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जिन जियांग : दो सगे भाई कौए
दो कौए सगे भाई थे, एक ही घोंसले में सुखपूर्वक रहते थे। एक दिन उनके पास घोंसले में अचानक एक छेद हो गया।
बड़े कौए ने सोचा, मेरा छोटा भाई इसे ठीक करेगा। मैं बड़ा हूँ। मरम्मत करने जैसा मामूली काम क्यों करूँ?
छोटे कौए ने सोचा, इस छेद को तो मेरे बड़े भाई को ठीक करना चाहिए इस घर को, घोंसले को, ठीकठाक रखने की आखिर उसी की जिम्मेदारी है।
नतीजतन छेद की मरम्मत न होने के कारण वह छेद निरंतर बड़ा होता गया,बढ़ता गया। बड़े कौए नें फिर सोचा,अब तो निश्चित ही मेरे छोटे भाई को इस छेद की मरम्मत कर काम करना ही चाहिए। आखिर इस नष्ट होते जा रहे घोंसले में वह जिंदा कैसे रहेगा?
छोटे कौए ने सोचा,अब तो हद हो गई। बड़े भाई साहब को क्या हो गया है?उन्हें क्या यह छेद दिखाई नहीं दे रहा? अब भी उन्होंने इसकी मरम्मत करने की तरफ ध्यान नहीं दिया तो सब कुछ खत्म हो जाएगा। आखिर वे इस नष्ट हो रहे घोंसले में रहेंगे कैसे?
जाड़ा शुरू हो गया। उत्तरी पछुआ हवाएँ तेजी से चलने लगी बर्फ़ पड़ने लगी। उस छीदते और बिखरते जा रहे नष्ट प्राय घोंसले में दोनों भाई एक–दूसरे से ठिठुरते हुए सटने लगे। लेकिन सर्दी के मारे उनका बुरा हाल हो उठा। थरथर काँपते हुए दोनों बोले, बहुत सर्दी है। बहुत ही भयानक और असहनीय सर्दी।
बड़े कौए ने मन ही मन सोचा....सर्दी का एहसास छोटे कौए को करा दिया है। उसे अब सोचना चाहिए,आखिर यह भंयकर सर्दी वह कैसे सहेगा? उसे तो अब इस घोंसले की मरम्मत कर ही लेनी चाहिए।
छोटे कौए ने सोचा, इतनी भंयकर सर्दी को, इस टूटे–छीदे घोंसले में आखिर मेरा बड़ा भाई सह कैसे रहा है? उसने अपना कर्तव्यबोध क्यों नहीं जागता? वह इस घोंसले की मरम्मत आखिर क्यों नहीं कर रहा? आखिर वह इतनी सर्दी में अब जिंदा कैसे रहेगा?
दोनों सोचते रहे,पर दोनों में से किसी ने भी अपने घोंसले की मरम्मत करके उसे ठीक नहीं किया। सर्दी के कारण दोनों थरथर काँपते रहे, ठिठुरते हुए दोनों एक–दूसरे से सटते और लिपटते रहे।
हवा तेज होती गई। आखिर हवा आँधी और तूफान में ठन गयी। बर्फ़ीले तूफान ने सारे वातावरण को घेर लिया।
जर्जर हो गया घोंसला उस बर्फ़ीले तूफान में जमीन पर आ गिरा। उसका तिनका–तिनका तरफ पर बिखर गया। दोने सगे भाई कौए बर्फ़ीली जमीन पर गिर कर पड़ती हुई बर्फ़ में जम कर मर गए।
 
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