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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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गुलाम नबी मुग़ल

रात का एक बज चुका था ।चिनाव एक्सप्रेस नवाबशाह शहर से रवाना होकर उत्तर दिशा की ओर आगे बढ़ी । भीड़ बहुत ज़्यादा थी । एक ग्रामीण , उम्र का पक्का ,नीचे फ़र्श पर एक चादर बिछाकर सोया हुआ था । नवाबशाह स्टेशन से चार-पाँच पुलिस वाले चढ़े और धीरे-धीरे जो फ़र्श पर सोए हुए थे ,उनके पास सिकुड़कर सोने के लिए अपना स्थान बनाने लगे । जब एक पुलिसवाला उस ग्रामीण के पास लेटा तो उसका हाथ ग्रामीण के हाथ के ऊपर पड़ा । ग्रामीण के हाथ के नीचे उसकी जेब थी , जिसमें काफी रुपये थे । गाड़ी में प्रकाश ज़रूरत से कम था ।
“कौन हो, भाईजान !” , ग्रामीण चिल्लाया -“मियाँ नीयत तो ठीक है न?”
“बुढ़ऊ, चुपचाप सो जा !” - पुलिसवाला बोल उठा -“चोर नहीं हूँ , सिपाही हूँ , फ़िक्र मत कर।”
ग्रामीण चौंका और उठकर बैठ गया-“ क्या कहते हो ,फ़िक्र मत कर ! मियाँ चोर के खिलाफ़ तो रपट भी दाखिल हो जाए ; लेकिन तुम हाथ की जो सफ़ाई दिखाओगे , उसकी तो थाने में मेरी फ़रियाद तक नहीं सुनेगा।”
निकट ही बैठा हुआ एक सताया हुआ बोल उठा-“जागो मियाँ जागो । अगर तेरे रुपये निकल गए तो फिर फ़रियादी यह सिपाही होगा और जवाबदार होगे तुम!”

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