लघुकथा के क्षेत्र में आज अनेक रचनाकार अपना स्थान बना चुके हैं।लेकिन इस विधा को एक लोकप्रिय एवं गरिमामय स्थान दिलाने में जिन कुछ रचनाकारों का नाम लिया जा सकता है़, उनमें सुकेश साहनी प्रमुख रूप से उल्लेखनीय है।इन्होने अपनी मौलिक रचनाओं के द्वारा हिन्दी लघुकथा साहित्य को तो समृद्ध किया ही विश्व की कई चर्चित लघुकथाओं का हिन्दी रूपांतर करने का उल्लेखनीय कार्य भी किया है।जिसके द्वारा हम विश्व लघुकथा की भावधारा से वाकिफ हुए।साहनी जी के चर्चित लघुकथा संग्रह डरे हुए लोग का पंजाबी एवं गुजराती में अनुवाद भी प्रकाशित हो चुका हैं।इसके अतिरिक्त आइसवर्ग ,विनर अंग्रेजी में अनूदित लघुकथा संग्रह़ खलील जिब्रान की लघुकथाएँ (हिन्दी अनुवाद ) प्रकाशित हो चुका है।इन्होने स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की लघुकथाएँ , महानगर की लघुकथाएँ एवं वह पवित्र नगर नाम से लघु कथाओं का संग्रह भी सम्पादित किया है़; जो प्रकाशित एवं चर्चित है ।लघुकथाओं के अतिरिक्त साहनी जी ने कहानियॉं कविताएँ एवं बाल कथाएँ भी लिखी हैं।
लघुकथाओं की रचना प्रकिया पर विचार करते हुए साहनी जी ने उल्लेख किया है कि लेखन की संवेदना अथवा विषय विविध अनुभूतियों के रूप में पहले मन में जन्म लेते है़ धीरे-र्धीरे ये अनुभूतियॉं अनुकूल परिस्थितियॉं पाने पर भोगे हुए यथार्थ के रूप में लघुकथा का आकार पाती हैं।
साहनी जी की ऐसी ही लघुकथाओं का एक नवीनतम संग्रह ठंडी रजाई नाम से प्रकाशित हुआ है।इसमें साहनी जी की इक्यावन लघुकथाएँ संगृहीत हैं जो इससे पूर्व नवभारत टाइम्स़,अमर उजाला ,जनसत्ता ,राष्ट्रीय सहारा ,दैनिक जागरण, सण्डे मेल, दैनिक ट्रिब्यून, हिन्दुस्तान,आधारशिला, उत्तर प्रदेश मासिक, शुभ तारिका आदि पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित एवं चर्चित हो चुकीं हैं।इस संग्रह की सम्पूर्ण लघुकथाओं का रचना संसार मध्यवर्गीय जीवन के तानेबाने से बुना है।कहीं दफ्तर के बाबू अपने भ्रष्टाचार को छिपाने के लिए फाइलों को दीमक के हवाले कर रहे हैं तो कहीं नवोदित धनिकों द्वारा संवेदनशून्य हो जाने का मार्मिक दृश्य दिखाई पड़ता है।कहीं नवागत बहू द्वारा ससुर को उपेक्षा मिलती है तो कहीं पड़ोस की विलासितापूर्ण वस्तुओं को पाने की ललक उमड़ती दिखाई पड़ती है।एक ओर प्रेम का त्रिकोण है तो दूसरी ओर विपत्ति एवं भय में भाईचारा भी पनप रहा है।साहनी जी ने सारी विसंगतियों एवं अमानवीय स्थितियों का यथार्थ चित्रण करने के सार्थसाथ महत्व मानवीय पक्ष एवं सकारात्मक सोच को ही दिया है।मानवीयता ही इनकी रचनात्मकता का आदर्श है।साहनी जी की यह कलात्मक सोच उन्हें अन्य लघुकथाकारों से अलग कर देती है।
