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दस्तावेज़- हस्ता़क्षर : शमीम शर्मा
हस्ता़क्षर : शमीम शर्मा
लघुकथात्मक दस्तावेज/संपादिका–शमीम शर्मा :प्रकाशक 222/3, सब्जीमंडी, कुरुक्षेत्र (हरि.) मूल्य–डीलक्स संस्करण,, सौ रुपए साधारण 80 रुपए
 

श्री भाऊसमर्थ के आकर्षक आमुख और श्री जे.एन. जोशी की सजावट मोह लेती है। समीक्षा खंड के अन्तर्गत लघुकथा की जड़ से जमीन सतह तक की पूर्ण जानकारी देते हुए स्वयं शमीम शर्मा ने लघुकथा की अब तक की समूची ऊँचाइयों को मापने का स्तुल्य प्रयास किया है। बल्कि उनका यह सार्थक प्रयास एक सार्थक शोध ही है। सर्जन खंड में 114 लघुकथाकारों की लघुकथाएँ संग्रहित हैं। लघुकथा संदर्भ खंड में चर्चित लघुकथाकारों के नाम व उनकी प्रतिनिधि लघुकथाओं के नाम दिए हैं। इस खं डमें दिए कुछ सर्जकों के नाम भी हैं। परिशिष्ट दो में प्रकाशित और प्रकाश्य लघुकथा संग्रहों की सूची है। परिशिष्ट–तीन में 330 पत्र–पत्रिकाओं के पते हैं जिन्होंने विधा को सींचा है।
‘हर कृति दूसरों को कुछ देने के लिए होती है किंतु व्यावहारिक वैचारिकता के इन दिनों में कम ही लोग ‘ल ेले’ की प्रवृत्ति दिखाते हैं। लघुकथा तकनीक पर, आज के लेखन पर, उसकी प्रतिबद्वता पर प्रश्न जन्माकर एक सर्वमान्य धारणा की ओर ले जाने वाली एक जरूरी किताब हैं। इस कृति को एक सादगी और सहजता के साथ निजिपन की लघुकथाओं का संग्रह कह सकते हैं। गुट षड़यंत्र से परे आत्मचेता का नजरिया लेकर ईमानदार अभिव्यक्ति को प्रस्तुत करने में संपादिका सफल हुई हैं।
लघुकथाओं में समाज के प्रत्येक वर्ग और उनके आस–पास खड़ा विकृतियों का चेहरा दिखाया गया है। अधिकांश लघुकथाओं में आम–आदमी की बातचीत सोच, समझ के साथ इनमें रोचकता,सहजता, पैनापन, प्रभावोत्पादकता के गुण हैं। शोषण, उत्पीड़न, रोटी–देह, देशप्रेम, नैतिक पतन, धार्मिकता का लोप, सत्ता–मोह, कर–नीति, करुण स्थिति, इंसानियत का खोखलापन, बेकारी की समस्या, धार्मिक वर्ग का प्रभाव, पुलिसिया निर्ममता जीवन के यथार्थ आक्रोश–सभी कुछ उजागर हुए हैं। सफल लघुकथाओं के रूप में कभी भूलाई न जा सकने वाली 92 लघुकथाएँ हैं।

अपेक्षारानी

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