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लघुकथाएँ - देशान्तर - खलील जिब्रान





दर्प–विसर्जन- खलील जिब्रान (अनुवाद :सुकेश साहनी)



राज्याभिषेक के बाद बाइब्लॅस का राजा अपने उस सोने के कमरे में चला गया जिसे तीन एकान्तवासी जादूगरों ने उसके लिए बनाया था। उसने अपना मुकुट और शाही परिधान उतार दिए और कमरे के बीच खड़ा होकर अपने विषय में सोचने लगा–अब मैं बाइब्लॅस का शक्तिशाली शासक बन गया हूँ।
एकाएक उसने देखा, माँ द्वारा दिए गए चाँदी से चमकते शीशे से एक नंगा आदमी बाहर निकल रहा है।
राजा चौंक पड़ा, उसने उस आदमी से चिल्लाकर पूछा, ‘‘तुम क्या चाहते हो?’’
नंगे आदमी ने उत्तर दिया, ‘‘कुछ भी नहीं! पर उन लोगों ने तुम्हें मुकुट क्यों पहनाया है?’’
राजा ने कहा, ‘‘क्योंकि मैं पूरे देश में सबसे महान हूँ।’’
तब नंगे आदमी ने कहा, ‘‘अगर तुम इससे भी महान होते तो भी राजा बनने लायक नहीं थे।’’
तब राजा ने कहा, ‘‘मैं देश का सबसे बुद्धिमान आदमी हूँ; इसलिए उन्होंने मुझे मुकुट पहनाया है।’’
नंगे आदमी ने कहा, ‘‘अगर तुम इससे भी अधिक बुद्धिमान होते तो भी राजा चुने जाने लायक नहीं थे।’’
तब राजा फर्श पर गिर पड़ा और फूट–फूटकर रोने लगा।
नंगे आदमी ने उस झुके हुए आदमी की ओर देखा।
फिर उसने मुकुट उठाया और उसे दोबारा राजा के झुके हुए सिर पर नर्मी से रख दिया और राजा को प्यार भरी नजरों  से एकटक देखता हुआ वह दर्पण में समा गया।
राजा चौंककर उठा। उसने सीधे दर्पण की ओर देखा। वहाँ अब वह अपने आपको मुकुट पहने हुए देख रहा था।
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