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यह तब की कहानी है जब रूस में भारी अराजकता थी। एक दिन एक शहर में यह खबर आग की तरह फैली–एक नौजवान अपने आपको नीलाम करने जा रहा है।
नीलामी शहर से दूर एक मकान में होनी थी। वह रहस्यमय किस्म का एक मकान था, जिसमें शायद ही इससे पहले कोई पहुँचा हो। सभी ऊंचे तबके के लोग थे। कुर्सियों की कतारें लगी थी। मंच पर एक बड़ा पियानो रखा था और उसके पास की मेज पर लकड़ी का एक हथौड़ा पड़ा था। अंत में वह नौजवान मंच पर आया। लोग तरह–तरह की आशंका से भर गए।
सुविधा के लिए उस नौजवान को ‘अ’ कहकर पुकारते हैं। ‘अ’ ने उपस्थित जनसमूह को संबोधित करते हुए कहा–‘‘मैं अपने आपको बेच डालना चाहता हूँ, जो भी व्यक्ति सबसे बड़ी बोली लगाएगा,उसका मेरे ऊपर पूरा अधिकार होगा, पर नीलामी के बाद मेरे खरीदार को मुझे चौबीस घंटे की मोहलत देनी होगी, ताकि मैं बिक्री से प्राप्त रकम बाँट सकूँ। मैं खुद के लिए कुछ नहीं रखूँगा। इसके बाद मेरी गुलामी का दौर शुरू होगा। मेरे मालिक को मुझसे काम लेने का ही नहीं,मेरी जान लेने का भी अधिकार होगा।’’
तभी ‘अ’ के मित्रों में से एक व्यक्ति मंच पर आया और मेज के पास कुर्सी पर बैठ गया। उसका काम केवल इतना था कि सबसे ऊँची बोली पर रकम वसूल करके ‘अ’ को सौंपकर चला जाए।
कार्यवाही शुरू हुई। ‘अ’ ने कहा–‘मैं पहले आप लोगों के सामने संगीत प्रस्तुत करूँगा–ऐसा संगीत जिसे आप लोगों ने आज तक कभी नहीं सुना होगा। यह संगीत मेरी आत्मा की सहज रचना है।’
तभी बाहर वर्षा होने लगी। हवा तेज हो उठी और अंधेरा छा गया। बादलों की गड़गड़ाहट के साथ ही ‘अ’ ने संगीत शुरू कर दिया। उस समय आकाश में दूधिया इंद्रधनुषी बादल मंडरा रहे थे। पेड़ों की टहनियाँ झूम रही थीं। कुछ देर बाद उसने संगीत बंद किया और बोला–‘आपके स्नेह के लिए मैं आभारी हूँ, पर केवल इतने से ही मुझे संतोष नहीं है। मैं अपनी योजना का खुलासा नहीं करूँगा क्योंकि तब आप उसमें टाँग अड़ाएँगे और समस्या के समाधान हेतु कोई दूसरा तरीका अपनाने को कहेंगे। आपकी सहायता चाहे कितनी ही उदार क्यों न हो, मेरे मन के अनुकूल न होगी..आज के बाजार में मनुष्यरूपी सिक्के का जो व्यावहारिक मूल्य है, उसकी दृष्टि से मेरी कीमत गिर चुकी है। मैं अपने आपको बिक्री की चीज बना रहा हूँ।’ फिर संगीत लहराने लगा और बीच–बीच में बोलियां लगाईं जाने लगीं। अंत में एक रूढि़वादी कलाप्रेमी ने ‘अ’ को खरीद लिया।
पर कहानी यहीं खत्म नहीं हो जाती। नीलामी के तीसरे–चौथे दिन वह धनी आदमी ‘अ’ से बुरी तरह उकता गया। उसने उसके लिए एक अच्छे स्थान पर निवास की व्यवस्था कर दी। उसको सुखी रखने की चिंता में वह परेशान रहने लगा–‘मैं आज तक यह नहीं समझ पाया कि तुमसे क्या काम लूँ, इसलिए मैं तुम्हें आजाद करना चाहता हूँ। तुम कहीं भी जा सकते हो।’
‘अ’ ने प्रस्ताव अस्वीकार कर दिया, लेकिन तब यह बात अफवाह की तरह उस इलाके में फैल गई, जहां ‘अ’ ने अपनी बिक्री के पैसे बाँटे थे। वहां भयंकर मारामारी शुरू हो गई। इससे दोनों को गहरा धक्का लगा। ‘अ’ को काफी दुख हुआ क्योंकि उसकी नजर में फिर से आजाद होने का अर्थ था ठीक पहले जैसी स्थितियों में लौट आना, जिसके लिए वह तैयार नहीं था।
अनुवाद:एस.कांत
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