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‘’आज के हाइटेक युग में ऐसी ही साहित्यिक विधाओं की प्रासंगिता है;जो कम से कम शब्दों में क्षिप्रता के साथ अपने कथ्य को प्रभावशाली ढंग से अभिव्यक्त कर सकें और लघुकथा इस कार्य को सफलता पूर्वक अंजाम दे रही है।’’ ये शब्द थे बी.एन. मण्डल विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ. अमरनाथ सिन्हा के ;जिन्हें वे बिहार राज्य माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन का उदघाट्न करते हुए अभिव्यक्त कर रहे थे।इस समारोह की अध्यक्षता बिहार–राष्ट्रभाषा परिषद की उपनिदेशक तथा परिषद् पत्रिका की सम्पादक डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र ने की। अपने उद्बोधन में उन्होंने कहा कि यह बहुत बड़ी बात है कि कोई संस्था लघुकथा विधा के विकास में निर्बाध रूप से चौबीस सम्मेलन करके ईमानदारी पूर्वक अपना कर्त्तव्य निर्वाह कर सके। इन चौबीस सम्मेलनों में इस संस्था ने लघुकथा के प्राय: हर पक्ष पर खुला विचार–विमर्श कर इस विधा को सार्थक दिशा दी है। संस्था के संयोजक प्रख्यात कथाकार एवं आलोचक डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने अपने स्वागत–भाषण में कहा कि लघुकथा किसी कथानक का संक्षिप्तीकरण नहीं है, अपितु यह अपने आप में एक पूर्ण रचना है जो पूरी क्षिप्रता के साथ स्थूल से सूक्ष्म तक पहुँचकर अपना औचित्य बहुत ही सलीके से प्रस्तुत करती है। अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि सन् 1988 में जब लघुकथा–सम्मेलनों का सिलसिला शुरू किया था तो हमने पच्चीस सम्मेलन करने का निर्णय लिया था। अगला वर्ष यानी 2012 में आयोजित सम्मेलन पच्चीसवाँ होगा, जिसे द्विदिवसीय रूप में पटना में ही आयोजित किया जाएगा।

प्रख्यात आलोचक डॉ. विजेन्द्र नारायण सिंह ने कहा कि लघुकथा वर्तमान समय की माँग है। यह विधा न केवल अपने समय के सच को कम शब्दों में अभिव्यक्त करती है; अपितु मिसाइलों की तरह अपने लक्ष्य को पूरी ताकत से बेधते हुए पाठकों के हृदय में स्थान बनाती है। मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति तथा व्याकरणाचार्य डॉ. रामदेव प्रसाद ने कहा कि लघुकथा वेदपुराणों से चली जरूर ;किन्तु समय के अनुसार इसने अपने आप में सार्थक बदलाव भी किए जो आज प्रत्यक्ष है। ‘आरोह–अवरोह’ के संपादक डॉ0 शंकर प्रसाद ने कहा कि युग के अनुसार अपने समय की माँग को ध्यान में रखकर यह विधा पूरी जिम्मेदारी के साथ अपनी विकास–यात्रा तय करती चली जा रही है। बिहार के प्रथम समाचार–पत्र ‘बिहार–बन्धु’ में 1874 से ही लघुकथाएँ बजाप्ता ‘ लघुकथा’ नाम से ही स्थान पाती रही हैं। मुंशी हसन अली की लघुकथाओं को उन अंकों में देखा जा सकता है।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री राम नरेश सिंह ने कहा कि लघुकथा सम्मेलनों की भूमिका महवपूर्ण एवं सफल रही है, यहाँ डॉ. सतीशराज पुष्करणा जैसे समर्पित व्यक्तियों के श्रम का सुफल है कि आज पटना में विगत चौबीस वर्षों से देश के कोने–कोने से ख्यातिलब्ध लघुकथा–लेखक एवं समीक्षक बड़ी संख्या में आकर अपने बहुमूल्य विचारों के द्वारा इसे ऊर्जा प्रदान करते रहे हैं, बरेली से पधारे सुकेश साहनी, कुरुक्षेत्र से रामकुमार आत्रेय, मुंबई से पधारीं उज्ज्वला केलकर, नागपुर से उषा अग्रवाल एवं डॉ.मिथिलेश अवस्थी, जबलपुर से सनातन कुमार बाजपेयी एवं मोहन लोधिया, बोकारो से डॉ0 अब्ज़ इत्यादि की उपस्थिति इसके स्पष्ट प्रमाण है। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के संरक्षक सदस्य डॉ. रमेश चन्द्र पाण्डेय ने कहा कि इस सम्मेलन द्वारा लघुकथा ने त्वरा से विकास किया है।

