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लघुकथाएँ - देशान्तर - जितेन्द्र भाटिया
जापानी
तस्वीर:यासुनारी कबाबाता (अनुवाद: जितेन्द्र भाटिया)
हालाँकि ऐसा कहना बदतमीजी होगी, लेकिन शायद अपनी बदसूरती के कारण ही वह कवि बन गया था। उसी बदसूरत आदमी, यानी कवि ने मुझे यह बात सुनाई।
‘मुझे तस्वीरों से चिढ़ है। और शायद ही कभी मुझे तस्वीर खिंचवाने का ख्याल आया होगा। सिर्फ़ एक बार चार–पांच साल पहले अपनी सगाई के मौके पर एक लड़की के साथ मैंने तस्वीरें खिंचवाई थीं। मुझे उस लड़की से बेहद प्यार था। मुझे नहीं लगता कि वैसी लड़की दुबारा मेरी जिन्दगी में आएगी। अब वे तस्वीरें एक खूबसूरत यादगार की शक्ल में मेरे पास हैं।
खैर, पिछले साल एक पत्रिका मेरी तस्वीर छापना चाहती थी। मैंने अपनी मंगेतर और उसकी बहन के साथ खिंचवाई गई एक तस्वीर में से अपना चित्र काटकर उस पत्रिका को भेज दिया। फिर अभी कुछ दिन पहले एक अखबार का रिपोर्टर मुझसे मेरा चित्र माँगने आया। मैंने कुछ देर तक सोचा, फिर आखिरकार अपनी और अपनी मंगेतर की तस्वीर को दो हिस्सों में काटकर अपनी तस्वीर मैंने रिपोर्टर को दे दी। तस्वीर देते वक्त उसे ताकीद कर दी कि बाद में वह उसे लौटा दें। लेकिन उसके वापिस मिलने की उम्मीद बहुत कम है। खैर, कोई फर्क नहीं पड़ता।
‘मैं कह तो रहा हूँ कि कोई फर्क नहीं पड़ता, लेकिन जब मैंने उस आधी तस्वीर को देखा जिसमें मेरी मंगेतर अकेली छूट गई थी, तो मैं काफी चौंक गया। क्या यह वही लड़की थी, तो मैं काफी चौंक गया। क्या यह वही लड़की थी? चलिए, आपको समझाऊँ.......
‘वह लड़की बहुत खूबसूरत और आकर्षक थी। सतरह साल की उम्र और प्यार में साराबोर। लेकिन जब मैंने अपने हाथ की उस तस्वीर को देखा, जिसमें वह मुझसे अलग कट गई थी, तो अहसास हुआ कि वह लड़की किस कदर बोदी थी। और अभी, एक क्षण पहले तक मेरे लिए वह दुनिया की सबसे सुन्दर तस्वीर थी.....मुझे लगा जैसे मैं अचानक एक लम्बे सपने से जाग गया हूँ। अपना बेशकीमती खजाना मुझे भुरभुराता हुआ–सा लगा...।
इस बिन्दु पर आकर कवि की आवाज और धीमी हो गई।
अखबार मैं जब वह मेरी तस्वीर देखेगी तो यकीनन उसे भी ऐसा ही लगेगा। उसे यह सोचकर ही दहशत होगी कि उसने मुझ जैसी आदमी से एक क्षण के लिए भी प्यार किया था।
‘बस इतना ही किस्सा है!’
‘‘लेकिन फिर भी मैं सोचता हूँ कि अगर वह अखबार हम दोनों की इकट्ठी तस्वीर छापे, जैसे वह खींची गई थी, तेा क्या वह मेरे पास दौड़ी चली आएगी कि मैं कितना बढि़या आदमी हूँ।’’
 
 
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