दयाल जी का नौकर दौड़ा–दौड़ा आया और उनसे कहने लगा, ‘‘ साहब, सुना कि नहीं ? किसी ने बापू की मूर्ति तोड़ डाली!’’
दयाल जी भुनभुनाने लगे, ‘‘ हद है ! लोग गाँधी जी का अपमान करने से बाज क्यों नहीं आते ? कब सुधरेंगे ये लोग ?’’
तभी कहीं से एक क्रिकेट बॉल उड़ती हुई आई और दयाल जी के ड्राइंग रूम की खिड़की के शीशे तोड़ती हुई अंदर प्रवेश कर गई। शान्त स्वभाव के दयाल जी मारे गुस्से के उफनने लगे। वे बाहर की तरफ लपके।
सामने मैदान में क्रिकेट खेल रहे बच्चे बॉल की तलाश में उधर ही आ रहे थे। बच्चे नजदीक आए नहीं कि दयाल जी ने एक बच्चे का कॉलर पकड़ लिया और उसके गाल पर एक जोरदार तमाचा जड़ दिया।
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