कार्यक्रम का शुभ आरंभ कलानेत्री पल्लवी विश्वास सुमधुर कण्ठ से निकले मंगलाचरण से हुआ। इसके बाद गोपाल सिंह ने नेपाली की भतीजी एवं लोकप्रिय गायिका सविता सिंह नेपाली ने कविवर नेपाली के चर्चित गीत ‘हम बाबुल की चिड़ियाँ रे’ का गायन प्रस्तुत कर श्रोताओं को भावुकता के शिखर तक पहुँचा दिया। इसके बाद राजकुमार प्रेमी ने स्वररचित देश–गान प्रस्तुत किया।
अतिथियों के उद्बोधन के पश्चात् सम्मान–समारोह आरंभ हुआ, जिसमें सप्रथम विक्रम सोनी को डॉ. परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया, इसके पश्चात देश के कोने–कोने से पहुँची अन्य प्रतिभाओं को सम्मानित किया गया। भारत से बाहर हाइकु के क्षेत्र में विशेष कार्य करने के लिए डॉ भावना कुँअर और डॉ हरदीप सन्धु को ‘ हाइकु -रत्न सम्मान’ प्रदान किया ।लोकार्पण समारोह में ‘टेढ़े–मेढ़े रास्ते’ (पुष्पा जमुआर) , तीसरी यात्रा (वीरेन्द्र कुमार भारद्वाज), सच बोलते शब्द (राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु), हाथी के दांत (ब्रजनंदन वर्मा), जेठ की धूप (रामचन्द्र यादव), चीखती लपटें (सनातन कुमार बाजपेयी), खामोशियों की झील में (आलोक भारतीय), डॉ परमेश्वर गोयल लघुकथा शिखर सम्मान का इतिहास (सतीशराज पुष्करणा) इत्यादि अनेक पुस्तकों का लोकार्पण हुआ । इस अवसर पर नीलम पुष्करणा द्वारा पुष्करणा ट्रेडर्स की ओर से पुस्तक प्रदर्शनी एवं सिद्धेश्वर द्वारा अपनी बनाई कविता एवं लघुकथा पोस्टर प्रदर्शनी लगाई गई,जिसे उपस्थिति कथाकारों ने देखा, परखा एवं भूरि–भूरि प्रशंसा की।

दूसरे सत्र विचार विमर्श में डॉ. अनीता राकेश (छपरा),उज्ज्वला केलकर (मुम्बई), डॉ. सिद्धेश्वर कश्यप (मधेपुरा)और जीतेन कुमार वर्मा (वर्धमान) द्वारा लघुकथा विषयक आलेख पढ़े गए तथा उन पर सुकेश साहनी, नचिकेता, डॉ. रामदेव प्रसाद, डॉ. यशोधरा राठौर इत्यादि ने अपने सार्थक विचार रखते हुए आलेखों की प्रशंसा की।
तीसर सत्र में लघुकथा पाठ हुआ, जिसमें तेईस कथाकारों ने लघुकथा पाठ किया। पठित लघुकथा पर डॉ. मिथिलेश अवस्थी, नृपेन्द्र नाथ गुप्त, नचिकेता, अनीता राकेश इत्यादि ने सार्थक टिप्पणी करते हुए पठित लघुकथाओं पर न केवल संतोष जताया अपितु प्रशंसा व्यक्त की कि इस विधा हेतु यह शुभ संकेत है कि इस प्रकार की श्रेष्ठ लघुकथाएँ आज प्रकाश में आ रही है। जो लघुकथा के उज्जवल भविष्य की ओर संकेत करती है।
सम्मेलन के प्रथम तीन सत्रों का कुशल संचालन डॉ. सतीशराज पुष्करणा ने किया तथा कवि सम्मेलन का संचालन कविवर राजकुमार प्रेमी ने किया। प्रचार मंत्री वीरेन्द्र भारद्वाज के धन्यवाद ज्ञापन के साथ चौबीसवाँ अखिल भारतीय सम्मेलन सफलतापूर्वक संपन्न हुआ।
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