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मुर्गे
लोग–बाग बड़े मजे से मुर्गों का तमाशा देख रहे हैं।
दोनों मुर्गे कितनी देर से लगातार लड़ रहे हैं। चंदू दोनों बाँहों को आसमान में उछाल–उछालकर बार–बार अपने मुर्गे को प्रोत्साहित करता है–‘‘ओ....हे ओ।’’
लोग उसकी इतनी तेज डरावनी–सी लगनेवाली आवाज से दो–एक पल के लिए चौंकते हैं, मगर फिर से अपनी दृष्टि मैदान में लड़ते हुए मुर्गो पर बिछा देते हैं।
चंदू का मुर्गा आपे से बाहर होकर कांडे के मुर्गे पर पिल ही तो पड़ा। कांडे का मुर्गा बचाव करता हुआ पीछे हटने लगा। तब चंदू ने स्वयं आगे बढ़कर ‘हट भी, हट भी, अबे हट पे’ कहकर कांडे के मुर्गे को भगा दिया। अपने मुर्गे को गोद में उठाकर ‘पुच्च–पुच्च करते हुए अपनी जेब से पिस्ता निकालकर खिलाने लगा, ‘‘खा–खा बेटे, शाबाश....’’ शब्द चंदू के मुँह में ही थे कि सहसा कांडे ने उसकी पीठ पर एक जबर्दस्त घूँसा दे जमाया, ‘‘साले, इस तरह जीतते हैं? अभी मेरा मुर्गा दुबारा वार करता....बेईमान मादर...।’’
कांडे के इस अप्रत्याशित वार से सजग होने में चंदू को चंद सेकेंड लगे। मस्ती और जीत के उल्लास में से, उसने अपने को जैसे झटका–सा देकर बाहर निकाला। कांडे की तरफ सख्त निगाहों से देखा और ललकारा, ‘‘तो तू ही आजमाकर देख ले....खाक वार करता हिजड़े का मुर्गा।’’ कहते–कहते उसने अपने मु‍र्गे को जमीन पर छोड़ दिया।
कांडे ने भी बाँहें चढ़ा लीं।
दो मुर्गो के अलावा और भी बहुत–से मु‍र्गे थे, जो अब दो नए मुर्गो के लड़ने का तमाशा देख रहे थे।

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