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लघुकथाएँ - देशान्तर - खलील जिब्रान
कोरा कागज़ खलील जिब्रान
( अनुवाद “ सुकेश साहनी)

बर्फ़ से सफेद कागज़ ने कहा, ‘‘इसी शुद्ध सफेद रूप में मेरा निर्माण हुआ था और मैं सदैव सफेद ही रहना चाहूँगा। स्याही अथवा कोई और रंग मेरे पास आकर मुझे गंदा करे ,इससे तो मैं जलकर सफेद राख में बदल जाना पसन्द करूँगा।’’
स्याही से भरी दवात ने कागज़ की बात सुनी तो मन ही मन हँसी, फिर उसने कभी उस कागज़ के नज़दीक जाने की हिम्मत नहीं की। कागज़ की बात सुनने के बाद रंगीन पेन्सिल भी कभी उसके पास नहीं आई।
बर्फ़ -सा सफेद कागज़ शुद्ध और कोरा ही बना रहा....शुद्ध कोरा...और रिक्त।
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