|
धान की फसल सँभालने के बाद अरजन सिंह ने आढ़ती बिशेशर मल को आकर ‘‘फतह ’’बुलाई। बिशेशर मल्क ने अरभन सिंह को ‘‘जी आया’’ कहते अपने नौकर को पानी पिलाने का इशारा किया। इस से पहले कि अरजन सिंह कोई बात छेड़ता, आढती शिकवे भरे अंदाज में बोला, ‘‘देख ले माऊ इस बार भी तेरे भतीजे ने दूसरी आढ़त पर धान डाला है। यह कोई अच्छी बात तो नहीं सरदार जी, आपके कारण ही उसका लिहाज कर रहा हूँ, पिछला हिसाब–किताब अभी बाकी है...।’’
‘‘कोई ना शाह जी, आ जाँएगे पैसे परसों तक, उसे सारे पैसे मिल गए हैं फसल के। मेरा हिसाब–किताब बनाया? घरवाली जिद्द करके बैठी है कि बेटी को बिदा करते समय थोड़ा–बहुत बनवा के देना है।’’
‘‘ये लो पर्ची, हिसाब बना दिया है। पिछला लेन–देन और ब्याज डाल कर जो बचता है मुझसे ले लो।’’
अरजन सिंह ने सरसरी सी नज़र पर्ची पर डाली तो चेहरे पर रौनक आ गई। उसी इतने पैसे बचने की उम्मीद नहीं थी।
‘‘सेठजी, ये लो पर्ची पाँच हजार दो अभी और बाकी हफ्ते दस दिन में कर देना। लेन–देन करके चिन्ता मुक्त हों।’’
‘‘ये लो पाँच हजार और बाकी के पैसों की तारीख लिख दी है। तीन महीनों के करीब...।’’
‘‘तारीख...कैसी तारीख! देने वालों को टालता आ रहा हू कि धान की फसल पर निपटाएँगे। फिर घर का खर्च भी इसी से चलाना है और आप तीन महीने की तारीख दे रहे हो।’’
‘‘इतनी जल्दी तो मुश्किल है फिर...।’’
‘‘सोच लो शाह जी, रणजीत आढ़ती पहले ही भुगतान करने को कह रहे हैं और फसल की बचती राशि महीने में देने का इकरार। देरी पर ब्याज भी देंगे। बाकी आप समझदार हो, कहीं भतीजे की तरह उसी आढ़त पर....।
अरजन सिंह के चेहरे पर फैली दृढ़ता देख बिशेशर मल्ल तिलमिलाया। आपने पिता के शब्द कि जमींदारों के सिर पर ठाठ–बाट हैं,इन्हें हर हालत में खुश रखने पर ही इज्जत कायम रहती है, उसके कानों में गूँजे। हँसते हुए बोला, ‘‘सरदार जी, हमने कोई पैसों से रिश्ता रखना है....पन्द्रह दिन में अपना बकाया ले जाना और कनक बीजने के लिए बोरे चाहिए वह भी। हिसाब अगली फसल पर कर लेंगे।’’
अरजन सिंह ने पाँच हजार की गट्ठी नीचे वाली जेब में डाली और पन्द्रह दिनों का वायदा ले, मुस्कराता हुआ, दुकान से बाहर आ गया।
(अनु–श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’)
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° | |