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सपना :फ़्रान्स काफ्का
[अनुवाद सुकेश साहनी]

जोसेफ के. स्वप्न देख रहा था....
खुशनुमा दिन था, के.का मन बाहर घूमने को हुआ। अभी वह चन्द कदम ही चला था कि उसने खुद को कब्रिस्तान में पाया। यहां रास्ते बहुत पेंचदार एवं दुर्गम थे, पर ऐसे ही एक रास्ते को उसने पलक झपकते ही इस तरह पार कर लिया जैसे किसी तेज धारा में बहता चला आया हो। उसकी नजर दूर एक ताजा बनी कब्र पर पड़ी, उसके मन में उसके मन में उसके करीब जाने की इच्छा लगी। वह उस टीलेनुमा कब्र को सम्मोहित–सा देखता रह गया, और उसे लगा चाहकर भी बहुत जल्दी उस तक नहीं पहुँचा जा सकता। बीच–बीच में कब्र नज़रों से ओझल हो जाती थी, क्योंकि आपस में जोर–जोर से टकराते कुछ लिपटे और कुछ फहराते झण्डों के पीछे छिप जाती थी। झण्डेवाले दिखाई नहीं दे रहे थे, पर ऐसा लगता था जैसे वहां कोई बहुत बड़ा उत्सव हो।
वह अभी भी उसी दिशा में देखे जा रहा था, दरअसल वह उसे पीछे छोड़ने ही वाला था। उसने फुर्ती से उछलकर उस घासयुक्त जमीन पर जाना चाहा, उसके उठे हुए पैर के नीचे से जमीन निकलती चली गई, वह अपना संतुलन खो बैठा और एक घुटने के बल कब्र के सामने गिर पड़ा। दो व्यक्ति कब्र के पीछे खड़े थे, उन्होंने कब्र पर लगाई जाने वाली शिला को ऊँचा उठा रखा था। उन्होंने जैसे ही के. को देखा, पत्थर को जमीन में गाड़ दिया और वो वहाँ इस तरह लग गया जैसे कंकरीट का हिस्सा हो। तभी एक तीसरा व्यक्ति झाड़ी के पीछे से निकला, के. को समझते देर नहीं लगी कि वह कोई आर्टिस्ट है। उसने पतलून और अधखुली बटनों वाली शर्ट पहन रखी थी, सिर पर रोएँदार टोपी थी। उसके हाथ में साधारण–सा ब्रॅश था, नजदीक आते हुए उसने कूँची से हवा में कुछ रेखांकित–सा किया।
ब्रॅश से उसने पत्थर के ऊपरी भाग पर कुछ लिखना शुरू किया। पत्थर बहुत लम्बा था। उसे बहुत आगे झुकने की जरूरत नहीं थी, पर उसे इसलिए झुकना पड़ रहा था:क्योंकि उसके और शिला के बीच कब्र थी, जिसे वह रौंदना नहीं चाहता था। वह पंजों पर उचककर खड़ा था और बाएं हाथ से उसने पत्थर का सहारा ले रखा था। बहुत विचारने के बाद उसने उस साधारण–से ब्रॅश से सुनहरे अक्षरों में लिखा,‘‘यह कब्र...’’प्रत्येक शब्द बहुत सफाई, खूबसूरती और पूरी चमक के साथ पत्थर में गहरे खुद गए थे। ये दो शब्द लिखने के बाद उसने के. की ओर देखा। के. यह देखने को आतुर था कि शिला पर आगे क्या लिखा जाने वाला है :इसलिए उसने कलाकार की ओर विशेष ध्यान नहीं दिया और शिला पर ही नजरें गड़ाए रहा। आर्टिस्ट ने आगे लिखना चाहा, पर असफल रहा। कोई अनजानी ताकत उसे ऐसा करने से रोक रही थी। उसने ब्रॅश वाला हाथ नीचे कर लिया और एक बार फिर के. की ओर देखा। इस बार के. ने ध्यान से उसकी ओर देखा। उसे लगा वह किसी गहरी उलझन में है, जिसकी वजह खुद उसे भी नहीं मालूम है। उसका पहले वाला उत्साह कहीं दिखाई नहीं दे रहा था। वह देखकर के.भी सोच में पड़ गया। दोनों ही असहाय से एक दूसरे की ओर देखते रहे। वातावरण में मनहूसियत भरी भ्रम की स्थिति छाई थी। जिससे निकलने का रास्ता उन दोनेां को ही नहीं सूझ रहा था।
इस असमंजस भर क्षण में कब्रिस्तान के चर्च की घंटी बजने लगी, लेकिन आर्टिस्ट ने अपने ऊपर उठे हाथ से कुछ संकेत–सा किया और घंटी बजनी बंद हो गई। थोड़ी देर बाद फिर घंटी बजने लगी, इस बार बहुत धीमी आवाज में। फिर अचानक बिना किसी संकेत के अपने आप बंद भी हो गई मानो इस बार अपनी ध्वनि के स्वरूप को जाँचने के लिए ही बजी हो। आर्टिस्ट की इस हालत से दुखी होकर के.रोने लगा वे दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढके वह देर तक सिसकता रहा।
कलाकार ने तब तक प्रतीक्षा की, जबतक वह अपने आप में लौट नहीं आया। फिर कोई और विकल्प न देख उसने सायास आगे लिखना शुरू किया। उसके ब्रॅश के पहले स्ट्रोक को देखकर के. ने बहुत राहत महसूस की जबकि आर्टिस्ट को इसके लिए अपने भीतर उठ रही अनिच्छा को दबाना पड़ रहा था। लिखाई पहले जैसी सुन्दर नहीं थी, सुनहरापन तो बिल्कुल नहीं था। लाइनें फीकी और डबडब कर रही थीं, अक्षर का आकार काफी बड़ा हो गया था। लिखा गया अक्षर जे. था। लिखाई लगभग पूरी हो चुकी थी,जब आर्टिस्ट ने अपना एक पैर गुस्से से कब्र पर पटका जिससे चारों ओर धूल ही धूल उड़ने लगी।
अंतत: के. उसका अभिप्राय समझ गया। अब आर्टिस्ट के समक्ष खेद प्रकट करने का अवकाश नहीं था। दोनों हाथों की उंगलियों से वह टीले की मिट्टी खोदने लगा और ऐसा करने में उसे कोई दिक्कत नहीं हुई, जैसे सब कुछ पहले से ही तैयार था और मिट्टी की तह मात्र दिखावे के लिए वहां डाल दी गई थी। इसके ठीक नीचे बहुत बड़ा गड्ढा था जिसकी दीवारें किसी चट्टान की तरह खड़ी थीं। देखते ही देखते भीतर के मंद प्रवाह ने उसे अपने आगोश में ले लिया। के.डूब गया: लेकिन नीचे तल में वह पहले की तरह सिर उठाए खड़ा था, वो अभी भी अगम्य गहराइयों में धँसा जा रहा था...
ऊपर कब्र के पत्थर पर उसका नाम सुनहरे अक्षरों में लिखा जा रहा था।
इस दृश्य से प्रभावित होकर उसकी आँख खुल गई।
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