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लघुकथाएँ - देश - हरदर्शन सहगल
ग़म

शहर के जाने माने पत्रकार बल बलादुर सिंह ने अखबार के लिए एक दिलेराना (बोल्ड) लेख लिखा।
इन दिनों,माफियाओं ने अँधेर मचा रखा था। यह लोग दलित वर्ग की ज़मीनें हड़पने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहे थे। सामंत ग़रीब स्त्रियों की इज्ज़त लूट रहे थे।
बल बलादुर सिंह ने ऐसी घटनाओं का ब्यौरा आँकड़ों सहित लिख डाला। जिन माफियाओं ने आग लगवाई थी, और जिन लोगों ने औरतों को बेइज्ज़त किया था, उन सबके नाम भी लिख डाले थे।
किंतु यह सब लिख चुकने के बाद, बल बलादुर घबरा गए। इसलिए अपना नाम लिखने की बजाए उन्होंने एक सामान्य–फ़र्जी नाम चुन लिया। रामचंद सोनगरा। बस्ती का नाम सच्चा। लेखक का नाम झूठा।
लेख छपते ही तहलका मच गया। फर्जी नाम का जीवित प्राणी रामचंद सोनगरा गुंडों के कहर का शिकार हुआ। वह बहुतेरा कहता रहा कि उसने ये लेख नहीं लिखा। पर पिटाई–ठुकाई होती रही। तब उसने कहा, कर लो, क्या कर लोगे। मैंने ही लिखा है। जान से मार डालोगे। मार डालो। इसमें झूठ क्या है।
इतने में कुछ लोगों और पुलिस का हस्तक्षेप हुआ। रामचंद सोनगरा को अस्पताल में दाखिल कराया गया। उसके बहुत चोटें लगी थीं। स्थानीय नेताओं के प्रभाव से कुछ गिरफ्तारियाँ भी हुई थीं।
दूसरे दिन के समाचार पत्र में यह विवरण पढ़कर बल बलादुर सिंह को खुशी हुई।
शहर के पिछड़े वर्ग के समर्थन में कुछ और लोग आए। एक समिति का गठन हुआ। सभी ने एक मत से रामचंद सोनगरा को उस समिति का अध्यक्ष चुना।
अन्याय,अत्याचारों के विरुद्ध किए जाने वाले क्रिया–कलाप की सूचनाएँ आने लगीं। संगोष्ठियाँ होने लगीं। दलितों की बहुत सारी ज़मीनें मुक्त करा ली गईं वे सार्वजनिक नलों से पानी भरने लगे। यह सब रामचंद के कुशल नेतृत्व में हो रहा था।
आठ माह बाद राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा हुई, दलित मुक्ति संघर्ष के लिए रामचंद सोनगरा को 51,हजार रुपए का पुरस्कार मिला।
पढ़कर बल बलादुर सिंह ने माथा पीट लिया।

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