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धन्यवाद

वह जंगल से गुजर रहा था कि सामने शेर आ गया। डर के मारे उसकी आँखें बंद हो गईं। कुछ क्षण बाद जब उसने पलकें खोलीं तो देखा कि शेर भी पंजे जोड़े और आँखें मूँदे कुछ बुदबुदा रहा है।
वह खुश होकर बोला, ‘‘भाई शेर, मुझे पता चल गया है कि तुम ईश्वर को मानते हो। सचमुच तुम भले हो, मैं तो यों ही डर गया था।’’
‘‘हाँ,फादर। मैं आज के भोजन के लिए ईश्वर को धन्यवाद दे रहा था।’’ शेर ने कहा और पंजे खोल दिए।
अनुवाद:सुकेश साहनी

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