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लघुकथाएँ - देश - जितेन्द्र ‘जीतू’
‘ट्रिक’

हुआ यह कि हमेशा की तरह ‘छोटे’ को बाहर पढ़ने भेजा, तो उसने वहां शादी कर ली और ससुर के यहाँ नौकर हो गया। नौकरी के बाद उसकी आदतें बिल्कुल अपनी बीवी की तरह हो गईं‍ । वह सास को माँ तथा ससुर को बाप समझने लगा। इधर उसका अपना बाप इस टेंशन में चारपाई पकड़ गया कि बेटा तो अब हाथ से गया।
‘‘छोटे’’ को सूचना दी गई।
‘‘छोटा’’ ससुराल में रहते–रहते समझदार हो गया था, जानता था कि जायदाद का बँटवारा नहीं होगा, अम्मा अभी जिन्दा हैं। वह नहीं आया। उसका समाचार आया कि टैक्सी के लिए पैसे उपलब्ध नहीं हो पाए थे और बैक भी बंद हो गया था इसलिए वह पहुँच नहीं सका। बाप ने उसकी बात पर विश्वास कर लिया और शान्ति से अल्लाह को प्यारा हो गया।
इसके बाद एक घटना घटी। ‘बड़े’ को परिवार सहित गाँव छोड़कर जाना पड़ा। वह शहर में रहने लगा। एक दिन अम्मा की तबीयत बिगड़ी। दोनों भाई दौड़े चल आए। ‘बड़ा’ कर्तव्य के प्रेशर पर तो ‘छोटा’ बीवी के फोर्स के कारण। इस बार ‘छोटे ’ को पूरी उम्मीद थी कि जायदाद का बँटवारा हो जाएगा। लेकिन अम्मा मरी नहीं। वह रोता–रोता वापिस लौटा।
घर पहुँचा ही था कि ख़बर आई, अम्मा की तबियत फिर बिगड़ गई। इस बार उसने ‘यात्रा–व्यय’ बचाया। एक टेलीफोन करके मालूम किया कि अम्मा कैसी है। ‘बड़े’ ने जवाब दिया, जीवित है। फिर समाचार मिला कि ‘बड़ा’ अम्मा को अपने साथ इलाज कराने शहर ले गया है। सुनकर ‘छोटे’ को कब्ज हो गई।
तूफानी दौरा करके वह ‘बड़े’ के पास पहुँचा। शायद अब उसकी ज़रूरत पड़े। जब उसे मालूम हुआ कि अम्मा के इलाज में अभी कई दिन लगेंगे, तो उसे पेचिश हो गई। वह इलाज के बहाने अपने शहर लौट आया।
उसे ख़बर मिलती रही कि इलाज हो गया, अम्मा ठीक हो गई और गाँव लौट आई।
‘छोटे’ को हार्दिक पीड़ा हुई।
‘पर होनी को कौन टाल सकता है’ उसे ससुराल में यही सांत्वना दी गई। वह काफी समय बाद नार्मल हुआ। उसकी ओर से अम्मा के पास खबर पहुँची कि ‘छोटा’ बीमार था, इसलिए पहुँच नहीं सका था। अम्मा को विश्वास हो गया। वह सुखपूर्वक दिन काटने लगी। पर बूढ़ा शरीर कब तक सुखपूर्वक रहता?
इस बार उसकी हालत बिगड़ी,तो ‘छोटा’ पूरी उम्मीद ले आया। उसने डाक्टर से पता कर लिया था कि कभी–कभी दूसरा अटैक भी अन्तिम सिद्ध हो सकता है। जिस डाक्टर से उसने सलाह ली थी, वह काफी बढि़या सिद्ध हुआ। बुढि़या इस बार यमलोक पहुँच गई।
यह भी उसके लिए प्रसन्नातादायक था कि ‘बड़े’ का अभी तक कहीं अता पता नहीं था। फोन न करके ‘बड़े’ को उसने टेलीग्राम किया और रसीद सम्भाल कर रख ली। फटाफट वह घर लौटा। बड़े के आने से पहले ही उसे सारे काम निपटा लेने थे। फिर मरी अम्मा का अँगूठा भी लेना था।
उसने यह सब कुछ बड़े कायदे से किया और अम्मा के शरीर को प्रसन्नतापूर्वक अग्नि दी। जब वह घर लौटा, तो ‘बड़ा’ खड़ा था। शांत।
‘छोटे’ ने जेब से कागज निकाले और ‘बड़े’ के हाथ में पकड़ा दिए। ‘बड़े’ को समझ नहीं आया तो उसने कागज़ पर अम्मा का अँगूठा दिखाया। इन्हें लपेट कर जेब में रख लो। आग लगाने के काम आएँगे।’’ ‘बड़े’ ने कहा और अपने वकील से उसे मिलवाया।
वकील ने ‘छोटे’ को जो जानकारी दी, उसका सीधा और संक्षिप्त अर्थ यही निकलता था कि जब अम्मा ‘बड़े’ के पास थी और ‘छोटा’ वहाँ नहीं था तभी माँ ने जायदाद का फैसला कर दिया था और वसीयत के अनुसार जायदाद का कोई भी अंश किसी ‘घर जँवाई’ को नहीं मिलना था।
तब ‘छोटे’ ने आहत होकर ‘बड़े’ से पूछा, ‘‘तुम्हें यह ट्रिक किसने बतलाई?’’
‘‘मैं तुम्हारा बड़ा भाई हूँ, तुम्हारे बाप की जगह। समझे बेटे।’’ जवाब मिला।

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