‘काला घोड़ा’ लघुकथा में थोथे सम्मान की अति महत्वाकांक्षा में मॉं की पीड़ा को भी अनसुना कर दिया जाना और संस्कार एवं उपकार में नवागता पत्नी द्वारा ससुर की उपेक्षा को लाचार पति द्वारा सहन करना मन को व्यथित कर देता है ।देश में व्याप्त भ्रष्टाचार में मध्यवर्ग भी किस कदर शामिल है इसका चित्रण गणित , दीमक, चश्मा, दुर्गन्ध, खरबूजा, कम्प्यूटर, यूटोपिया एवं पैसा या प्यार नामक लघुकथाओं में मिलता है।
इस संग्रह की शीर्षक लघुकथा ठंडी रजाई में स्वानुभूति से संवेदनशीलता के प्रसार को दर्शाया गया है।जाड़े से परेशान पड़ोसी को अन्तत रजाई देकर स्वयं चैन की नींद सोना, वास्तव में मनुष्यता की पराकष्ठा है़ जिस कारण मनुष्य सृष्टि की सर्वोत्तम रचना कहलाने का अधिकारी है।इस संग्रह की कुछ ऐसी भी लघुकथाएँ रेखांकित करने योग्य है़ जो किसी न किसी जीवन मूल्य को अपने में संजोये हैं ।स्वीकारोक्ति, अन्तत: , आत्मनिर्भरता, दुर्गन्ध, धुएँ की दीवार एवं किरिचें ऐसी ही लघुकथाएँ हैं।
साम्प्रदायिक सद्भाव के मद्देनजर सन्नाटा़ तोता एवं कम्प्यूटर को पढ़ा जा सकता है। गुलामी के विरुद्ध बगावत के आलोक में रेगिस्तान के खिलाफ चौराहे पर एवं दुर्गन्ध नामक लघुकथा पठनीय है। आज के भौतिकवादी युग में मध्यवर्ग भीतर से तो दुखी है ।वह उपेक्षा एवं अलगाव का जीवन जी रहा है ; लेकिन दूसरों को दिखाने के लिए वह हॅंसी का मुखौटा लगाए घूम रहा है ।इस विसंगति को फाल्ट, आईना ,घर एवं बोंजाई नामक लघुकथा में देखा जा सकता है।नंगा आदमी एवं खारापानी लघुकथा समाज के तथाकथित सफेदपोशों पर लिखी गयी है।धन के पीछे आदमी कितना क्रूर और निर्मम हो जाता है़ इसका मार्मिक चित्रण परजीवी पैसा या प्यार और गलीज नामक लघुकथा में दिखाई पड़ता है।
समग्रत ठंडी रजाई मध्यवर्गीय जीवन की विसंगतियों का जीवंत उद्घाटन है।साहनी जी ने नवधनिक वर्ग की आत्मकेन्द्रिकता एवं संवेदनहीनता पर पैनी चोट की है तथा नौकरी पेशा वर्ग़ जो कहीं न कहीं देश की व्यवस्था का भी एक जिम्मेदार अंग है़ में व्याप्त भ्रष्टाचार को भी बड़े तल्ख रूप में व्यक्त करने के सार्थसाथ सार्थक हस्तक्षेप भी किया है।
हिन्दी में आज अधिकतर लघुकथाएँ विचार प्रधान ही लिखी जा रही हैं। यानी किसी संदेश या मन्तव्य को व्यक्त करने के लिए बस लघुकथा को एक माध्यम बना लिया गया है।उसके शिल्प अथवा कलात्मक गठन को महत्व नहीं दिया गया है।लेकिन साहनी जी की लघुकथाएँ इसका अपवाद हैं।भाव एवं शिल्प का सानुपातिक समन्वय इनकी लघुकथाओं मे मिलता है।प्रत्येक रचना मे कथातत्व सुरक्षित है।प्रतीक मन्तव्य को और भी सुन्दर ढंग से व्यक्त करते हैं।समग्रत: यदि कहा जाय कि साहनी जी की लघुकथाएँ आज लघुकथाकारों के लिए एक मानक है़ तो अत्युक्ति नहीं होगी।प्रस्तुत संग्रह के प्रकाशन के लिए अयन प्रकाशन भी बधाई का पात्र है।
र्डॉ हृदय नारायण उपाध्याय
केन्द्रीय विद्यालय आयुध निर्माणी भुसावल
जिला- जलगॉंव ( महाराष्ट्र)