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दस्तावेज़- बलराम अग्रवाल
लघुकथाओं में धड़कता पंजाब का दिल
बलराम अग्रवाल

हिन्दी लघुकथा से जितना जुड़ाव पंजाबी लघुकथा और पंजाबी लघुकथाकारों का रहा है, उतना या वैसा जुड़ाव हिन्दीतर भाषी किसी अन्य प्रांत की लघुकथा या लघुकथाकार का अभी तक देखने में नहीं आया है। अशोक भाटिया द्वारा संपादित ‘पंजाबी की श्रेष्ठ लघुकथाएँ’, सुभाष नीरव द्वारा संपादित ‘पंजाबी की चर्चित लघुकथाएँ’, भगीरथ द्वारा संपादित ‘पंजाब की चर्चित लघुकथाएँ’, डॉ॰ दीप्ति व अग्रवाल द्वारा संपादित ‘पंजाबी लघुकथाएँ’ इस बात के पक्के प्रमाण हैं कि पंजाबी लघुकथा ने अपनी उपस्थिति का आभास संपादकों, अनुवादकों व आलोचकों को निरन्तर कराया है।
‘बीसवीं सदी : पंजाबी लघुकथाएँ’ संकलन पंजाबी भाषा में बीसवीं सदी के अन्तर्गत हुए श्रेष्ठ लघुकथा-लेखन से 100 लघुकथाकारों की 113 चुनिंदा लघुकथाएँ लेकर पाठकों के समक्ष उपस्थित हुआ है। संपादकीय से लेकर कथा-प्रस्तुतिकरण तक पूरे संकलन में कहीं भी बड़बोलेपन का भाव नहीं है। ‘बीसवीं सदी: पंजाबी लघुकथाएँ—निरन्तर विकास का दस्तावेज़’ शीर्षक संपादकीय में अत्यन्त सहजता के साथ संपादकद्वय ने स्वीकार किया है कि ‘अगर हम पंजाबी लघुकथा (मिन्नी कहानी) का इतिहास खोजने निकलें तो पंजाबी में यह शब्द लगभग तीन दशक पहले प्रयोग हुआ। हो सकता है कि आकार के लघुरूप की रचनाएँ पहले भी लिखी जा रही हों या छप रही हों, पर इसके बारे में कोई भी प्रयास पंजाबी में नहीं हुआ है।’ यह एक साफगो बयान है। हिन्दी ‘लघुकथा’ या योरोपीय ‘शॉर्ट शॉर्ट स्टोरी’ के उन्नायकों/आलोचकों की तरह उन्होंने ‘पंजाबी लघुकथा की लम्बी और गौरवमयी परम्परा रही है’ जैसे भारी-भरकम वाक्यों का कहीं भी प्रयोग नहीं किया है। संकलित रचनाओं के चयन के आधार को स्पष्ट करते हुए उन्होंने लिखा है—‘इस संग्रह की सभी रचनाओं में ‘मिन्नी कहानी’ शब्द में समाए हुए दोनों गुण विद्यमान हैं। आकार में ‘मिन्नी’ हैं और इनमें ‘कथारस’ भी विद्यमान है।’
संपादकद्वय ने यद्यपि यह भी लिखा है कि ‘दोनों संस्थाओं (‘मिन्नी त्रैमासिक’ व ‘मिन्नी कहानी लेखक संघ’) ने आरम्भ से ही हिन्दी लघुकथा को, जिसका इतिहास लगभग एक सदी पुराना है, अपने साथ रखा ताकि कुछ सीखा जा सके।’ मैं समझता हूँ कि यह एक विनम्र बयान है। सही और साहसिक बयान यह है कि ‘पंजाबी ‘मिन्नी कहानी’ ने हिन्दी लघुकथा से बहुत-कुछ सीखा है; परन्तु पंजाबी मिन्नी कहानी के विकास का मुख्य श्रेय ‘मिल-बैठकर विधा की मूलभूत विशेषताओं को पहचानने’ को मिलना चाहिए, जो हिन्दी भाषा में उस गति से नहीं हुआ।’
