मिट्टी के दो पुतले एक मेज पर रखे थे। उनमें एक बड़ा था, दूसरा छोटा मेज के नीचे एक अंगीठी सुलग रही थी। पुतले बदन सेंकते मजे में बैठे थे। इस बीच छोटे पुतले को ध्यान कुछ देर को इधर–उधर हुआ, बड़ा पुतला इसी ताक में था उसने छोटे पुतले को नीचे अंगीठी में धकेल दिय। अब मेज पर उसका निद्र्वद्व अधिकार था। सुबह जय उनका मालिक मेज साफ करने और आग जलाने आया तो, उसने छोटे पुतले को अंगीठी में गिरा पाया। पुतला साबुत था, उसका कुछन हीं बिगड़ा था,‘‘वाह,’’ वह बोला, ‘‘इनको जितना तपाओ, ये उतने ही पक्के और सुंदर हो जाते हे!’’ यह कहकर उसने छोटे पुतले को वापस उसकी जगह रख दिया।
बड़े पुतले ने सोचा, ‘‘अगर मुझे यह पता होता तो, मैं खुद कूद जाता।’’ उसे छोटे पुतले में और भी ईर्ष्या हो गई। उसने मालिक के जाते ही छोटे पुतले को पास रखे पानी के टप में धकेल दिया, और एक बार फिर मेज पर पूरा अधिकार कर लिया।
छोटा पुतला खोखला था और अब आग में तप भी गया था....इसलिए पानी उसका कुछ नहीं बिगड़ा। न तो वह डूबा और न गला। बल्कि भीगकर वह पहले से और भी सुंदर हो गया। बड़े पुतले ने उसे एक ननजर देखा और उसके क्रोध की सीमा नहीं रही। उसने सोचा, ‘‘मैं उसे मालिक के आगे इस तरह इठलाने नहीं दूँगा,’’ और इसके साथ ही, वह उछलकर पानी में जा कूदा।
मालिक को जब दोनों पुतले मेज पर से गायब दिखाई दिए तो, उसने उनकी खोज में इधर–उधर निगाह दौड़ायी, उसे छोटा पुतला पानी में टब में दिखाई दिया, मालिक ने उसे पानी से निकाला और सावधानीसे मेज पर रख दिया। फिर उसने बड़े पुतले को खोजा, लेकिन बड़े पुतले का कोई अता–पता नहीं था। अिाखर बहुत देर बाद उसका ध्यान पानी के टब में तली पर गया। वहां एक मुट्ठी मिट्टी का ढेर पड़ा था।
(रूपांतर:मोजेज माइकेल)