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लघुकथाएँ - देश - देवांशु वत्स
सपने-2

वह खुशनुमा सुबह थी। पूरब की लाली और मन्द हवा में झूमते वृक्ष उसे अच्छे लगे। उसने काले सफेद बादलों को देखा और इठलाते हुए आगे बढ़ गया । तभी उसे लगा कि बादलों के साथ–साथ वह भी उड़ रहा है। धूल का उड़ना उसे अच्छा लगा। उसे कलरव करते पक्षी और रंग–बिरंगे फूलों के इर्द–गिर्द इतराती तितलियां अधिक मोहक लगीं। आज उसने अधमरे, कचरे–से–कुत्ते को भी नहीं मारा।
फिर उसने खुद को उस खेल के मैदान में पाया। वह खुशी से तालियां बजाने लगा। तभी उसे गेंद आकर लगी। वह धन्य हो गया। आज पहली बार उसने क्रिकेट की गेंद को छुआ था।
सुन्दर झील को देखते हुए वह उस रेलवे फाटक के पास पहुंचा। आज उसकी प्रसन्नता का कोई ओर–छोर नहीं था उस छोटी–सी रेलगाड़ी को इतने करीब से गुजरते देखकर। उसमें सवार यात्रियों की वह कल्पना करने लगा। तभी उसे लगा कि उसने धुएं को पकड़ लिया है। धुंए ने उससे कहा, ‘‘ऐ, मुझे मत पकड़ों। तुम्हारे कोमल हाथ गन्दे हो जाएगे।’’
उसने अपने काले और खुरदरे हाथों को देखा। तभी किसी की पुकार सुन उसकी तन्द्रा टूटी। दूर ईट की भट्ठी से उसका बाप उसे बुला रहा था।

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