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जनता गुफ़ाएँ

वन में पीतलोम सिंह का राज्य था। उसने एक दिन चीफ साहब यानी दीर्घोदर चूहे से कहा ‘‘चीफ साहब, वन की आम जनता को वृक्षों, झाडि़यों, झुरमुटों कगारों तथा घाटियों में रैनबसेरा करते देखकर विदेशी यात्री चमगोइयाँ करते रहते हैं। देश की, विशेषकर मेरी, छवि धूमिल होती है। इसलिए आम जनता के लिए कुछ–न–कुछ आवास व्यवस्था कर दो।’’
‘‘जो आज्ञा, महाराजाधिराज। विचार परम पुनीत और उत्तम है।’’ चीफ साहब ने साष्टांग दण्डवत् करते हुए कहा।
राजा पीतलोम का ओहदा सि‍र्फ़ महाराज का था, पर ‘चीफ साहब’ ने उसे महाराजाधिराज से सम्बोधित कर एक सीढ़ी ऊपर पहुँचा दिया था। उसने अत्यंत आह्लादित होकर अपना दायाँ पंजा उठाया और ‘चीफ साहब’ को सुचारु रूप से आशीर्वादित किया।
चीफ चूहे दीर्घोदर ने अपनी चूहा–मण्डली की सहायता से एक पहाड़ी को कुतर कर जनता गुफाओं का निर्माण कर दिया। कुछ समय बाद पशुओंका प्रतिनिधि मण्डल राजा पीतलोम से मिलने आया, शिकायत की, ‘‘महाराज, ‘चीफ साहब’ ने कठोर और पथरीली चट्टान काटने का रेट चार्ज किया है जबकि जनता गुफाएँ भुरभुरी और कमजोर चट्टान में बनाई गई हैं। गुफाद्वार इतना छोटा है कि लेटकर जाना पड़ता है। रोशनदान इतना संकरा है कि उससे रोशनी नहीं आती। निचली फर्श ऊबड़–खाबड़ है तथा छत इतनी नीची है कि खड़ा नहीं हुआ जा सकता इस प्रकार जनता गुफाओं के निर्माण में व्यापक भ्रष्टाचार हुआ है।’’
राजा ने चीफ चूहे से स्पष्टीकरण माँगा। उसने विलापयुक्त आक्रोश के साथ उत्तर दिया, ‘‘चक्रवर्तिन, महामण्डलेश्वर, इन नसुड्ढे और नामुरादी पशुओं की तो आदत पड़ गई है। शिकायत करने की। खुले आकाश के नीचे पड़े रहते थे, तो भी शिकायत थी। सुन्दर,मजबूत और महलनुमा गुफाए बन गईं, तो भी शिकायत है।’’
पावस ऋतु आई। जनता गुफाएँ भरभराकर ढह गई। अनेकानेक पशु दबकर मर गए और अनेकानेक घायल हुए। राजा ने इस भीषण दुर्घटना के संबंध में चीफ चूहे से स्पष्टीरण माँगा। उसने उत्तर दिया ‘‘चतु:समुद्राधिपति, गुफाएँ तो लौह भवन से भी मजबूत बनाई थीं, पर इन चपरकनाती पशुओं को प्रयोग करना नहीं आया। ये गुफा की छत पर धमाचौकड़ी करते थे। ये गुफा की दीवारों से शरीर खुजाते थे, उन पर सींगे चलाते थे। दीवारों पर कीले गाड़ना, छेद करना आम बात थी। अब इन चुगदों और उजबकों की गुफा में भूचाल नहीं आएगा तो क्या महाराजाधिराज की गुफा में आएगा? गुफा में रहने के लिए शऊर चाहिए।’’
राजा पीतालोम ने चीफ दीर्घोदर को आरोप मुक्त कर दिया।

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