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लघुकथाएँ - देश - अज्ञात
अच्छे पड़ोसी

लिफ़्ट से अपने दसवीं मंजले स्थित कमरे में चढ़ते हुए मैंने नोटिस पढ़ा-श्रीमती मुखर्जी का एक सौ रुपए का नोट कहीं गुम हो गया है। पाने वाले कमरा नं0 65में पहुंचा देने की कृपा करें।
सूचना पढ़कर मुझे बड़ा दुख हुआ। श्रीमती मुखर्जी एक अनाथ गरीब बुढ़िया हैं और अड़ोस-पड़ोस के छोटे-मोटे काम करके अपना भरण-पोषण करती है।
करीब दो घंटे के बाद मैंने उसका दरवाज्ञा खटखटाया। उसने दरवाज्ञा खोला। लेकिन चेहरे को देखने से लग रहा था कि वह अपना पैसा वापस पा गई है।
मैंने पूछने पर वह बोली, ' हां,मुझे मेरा पैसा मिल गया है। दूसरी मंजिल वाले वैद्य साहब को मिला था। श्री राम अवतार तथा जनाब कुतुबुद्वीन ने भी उसे पाया था। शायद आपको भी मिला है! परन्तु आप सबको मिलने से पूर्व ही वह मुझे अपने कोट की जेब से मिल गया था। कृपा करके पैसे मिलने की सूचना जल्दी से नोटिस बोर्ड पर टांग दीजिए वर्ना कुछ औरों को भी वह मिल जाएगा।"

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