लघुकथा देश-देशान्तर : सम्पा• सुकेश साहनी -रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, पृष्ठ: 176; मूल्य: 300 रुपये(सज़िल्द),संस्करण :2013 ,ISBN:978-81-7408-604-4 ;प्रकाशक-अयन प्रकाशन, 1/ 20 , महरौली , नई दिल्ली-110030
लघुकथा अपनी विकास यात्रा में आम आदमी की सुख-दर्द की वाणी बनी। मानवीय मूल्यों की स्थापना का प्रयास शुरू हुआ तो समाज में आने वाली विसंगतियों को भी चिह्नित किया जाने लगा। हिन्दी चेतना का अक्तुबर -दिसम्बर 2012 का लघुकथा विशेषांक अब पुस्तकाकार में भी आ गया है । इसकी सभी लघुकथाएँ अपने कलेवर में अनेक विविधताएँ समेटे हुए हैं जो सम्पृक्त रूप में मानवीय सोच की एकता को प्रदर्शित करती है। आधारशिला (देश)खण्ड में देश के हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य साहित्यकारों की लघुकथाओं को स्थान दिया गया है। हिन्दी साहित्य के विशिष्ट साहित्यकारों में सर्वोच्च स्थान पर विद्यमान प्रेमचंद की लघुकथा ‘राष्ट्र का सेवक’ लघुकथा में मानव के दोहरे चरित्र पर प्रहार करते हैं। अश्क की ‘गिलट’ की कमोबेश इसी प्रकार के मुखौटे को व्यक्त करती है। परसाई की ‘संस्कृति’ भूखे व्यक्ति को रोटी जो दे सकती है ,वह संस्कृति नहीं दे सकती । शरद जोशी की ‘मैं वही भगीरथ हूँ’ भ्रष्टाचारियों की दृष्टि पर व्यंग्य करती है। विष्णु प्रभाकर की ‘पानी की जाति’ उन सम्प्रदायिक ताकतों के मुँह पर तमाचा है ;जो धर्म के नाम पर लोगों को बाँटते हैं, पानी के लिए तड़पते आदमी को पानी चाहिए उसके लिए यह प्रश्न मायने नहीं रखता कि पानी पिलाने वाला किस जाति का है।
आधारशिला(देशान्तर ) खण्ड में विदेशी साहित्यकारों की बहुमूल्य लघुकथाओं को समेटा गया है इन कथाओं मे भी भारतीय साहित्यकारों की भाँति मानवीय संवेदनाओं को प्रमुखता दी गई है। इवान तुर्गनेव की ‘प्रेम’ प्रेम के शाश्वत होने को व्यक्त करती है। एतगार केरेत की ‘दीक्षा’ बच्चों के अपने खिलौनों से लगाव को दर्शाती है। सोल्जेनित्सिन की ‘अलाव और चीटियाँ’ चीटियों के माध्यम से देशप्रेम को दर्शाती है। ख़लील जिब्रान की ‘निद्राजीवी’ व्यक्ति की सुप्त इच्छाओं को दर्शाती है। हाए ताए हूवेन की ‘कच्ची ईंट’ ईंट के माध्यम से व्यक्ति की सार्थकता और निरर्थकता को स्पष्ट करती है, यदि आप सार्थक कार्य करते हैं तो उपयोगी बने रहते हैं अन्यथा नष्ट हो जाएँगे। जेम्स थर्बर की ‘उल्लू’ अंधों में काना राजा मुहावरे को सार्थकता प्रदान करती है। चेखव की ‘कमजोर’ गाँधी जी के कथन अन्याय को सहने वाला अन्याय करने वाले से बड़ा अपराधी है को सार्थक करती है। विदेशी लेखकों की ये लघुकथाएँ अपने संदेश देने में सक्षम हैं । भाषा और शैली का सटीक प्रयोग इन लघुकथाओं के प्रति आकर्षण का भाव बनाये रखता है।
अविस्मरणीय खण्ड में उन साहित्यकारों को शामिल किया गया है ; जिनकी कथाओं की छाप हमारे हृदय से कभी मिटती नहीं। असगर वजाहत की ‘आग’ उस मानसिकता को प्रकट करती है जो दूसरों के घर में आग लगाकर उस पर रोटी सेंकते हैं। भूपिंदर सिंह का ‘रोटी का टुकड़ा’ जातीय भेदभाव पर करारा व्यंग्य करती हैं। युगल ‘पेट का कछुआ’ इंसान की उस स्वार्थ वृत्ति पर प्रहार करती है; जहाँ चंद रुपयों की खातिर अपने बच्चे की बीमारी का इलाज न करा के उसे पैसे कमाने का माध्यम बना लेते हैं। श्याम •सुन्दर दीप्ति वृद्धों की उस व्यथा को दर्शाती है। जहाँ उन्हें ढेरों सुखसाधन की चीजें नहीं बल्कि मन की बातें करने और कहने वाले साथी की आवश्यकता होती है। कमल चोपड़ा की ‘खेलने के दिन’ कामकाजी बच्चों से उनके बचपन के छिन जाने की पीड़ा को व्यक्त करती है।
