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लघुकथाएँ - देश - प्रेम जनमेजय
जड़

बच्ची को सुलाते हुए मां राजकुमारी की कहानी सुना रही थी। बच्ची राजकुमारी के सौंदर्य से प्रभावित किसी सोच में डूबी हुई थी। अचानक बच्ची ने मां से प्रश्न किया, ‘‘यह राजकुमारी कैसी होती है मां?’’
‘‘बहुत सुंदर होती है।’’
‘‘सुंदर होकर वह क्या करती है?’’
‘‘उसे कुछ नहीं करना होता है मेरी बच्ची! नौकर–चाकर उसके लिए काम करते हैं, उसकी सेवा करते हैं। उसे किसी भी चीज की कमी नहीं होती।’’
‘‘तुम सुंदर नहीं हो सकती मां?’’
‘‘नहीं, मेरी बच्ची!’’
सुनकर बच्ची ने फिर पूछा, ‘‘क्यों?’’
‘‘क्योंकि मैं गरीब हूँ।’’
‘‘और मैं?’’
‘‘तेरा भाग्य जाने।’’
माँ की आँखें नम हो गई और बच्ची की शून्य में घूरती आँखें जैसे कुछ टटोलने लगीं।

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