गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देशान्तर - ख़लील ज़िब्रान
ख़लील ज़िब्रान (अनुवाद -सुकेश साहनी)
लड़ाई

उस रात महल में दावत थी। तभी एक आदमी वहाँ आया और राजा के सम्मुख दण्डवत् हो गया। दावत में उपस्थित सभी लोग उसकी ओर देखने लगे–उसकी एक आँख फूटी हुई थी और रिक्त स्थान से खून बह रहा था।
राजा ने पूछा, ‘‘यह सब कैसे हुआ?’’
उसने उत्तर दिया, ‘‘राजन मैं पेशेवर चोर हूँ। पिछली अँधेरी रात को मैं चोरी के इरादे से एक साहूकार की दुकान में गया था। खिड़की  पर चढ़कर भीतर कूदते समय मुझसे भूल हो गई और मैं जुलाहे की दुकान में कूद पड़ा और लूम से टकराकर मेरी आँख निकल गई। राजन मैं आपसे न्याय की अपेक्षा रखता हूँ।’’
यह सुनकर राजा ने जुलाहे को पकड़ मँगवाया और उसकी एक आँख निकाल देने का आदेश दिया।
‘‘राजन!’’ जुलाहे ने कहा,‘‘आपका फैसला उचित है। मेरी एक आँख निकाल ली जानी चाहिए। लेकिन अफसोस! मुझे अपने हाथ से बुने कपड़े को दोनों ओर से देखने के लिए दोनों आँखों की जरूरत होती है। हुजूर, मेरे पड़ोस में एक मोची है, उसकी दो आँखें हैं उसे अपने काम के लिए दोनों आँखों की जरूरत नहीं पड़ती है।’’
सुनकर राजा ने मोची को तलब किया और उसके आते ही उसकी एक आँख निकालवा दी।
-0-

 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above