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हरिगन्धा (दिसम्बर ,2009) लघुकथा विशेषांक : मुख्य सम्पादक डॉ मुक्ता , सम्पादक -जसराम तँवर ;हरियाणा साहित्य अकादमी पंचकूला (हरियाणा)


‘हरिगन्धा’ का दिसम्बर अंक [लघुकथा विशेषांक ] मिला । जिसमें पढ़ने की ललक है , समय उसके लिए कोई कारक नहीं है ।‘लघुकथा की रचना प्रक्रिया’ डॉ रूप देवगुण जी का लेख अच्छा है; लेकिन कहीं-कहीं विषयान्तर होना खटकता है । अपनी रचनाओं पर पाठकों या सम्पादकों की प्रशंसा का समावेश भी लेख को कमज़ोर करता है ।डॉ सुभाष रस्तोगी का लेख’ हरियाणा के लघुकथाकार’ महत्त्वपूर्ण और पर्याप्त जानकारी लिये हुए है ।इनका अध्यवसाय सराहनीय है । डॉ अशोक भाटिया ने 1970 तक की लघुकथा की ऐतिहासिक पड़ताल की है ।‘लघुकथा का शैल्पिक वैभव’-(डॉ शमीम शर्मा” में लघुकथा के शिल्प की व्यापक जानकारी दी गई है ।
बलराम अग्रवाल (अपने ही मन से जूझते हुए ),प्रताप सिंह सोढी(दर्द के रिश्ते ), राम कुमार आत्रेय(पिताजी सीरियस हैं) ,रत्न कुमार साँभरिया(पहचान), सुरेन्द्र गुप्त(फूल हर सिंगार के ),प्रदीप शर्मा ‘स्नेही’( अवार्ड) ,डॉ राजेन्द्र साहिल(औपचारिक अध्यात्म)और सुकेश साहनी (गुठलियाँ) इस अंक की महत्त्वपूर्ण लघुकथाएँ हैं। पूरा अंक अपने आप में दस्तावेज़ी अंक बन गया है । इस दिशा में और भी बहुत कुछ किया जा सकता है । राम यतन यादव की लघुकथा ‘रिपोर्टर’पढ़ने पर श्याम सुन्दर अग्रवाल की 2008 केकथादेश में प्रकाशित लघुकथा’उत्सव’ की याद दिलाती है । लेखकों को इस तरह के लेखन से बचना चाहिए ।


सृज्यमान (जुलाई-दिसम्बर 2009) लघुकथा विशेषांक: मुख्य सम्पादक -डॉ राजेन्द्र साहिल; आगमित साहित्य -सभा , लुधियाना ।


इस अंक में 78 लघुकथाकारों की 100 लघुकथाएँ , आलेख एक साक्षात्कार समाहित हैं । इस अंक में पर्याप्त अच्छी लघुकथाओं की उपस्थिति ध्यान आकर्षित करती है ।संघर्ष(श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ ),अनमोल ख़ज़ाना (श्याम सुन्दर अग्रवाल),फ़िज़ूल ख़र्च (हरभजन सिंह खेमकरणी)समझदारी (रघबीर सिंह महिमी),बर्थ डे गिफ़्ट(सतीश दुबे) ,नब्ज़ (सुकेश साहनी) ,स्वाभिमान (नरेन्द्र कौर छाबड़ा), पहला झूठ (पूरन मुद्गल),संस्कृति(कमलेश भारतीय), बिल्कुल माँ जैसी(बिल्कुल माँ जैसी …), भगवान का शुक्र है (प्रत्यूष गुलेरी), जंगलीपन( राजेन्द्र परदेसी),माँ (रेखा सूरी) ,आलोक स्तम्भ(मुक्ता अरोड़ा),चारा ( डॉ राजेन्द्र साहिल) लघुकथाएँ अपनी तेजस्विता का बोध कराती हैं। अहिन्दी प्रान्त से निकलनेवाली इस पत्रिका का विशेषांक अपनी गुणवत्ता के कारण एक महत्त्वपूर्ण संग्रह बन गया है । इसी अंक में रामयतन प्रसाद की लघुकथा बरसों पहले छपी लघुकथा -धुँए की लकीर (सुकेश साहनी) की याद दिलाती है । इस तरह का लेखन लघुकथा लेखकों के लिए शुभ संकेत नहीं है ।
डॉ श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ ने ‘ ‘पंजाबी मिन्नी कहानी :चार दशकों का सफ़र’ में पंजाबी लगुकथा के विकास और शिल्प पर विस्तार से चर्चा की है । पंजाब के बहुत से लेखक हिन्दी में भी समानान्तर रूप से उत्कृष्ट लघुकथाएँ लिख रहे हैं ; जिनमें श्याम सुन्दर अग्रवाल, डॉ श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ प्रमुख हैं। हिन्दी लघुकथाओं का लेखा-जोखा प्रस्तुत करने वाले इन लेखकों का ज़िक्र करना प्राय: भूल जाते हैं या पंजाब का जिक्र करने से बचते हैं ।
शिवनारायण का साक्षात्कार पूर्वाग्रह से युक्त है । दी गई अधूरी और पक्षपातपूर्ण जानकारी पाठकों को गुमराह करने वाली है । इससे न तो लघुकथा को लाभ होगा और न इस तरह की बयानबाजी करने वालों को ।


संरचना -2(वार्षिकी -2009 ): सम्पादक -डॉ कमल चोपड़ा 1600/114, त्रिनगर ,दिल्ली-110035


संरचना के इस दूसरे वार्षिक विशेषांक में 8 लेख और 83 लेखकों की लघुकथाएँ संगृहीत हैं ।इस अंक में डर (अमरीक सिंह दीप),काला आखर (आकांक्षा यादव),जल तरंग (ज्योति जैन) पंकज चौधरी (चटसार), रजाई (पुष्पा जमुआर),कुण्डली, गिरावट (बलराम अग्रवाल) , रिटायर्ड (मधु सन्धु), ये कैसी डगर है(मार्टिन जॉन)जीने की राह (रत्नकुमार साँभरिया )उसका पता, खच्चर (रवीन्द्र बतरा), खून (राघवेन्द्र कुमार शुक्ला), बिन शीशों का चश्मा ( राम कुमार आत्रेय), छत्रछाया ( राम कुमार घोटड़), जीवन -सुख(विज्ञान भूषण),जंगली(शेफाली पाण्डे), दीवारें(श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’), माँ का कमरा (श्याम सुन्दर अग्रवाल), सत्ता परिवर्तन (सतीश्राज पुष्करणा)। प्रवंचना (सीताराम गुप्त), पिंजरा (सुरेश शर्मा),दाहिना हाथ (सुकेश साहनी), साँझा दर्द( सुदर्शन रत्नाकर), गुमसुम (सुधा भार्गव), कोठे की औलाद (सुभाष नीरव),आँखों के अन्धे (सूर्यकान्त नागर)बीमार (सुष्मिता पाठक) पाठकों के मर्म को स्पर्श करने का सामर्थ्य रखती हैं। बलराम अग्रवाल ,नागेन्द्र प्रसाद सिंह, कृष्णानन्द कृष्ण के लेख महत्त्वपूर्ण हैं ।
कमल चोपड़ा का यह प्रयास अच्छी लघुकथाओं को पाठकों तक पहुँचाने का सराहनीय प्रयास है ।
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