मार्केटिंग करते हुए मैं पूरे रुपए खर्च कर चुका था, किंतु आठ वर्षीय बंटी ने अपने पचास पैसे सुरक्षित रख छोड़े थे। प्लास्टिक के खिलौने लेने से उसने इन्कार कर दिया कि कोई भी पैर रख देगा तो टूटकर चूर–चूर हो जाएंगे। कागज के फूलों से सजे हुए छोटे गमलों पर उसका मन रीझा, किंतु एक क्षण बाद यह कहकर टाल दिया कि धूल लगने से फूल जल्दी गंदे हो जाएंगे। फुटपाथ पर सीप से बनी हुई बत्तखों की दुकान लगी थी, ‘‘बीस पैसे की एक....।’’
मैंने कहा, ‘‘चालीस पैसे का जोड़ा ले लो.....।’’
उसने उसकी बनावट को देखा तथा फैसला दिया, ‘‘एराल्डाइट की एक शीशी यदि आप ला देंगे तो मैं ही बना लूँगा, सीपी तो मेरे पास रखी है।’’ पत्रिका–विक्रेता की दुकान पर बच्चों की पत्रिकाएं सहज रूप में मैंने उठाई ही थीं कि वह बोल पड़ा,‘‘कॉलोनी के वाचनालय में सभी पत्रिकाएं आती हैं, खरीदने से क्या फायदा?’’
पैसों के प्रति बच्चे के इस मोह से मुझे झुंझालहट हो रही थी। मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि यह शिक्षा उसे अपनी पाठशाला मं मिल रही है। उसकी मम्मी भी जोड़–तोड़ के साथ पैसा खर्च करती है। सोचा, घर पहुँचते ही सबसे पहले इसी विषय पर चर्चा हो। मैंने शीघ्र पहुँचने के लिए पैर बढ़ाने चाहे, बंटी से भी कहा, ‘‘जल्दी चलो, हम लेट हो रहे हैं।’’ किंतु बंटी मेरी बगल वाली साइड में नहीं था।
मैं हक्का–बक्का रह गया, पसीने से तर–बतर। घर पहुँचने पर कोहराम,हाथ थामकर नहीं चलने के लिए स्वयं को प्रताड़ना, पुलिस थाने में रिपोर्ट करने से लेकर पेपर में सूचना देने तक की तमाम योजनाएँ एक के बाद एक उठने लगीं। मस्तिष्क जोरों से चकराने लगा। तभी खयाल आया कि क्यों न पीछे चलकर उसे खोज लिया जाए। मुड़ा ही था कि देखा, बंटी दौड़ता हुआ चला आ रहा है। मेरे निकट कुछ सहमकर वह खड़ा हो गया। मैंने डांटते हुए कहा, ‘‘कहाँ खड़े रह गए थे, जल्दी नहीं चलते, कहीं गुम हो जाते तो?’’
मेरी झल्लाहट को समझते हुए नीचा मुँह करके वह धीरे से बोला, ‘‘पापा जी, वह जो लड़का था न, काला–कलूटा, गंदे कपड़े पहने, उसे भूख लगी थी, पचास का सिक्का मैं उसे दे आया।’’
‘‘पागल हो, ये लोग इसी प्रकार बहाने बनाकर झूठ बोलते हैं और राहगीरों को ठगते हैं।’’
‘‘लेकिन उसका पेट भरा नहीं था, मुझसे उसने कहा कि कल से उसे खाने को कुछ नहीं मिला है।’’
दया की आर्द्रता से वह भीगता जा रहा था, उपदेश देने के लिए मेरे पास शब्द चुक रहे थे। हलका होकर मैं चुपचाप उसका हाथ थामे आगे बढ़ गया। मुझे लगा, ‘‘बच्चे को शाबाशी देकर उसके काम की प्रशंसा करनी चाहिए, किंतु शब्द मेरे गले में अटककर रह गए।