गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
कफ़न फरोश

समानान्तर दूर–दूर तक फैली लौह पटरियाँ। उन्हीं के बीच स्थित एक रेलवे स्टेशन।
प्रथम श्रेणी के टिकट घर के सामने ही ढलान से तीव्र हवाओं का झोंका आ रहा था। हवाएँ सर्द थीं। जनवरी माह की सुबह झपकी का एहसास दिला रही थी।
तभी दोनों लड़खड़ाते हुए खिड़की की ओर आते हुए दिखे।
‘‘हजूर सलाम’’–की आवाज आई। दाँत निपोरे हुए प्लेटफार्म का गदाई खड़ा था। दीन–हीन मुद्रा में।
‘‘हजूर! ।उसका चिल्लर(फुटकल) दे दीजिए...सुबह...सुबह कहीं नहीं मिल रहा है....’’
नोट लेकर मैंने उसको भीतर बुलाया तो दूसरा सशंकित होकर उसके कान में कुछ बोला।
दोनों पेशेवर कफन फरोश थे। पुल पर मुर्दा सुलाकर बोली लगाने वाले।
‘‘हजूर! सब जानते हैं...साले सबको कंगाली समझता है, मादर..कहता हुआ वह भीतर आ गया।
‘‘कहाँ से मिल गया तुझे...’’ मैंने पूछा।
लगता है रातभर पीकर सड़क पर पड़ा रहा। कीचड़ का धब्बा, खून का छींटा, पजामा चिंगुरा हुआ गंदीला।
वह नशे में था और पैर पकड़ लिया।
‘‘झूठ नहीं बोलूँगा, आप पुराने मालिक है। कल दो लाशें मिल गई थी, उसी की कमाई है। ठिकाने लगाकर आ रहा हूँ। कई दिनों के बाद मिला पीने को, बड़ी कड़की है आजकल। कोई मरता ही नहीं। बाहर से लाश लाने की मनाही है। लगता है धन्धा बन्द हो जाएगा।’’
पूरा कमरा अजीब दुर्गंध से भर उठा था अब तक।
‘‘थाने से एक पैसा नहीं मिला, उलटा ड्यूटी वाला पैसा माँग रहा है। बताइए क्या करूँ....क्या जुलूम हैं।’’
कंगाली अब रोने लगा था।
वह जा बैठा करता था सूर, अंधा बंगाली गाने वाला, ड्यूटी वाले ने जान बूझकर ट्रेन से कटवाया था। हजूर मुझसे ही धक्का दिलवाया गया था। बहुत जबरदस्ती है...हजूर। भीख माँगने पर हिस्सा...मुर्दा बेचने पर हिस्सा...ऐसा जालिम मैंने कभी नहीं देखा था।’’
वह लगातार रोता जा रहा था। सामने से आती तीव्र हवाओं का झोंका रुका हुआ लग रहा था। मेरी तंद्रा भंग हो चुकी थी।
कंगाली जा चुका था केवल दुर्गध रह गई थी।
इकतारा पर बाउल गाने वाले की धुन अब कभी सुनाई नहीं देगी।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above