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निद्राजीवी
[ अनुवादक : सुकेश साहनी ]
मेरे गांव में एक औरत और उसकी बेटी रहते थे, जिनको नींद में चलने की बीमारी थी। एक शांत रात में, जब बाग में घना कोहरा छाया हुआ था, नींद में चलते हुए माँ बेटी का आमना–सामना हो गया।
माँ उसकी ओर देखकर बोली, ‘‘तू? मेरी दुश्मन,मेरी जवानी तुझे पालने–पोसने में ही बर्बाद हो गई। तूने बेल बनकर मेरी उमंगों के वृक्ष को ही सुखा डाला। काश! मैंने तुझे जन्मते ही मार दिया होता।’’
इस पर बेटी ने कहा, ‘‘ऐ स्वार्थी बुढ़िया! तू मेरे सुखों के रास्ते के बीच दीवार की तरह खड़ी है! मेरे जीवन को भी अपने जैसा पतझड़ी बना देना चाहती है! काश तू मर गई होती!’’
तभी मु‍र्गे ने बाग दी और वे दोनों जाग पड़ीं।
माँ ने चकित होकर बेटी से कहा, ‘‘अरे, मेरी प्यारी बेटी, तुम!’’
बेटी ने भी आदर से कहा, ‘‘हाँ, मेरी प्यारी माँ !’’
 
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