युगल उन वरिष्ठ लघुकथा कारों में से एक हैं, जिन्होंने खूब और अच्छा लिखा है तथा लघुकथा के रचनात्मक वैभव को विस्तार दिया है। निरन्तर सृजनरत रहते हुए लघुकथा को साहित्य की मुख्य धारा में खींच लाने का श्रेय जिन लघुकथा कारों को दिया जा सकता है, उनमें युगल का नाम प्रथम पंक्ति का दावेदार है। हिन्दी लघुकथा की प्रवृत्ति को समझने और उसकी संरचना के मानक स्वरूप को निर्धारित करने में युल के रचनात्मक योगदान को कदापि नजरअन्दाज नहीं किया जा सकता। नवीनतम कथ्यों पर आधारित तथा भाषिक जीवंतता के कारण इनकी लघुकथएँ जनमानस को गहरे छूती हैं। यह अपनी लम्बी आयु के विराट अनुभव के धनी कथाकार हैं, जो इनकी रचनाओं में बिंबित होते रहे हैं।
समीक्षित पुस्तक ‘गर्म रेत’ युगल का चौथा लघुकथा संग्रह है। इसमें निन्यानवे लघुकथाएँ हैं। इन लघुकथा ओं को ‘जलते पाँव’, ‘मुरुघर’ तथा ‘काक वाक’ शीर्षक तीन खण्डों में रखा गया है। इन लघुकथाओं में उन तमाम स्थितियों को पूरी तरह मुखर किया गया है, जिनसे हमारा जीवन प्रभावित होता रहा है। जो लोग यह कहते हैं कि लघुकथा के लघु कलेवर में जीवन और समाज की मुकम्मल तश्वीर पेश नहीं की जा सकती। संग्रह की ये लघुकथएँ उनकी अवधारणा को निमूर्ल करने में काफी सक्षम हैं। इन्होंने सामाजिक पीड़ा, व्यवस्था एवं राजनीतिगजनित तमाम तरह के अन्तर्विरोयों का सूक्ष्म अध्ययन किया है, जिनका गवाह इनकी लघुकथा ए लघुकथाएँ हैं ।
संजीवनी, समीकरण, आबरू का बचाव, क्रियाशीलन, आदेश, इंतजार सुबह का, कुआँ, डूबते लोग, दीवार आदि गर्म रेत की तपती लघुकथाएँ हैं, जिनकी तपिश से पाठकीय चेतना उाप्त हुए बिना नहीं रह सकती। लघुकथा चाहे ‘इन्तजार सुबह का’ हो, ‘कुआँ,’ ‘आदेश’ या दूसरी रचनाएँ हों, इनके केन्द्र में छीजते मूल्यों के प्रति चिन्ता का भाव दिखलाई देता हैं ‘साड़ी’ इस संग्रह की ऐसी रचना है, जिसे पढ़कर मन सहज ही बेचैन हो उठता है। गंगा किनारे बहकर आयी एक औरत की लाश है–मादरजाद नंगी। उसकी नग्नता को निहारते बहुत सारे लोग खड़े हैं। मुर्दे को लज्जा कैसी? लज्जा होती है स्नान के लिए आई एक औरत को। वह अपनी साड़ी से लाश की नग्नता को ढाँक देती है। एक आदमी भी वहाँ खड़ा वह सब देख रहा है, लेकिन उसके दिमाग में अपनी पत्नी की जीर्ण–शीर्ण साड़ी से झाँकती नग्नता ही घूम रही है। वह नयी साड़ी खरीदने से लाचार है। वह साँझ के अँधेरे में लाश पर की उस साड़ी को चुराकर ले जाता है। एक गरीब की इस बेबसी की करुण स्थिति का जीवंत चित्रण युगल से ही सम्भव हो सका है।
संग्रह में ऐसी अनेक विचारोत्तेजक व व्यंजनापूर्ण लघुकथाएँ हैं, जिन पर अलग–अलग पन्ने लिखे जा सकते हैं। युगल ने आधुनिक हिन्दी लघुकथा के स्थापना–काल के कथाकार होने के दायित्व का निर्वाह भली भांति किया है। इन्होंने तमाम तरह के सामाजिक,राजनैतिक अन्तर्विरोधों को उजागर करते हुए स्वस्थ चिन्तन और स्पष्ट–दृष्टि–बोघ को अपनी रचनाओं में निदर्शित किया है। और लघुकथा के कलापक्ष को सशक्त बनाया है ।
गर्म रेत (लघुकथा-संग्रह) : युगल ,पृष्ठ:128; मूल्य: 140 रुपये; प्रकाशन वर्ष:2005; प्रकाशक; अयन प्रकाशन ,1 /20 महरौली , नई दिल्ली-110030
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