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दस्तावेज़- कुलभूषण कालड़ा
कमलेश भारतीय की लघुकथाएँ
कुलभूषण कालड़ा

हिन्दी लघुकथा का स्पष्टत: अभी तक कोई स्वरूप निर्धारित नहीं किया गया है। आए दिन इस विषय पर सेमीनारों में चर्चाएँ होती हैं, प्रतिक्रियाएँ व्यक्त की जाती हैं मगर बात वहीं की वहीं रह जाती है। कभी–कभी यह बात भी आड़े आ जाती है कि अगर कहानी को किन्हीं तत्वों में नहीं बाँधा जा सका है तो फिर लघुकथा को क्यों? समय–समय पर यह वर्क भी उठते रहे हैं कि लघुकथा हेतु कोई अनुशासन, कोई मानदंड निर्धारित किया जाना चाहिए मगर डा. गोयनका जैसे विद्वानों का मत है कि सृजन को सिद्धान्तों से जोड़ने पर रचना जीवन्त नहीं रहती।
शायद कमलेश भारतीय ने भी लघुकथाओं का सृजन करते समय किसी सिद्धांत से बँधना नहीं चाहा और उन्मुक्त भाव से वह लिखते चले गए। उनके इस प्रयास को समय–समय पर कई मंचों द्वारा न केवल सराहा ही गया बल्कि उन्हें कई बार पुरस्कृत भी किया गया।
प्रस्तुत लघुकथा संग्रह ‘ऐसे थे तुम’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुआ है। इसमें अलग–अलग विषयों पर 66 कथाएँ संकलित हैं। कमलेश भारतीय का कर्मनिष्ठ पत्रकार और सृजनशील साहित्यकार उनकी रचनाओं में बेझिझक बोलता है और कहीं–कहीं उनके घर गृहस्थ की छोटी–छोटी बातें भी हमें बहुत बड़ा सन्देश देती है। इसके अलावा मध्यवर्गीय मानसिकता, सामाजिक रिश्तों का द्वंद्व, वर्तमान जीवन तथा समाज की कड़वी सच्चाइयाँ, ज्वलंत समस्याएँ तथा आज की गंदी राजनीति की झलक भी उनकी लघुकथाओं में भली भाँति दृष्टिगोचर होती हैं।
रिश्तों को लेकर संग्रह में बहुत सी कथाएँ हैं चाहे वह घर गृहस्थी में पारिवारिक रिश्ते हो अथवा अन्य रिश्ते, सभी जगह अलग–अलग परिस्थितियों में रिश्तों का विवेचन किया गया है। प्रमुखत : ‘बँटवारा, पड़ोसी धर्म, एंटीना की करामात, इस बार, श्रद्धांजलि, लापता, कारोबार तथा रिश्तों की राख’ इस श्रेणी की कथाएँ हैं।
इसी प्रकार राजनीति तथा चुनाव को लेकर अलग–अलग चित्र जिन कथाओं में देखने को मिलते हैं वह हैं ‘जुगाली, जनता और नेता, कारण, स्टिकर सपनों की मौत तथा समय–समय की बात’। ‘बासी धूप’ तथा ‘तलाश’ कथाएं अफसरशाही की धौंस लिए हुए हैं जबकि ‘सर्वोत्तम चाय’ तथा ‘नोट का कमाल’ मानवीय संवेदनाओं के चित्र प्रस्तुत करती हैं। मगर संवेदनहीनता तथा विवशताओं के चित्र प्रस्तुत करती हैं। मगर संवेदनहीनता तथा विवशताओं के चित्र प्रस्तुत करने वाली कथाओं में ‘अब क्या देंगे, सुना आपने, सहानुभूति, रोज, आदमी और चारा, कसैला स्वाद तथा फटकार’ हैं।
लेखक ने कुछ कथाओं में संस्कारों तथा अन्य सन्देश देने की बात है जोकि घर परिवार से ही मिल सकते हैं। इस श्रेणी में ‘चौराहे का दीया, दया की जगह, समझ तथा और मैं नाम लिख देता हूँ’ कथाएं उल्लेखनीय हैं।
रचनाओं की भाषा सीधी–सादी तथा सपाट बयानी लिए हुए है। चरित्रों और पात्रों से भरा पूरा संसार मौजूद है। कमलेश भारतीय लघुकथा लेखन में एक प्रतिष्ठित नाम हैं तथा उनकी अपनी एक अलग पहचान है। आशा है उनकी इस ताजा कृति का भी साहित्य जगत में भरपूर स्वागत होगा।

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