry न उपजे तो समझो वह लघुकथा नहीं है और उसे कहानी के खाते में डाल देना चाहिए।
हमेशा से लघुकथा के विरोधी रहे डॉ.जगमोहन चोपड़ा ने इस गोष्ठी में यह स्पष्ट कर दिया की वे लघुकथा के विरोधी इसलिए हुए कि इसके नाम पर उन्हें अधिकतर चुटकुले ही पढने को मिले. वे मंटो की लघुकथों से अभिभूत दिखे और माना की लघुकथाएं दरअसल वैसी ही होनी चाहिए।
डॉ.शशिप्रभा, चन्द्र भार्गव, विष्णु सक्सेना आदि ने भी लघुकथाएँ पदीं. यहाँ पढ़ी गयी लघुकथाओं पर वरिष्ठ कथाकार डॉ.इंदु बाली, डॉ.नीरू, डॉ.अनिल गुगनानी ने भी अपने विचार व्यक्त किये और सबने एक सुर में इस विधा के अस्तित्व को स्वीकारा.इसके बाद लघुकथा-मर्मज्ञ डॉ.अशोक भाटिया ने लघुकथा के शिल्प-संरचना और इस क्षेत्र की भागीदारी पर अपना परचा पढ़ा. चर्चा में योगेश्वर कौर, डॉ.ज्ञान चन्द शर्मा, मोहिन्द्र राठौर आदि ने भाग लिया.
इस अवसर पर लघुकथाओं पर लिखी गयी पुस्तकें भी प्रदर्शित की गयीं।
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प्रस्तुति:-रत्न चन्द रत्नेश, चंडीगढ़
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