हमारे पिछवाड़े वाले अहाते में एक लड़का अपने छोटे कुत्ते शारिक को जंजीर से बांधे रखता था। किसी हथकड़ी की तरह यह जंजीर उसकी रोयेंदार गर्दन के चारों ओर तब से जकड़ी रहती थी, जब वह पिल्ला था।
एक दिन मैंने मुर्गे की कुछ हडि़्डयाँ लीं, जो उस वक्त भ्ज्ञी कुछ गरम थीं और जिनसे स्वादिष्ट गंध फूट रही थी। एकदम तभी लड़के ने उस बेचारे कुत्ते को खोला था ताकि वह अहाते का चक्कर लगा सके। वहाँ घनी और पर्तदार बफर् थी, जिस पर शारिक हिरन की तरह उछल–कूद मचा रहा था। पहले पिछली टांगों पर और फिर अगली टांगों पर; अहाते के एक कोने तक; आगे और पीछे...अपनी थूथनी बफर् में गड़ाता हुआ।
वह मेरी तरफ भागा। वह बिल्कुल झबरा था। मेरी तरफ उछला। हड्डियों को सूंघा और फिर वापस चला गया, बफर् की ही गोद में।
मुझे तुम्हारी हड्डियों की जरूरत नहीं है, उसने कहा। मुझे केवल मेरी आजादी दे दो....।