‘हिन्दी लघुकथा से कुछ सीखने’ के प्रयास जैसी ईमानदार स्वीकारोक्ति के बावजूद यह देखकर हर्ष होता है कि पंजाब की लघुकथा ने किसी भी कोण से हिन्दी लघुकथा की गंध को नहीं अपनाया है। न केवल कथानक के स्तर पर बल्कि भाषा एवं शब्द-प्रयोग के स्तर पर भी पंजाबी लघुकथा में उधार का कुछ नहीं है। एक-एक लघुकथा में पंजाब का नैतिक और जुझारू संस्कार उसके दिल की तरह धड़कता महसूस होता है।
संकलन की यादगार(अमृत जोशी), माँ(इकबाल सिंह), गर्मी(डॉ॰ कर्मजीत सिंह नडाला), मंदहाली(कर्मवीर), अंधेरा(कुलजीत ग़ज़ल), एंटीने में फँसा कबूतर(कृष्ण बेताब), बेवफा(केवलसिंह ‘परवाना’), स्टार(केसराराम), हवा का झोंका(गुरचरण चौहान), सेवक(गुरदीप पुरी), ग्रहदशा(गुरदीप हेयर), ताँगेवाला(गुरमेल मडाहढ़), कमानीदार चाकू, मुर्दाघाट पर खड़ा आदमी(जगदीश अरमानी), सोच(जगरूपसिंह दातेवास), छोटे-छोटे ईसा (जसवीर ढंड), जवाब नहीं आया(जिंदर), कड़वा सच(दर्शन जोगा), मायाजाल(दर्शन मितवा), रिश्ते का नामकरण(दलीपसिंह वासन), फासला(धर्मपाल साहिल), नयी पगडंडी(परमजीत थेड़ी), सेंक(प्रीत ‘नीतपुर’), गर्म कोट(बलदेव कैंथ), उल्टी गंगा, दायित्व(डॉ॰ बलदेवसिंह खहिरा), मूक शब्दों की वापसी(बिक्रमजीत ‘नूर’), शोषण(बीर इंदर सिंह), पहुँचा हुआ फकीर(भूपिन्दर सिंह), खूनदान(मढार करतारवी), कान्वेंट स्कूल(महेन्द्र रिश्म), अनिश्चय(मित्रसैन मीत), बोहनी(रणजीत कोमल), नई सुबह(राकेश कुमार बिल्ला), काली धूप(वरियामसिंह संधू), चूहे(विवेक), असली भारत(वीरेन्द्र आज़ाद), चीस(शिवतार सिंह डल्ला), मुर्दे, रोटी की ताकत(श्यामसुन्दर अग्रवाल), बीज, अन्नदाता(डॉ॰ श्यामसुन्दर दीप्ति), गंदा नाला(सतिपाल खुल्लर), दरवेश(सतेश कुमार भूंदड़), दोस्त(सरूपसिंह मोगा), नेतागिरी(सुखदेवसिंह शांत), मर्द व औरत(सुखमिन्दर सिंह सेखों), जूते(सुखवंतसिंह मरवाहा), सूरज(सुधीर कुमार सुधीर), रिश्ता(सुलक्खन मीत), हवलदार मेजर, पत्थर लोग(हमदर्दवीर नौशहरवी), नानका छक्क(हरदीप ढिल्लों), सवाल(हरप्रीत राणा), बदलती सोच, वर्दी(हरभजन खेमकरनी), बेबसी(डॉ॰ हरभजन सिंह) तथा अक्लमंद(हरमनजीत) लघुकथाएँ नि:संदेह अपनी छोटी काया में समकालीन पंजाबी समाज का बेबाक चित्रण प्रस्तुत करने में सफल हैं। इनमें से अनेक में चरित्रों का जैसा मनोवैज्ञानिक चित्रण मिलता है, वह तोष प्रदान करता है तथा भविष्य में सकारात्मक लघुकथा-लेखन के प्रति आशान्वित रखता है।
इस संकलन को इतने कम मूल्य पर पाठकों को उपलब्ध कराने हेतु जनसुलभ पेपरबैक्स, बरेली(उ॰प्र॰) नि:संदेह साधुवाद के अधिकारी हैं।

बीसवीं सदी : पंजाबी लघुकथाएँ, संपादकद्वय : डॉ॰ श्याम सुन्दर दीप्ति व श्याम सुन्दर अग्रवाल, प्रकाशक : जनसुलभ पेपरबैक्स, 193/21, सिविल लाइंस, बरेली-243001 प्रकाशन : जनवरी 2005, मूल्य : रु॰ 25/-

 

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