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होराशिया क्वीरोजा
सुख,स्वतंत्रता और देश
जंगल की अपनी जिंदगी और कानून हैं। एक दिन एक हादसा हुआ। मधुमक्खियों ने सूचना दी कि एक आदमी जंगल में रहने आया है। जानवरों ने उस आदमी को देखा। लोमड़ी बोली, ‘‘वह हमारा क्या बिगाड़ सकता है? वह तो दो पैरों का जानवर है।’’
‘‘पर उसके पास बंदूक है। वह हमें मार सकता है।’’ गीदड़ बोला, ‘‘तब तो हमें भाग चलना चाहिए।’’ लोमड़ी डरकर बोली। ‘क्यों?...हम भी उसे मार सकते हैं...। इसमें डरने की क्या बात है? हम यहाँ रहेंगे।’’ शेर ने कहा और सभी जानवर उसी तरह जंगल में रहते रहे। आदमी भी एक झोंपड़ी डालकर जंगल में बस गया।
अपनी भनभनाहट के कारण जंगल में मधुमक्खियों को सबसे बुद्धिमान माना जाता है। एक दिन वे आदमी की झोपड़ी में घुस गई। वहां उन्होंने एक किताब देखी। वे फौरन उसे पढ़कर भनभनाती हुई बाहर आई और जंगल के सब जानवरों को जमा किया और बोलीं, ‘‘हमें आदमी के ज्ञान का पूरा सार मालूम हो गया है। आदमी अपना देश बनाकर रहता है....। हमें भी आदमी की तरह स्वतंत्रता का उपयोग करना चाहिए। हम सब पशु–पक्षी भी अपना एक देश बनाएँ।
कमजोर जानवरों को यह बात जँच गई। फ़ौरन सीमा अंकन का काम आरंभ हो गया। शक्तिशाली चींटियों ने अपने मजबूत दांतों से धरती कुरेद–कुरेदकर देशों की अलंघनीय सीमाएँ बना दीं। तब पक्षियों ने कहा, ‘‘हम तो आकाशचारी हैं...। हमारा देश बनाने के लिए वायुमंडल के हिस्से किए जाएँ। वायुमुडल में सीमाएँ बनाने के लिए मकडि़यों को बुलाया गया। उन्होंने जाला तानकर अलग देशों की सीमाएं निर्धारित कर दीं।’’
पर जब से जाला तन गया था, मधुमक्खियाँ फूलों पर न आ पर रही थीं,शेर अपनी सीमा में प्यासा मरा जा रहा था, क्योंकि कोई नदी या झरना इत्तफाक से उसकी सीमा में नहीं था, प्यास के मारे वह दहाड़ भी नहीं सकता था, दूसरे जानवर भी अपनी–अपनी सीमा में परेशान घूम रहे थे,भूख–प्यास से त्रस्त।
तब जाले के एक छेद से कुछ मधु मक्खियाँ जैसे–तैसे भीतर आई और सबसे बोलीं, ‘‘हमने अपने देश तो बना लिए....,पर हम सभी बेहाल हैं...। यातना भुगत रहे हैं...। अच्छा हो कि हम चलकर आदमी से ही पूछें कि हम सुखी क्यों नहीं हो पाते? हमने देश बना लिए, सीमाएँ बना लीं, अपनी–अपनी आबादी को सुरक्षित कर लिया। फिर भी हम दुखी हैं। आदमी ही इसका हल बताएगा।’’
सब इतने दुखी थे कि फौरन सहमत हो गए और वे सब आदमी के पास पहुँचे। मधुमक्खियों ने सबकी तरफ से सवाल पूछा।
आदमी ने सवाल सुना, कुछ देर बाद वह धीर–धीरे बोला, ‘‘जो देश तुमने बनाए हैं, वे पूरी तरह एक इकाई हैं, पर गलती सिर्फ़ यह हुई है कि इकाई और सीमा बनाकर तुमने देश को खो दिया है....अपने सुख और स्वतंत्रता से तुम लोग वंचित हो गए.....सिर्फ़ यही तुम्हारे दुख का कारण है।’’
 
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