विश्वस्तरीय लेखकों के साथ ‘’नई जमीन’’ के अन्तर्गत हिन्दी के उन लेखकों को स्थान दिया गया है, जिन्होंने कथ्य और शिल्प के नए द्वार खोले हैं तथा । इन कथाकारों में भी मानवीय संवेदनाओं को व्यक्त करने वाली पैनी व सटीक नजर है। अरुण मिश्र की ‘पावर विन्डो’ में व्यक्त किया गया है कि कुर्सी की ताकत से कैसे गलत को सही और सही को गलत साबित किया जाता, । रघुनंदन त्रिवेदी की ‘स्मृतियों में पिता’ पिता के बच्चों की खुशी के लिए कई रूपों में परिवर्तित होते दिखाया है।
सम्पदा खण्ड में समकालीन साहित्यकारों की लघुकथाएँ सम्मिलित हैं;जो यथार्थवादी दृष्टिकोण को अपनाते हुए आज के समय की विसंगतियों पर प्रकाश डालते हैं। सुदर्शन रत्नाकर की ‘प्रबन्धन’ बच्चों की स्वार्थी वृत्ति को दर्शाती है तो दूसरी चित्रामुदगल की नसीहत बड़ों की कथनी और करनी में अंतर दर्शाती है। माधव नागदा की संतवाणी भी उपदेश सुनने और उसे अमल में लाने के अंतर को व्यक्त करती है। विक्रम सोनी ‘अंतहीन सिलसिला’ में पीढ़ी दर पीढ़ी शोषण को दर्शाते हैं। अभिमन्यु अनत की ‘पाठ’ बच्चों के निश्चल मन को अभिव्यक्त किया है। भगीरथ की ‘शिक्षा’ शिक्षकों की शिक्षा नीति के प्रति उदासीनता को व्यक्त करती है। मुरलीधर वैष्णव ‘रांग नंबर’ में अनजाने ही दूसरे का भला करना की सीख देते है। मुकेश शर्मा ‘हँसानेवाले’ में हिजड़ों के प्रति हमारे असंवेदनशील व्यवहार के सामने लाती है।
स्वागतम् खण्ड में नये कथाकारों की रचनाएँ समाहित की गई हैं जो अपने कथ्य और शैली की अच्छी कसावट के कारण कहीं-कहीं स्थापित साहित्यकारों के समकक्ष नजर आते हैं। सुधाभार्गव की पुरस्कार मेहनत और ईमानदारी को अंत में पुरस्कार अवश्य मिलता है दर्शाती है। डॉ• अनीता कपूर की ‘मानसिकता’ समाज में अकेली औरतों के प्रति दोहरी मानसिकता को दर्शाती है। शेफाली पांडे की आउटगोंइंग’ बच्चों की स्वार्थपरकता को दर्शाती है। ऋता शेखर की माँ, ‘माँ’ जैसी भावनाओं का किसी ओर स्त्री मे उत्पन्न होना असंभव को व्यक्त करती है।
‘मेरी प्रिय लघुकथाएँ’ खण्ड में हरिमृदुल ने जोगिन्दर पाल की ‘उपस्थित’- और सूरज प्रकाश की ‘डर’ लघुकथाएँ उद्धृत करके उनकि विशेषाता प्रस्तुत की है । परिचर्चा में डॉ• सतीशराज पुष्करणा , डॉ• सतीश दुबे आदि छह साहित्यकारों के विचार प्रस्तुत किए हैं ,जो नए पुराने सभी लेखकों , चिन्तकों के लिए उपादेय है । अन्त में ‘लघुकथा की सृजनात्मक प्रक्रिया’ आलेख में रामेश्वर काम्बोज’ हिमांशु’ रचनात्मक प्रक्रिया पर जो विचार व्यक्त किए हैं ,वे नितान्त व्यावहारिक ही नहीं , वरन् नए लेखकों को दिशा देने में भी सहायक हैं।
भिन्न स्थानों के साहित्यकार मानवीयता के आधार पर समान प्रकट होते हैं जैसे-किसी एक व्यक्ति की ही विभिन्न परिस्थितियों के मनोभाव ये लघुकथाएँ हैं। यह पुस्तक लघुकथाओं की विशिष्ट विशेषताओं को समाहित करते हुए लघुकथा प्रेमियों के लिए अपने आप में एक बहुमूल्य दस्तावेज़ बन गया है ।
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