मैं सीढि़यां चढ़कर मीटर रीडर तेवतिया जी के दरवाजे की कॉल बैल बजाने ही वाला था कि ठिठककर रूक गया। भीतर से मारधाड़ की आवाज के साथ बच्चे के रूदन का स्वर सुनाई पड़ा। तेवतिया जी गाली–गलौज करते हुए अपने लड़के को बुरी तरह से पीट रहे थे। हो सकता है कि लड़के ने कोई काम बिगाड़ दिया हो। निरा शरारती जो ठहरा मैं सोचने लगा।
मेरे कॉल बैल दबाते ही तेवतिया जी ने दरवाजा खोला। मुझे देखकर वे सहज होने की मुद्रा बनाने लगे। बोले, ‘‘आइए–आइए, और सुनाइए क्या समाचार है?’’
‘‘लड़के को क्यों पीट रहे हो?’’ मैंने पूछा।
‘‘अजी कुछ मत पूछो आजकल की औलाद की ससुरा रोज कोई–न –कोई काम बिगाड़ता रहता है। आज मेरी कमीज से 50/–रू0 चुराकर फिल्म देख आया।’’ तेवतिया जी के स्वर में अभी भी गुस्सा था।
‘‘जाने दो तेवतिया जी, गुस्सा थूको अब । बच्चे तो बच्चे ही होते हैं। प्यार से समझाइए,’’ कहते हुए मैंने जेब से बिजली का बिल निकाला और एक सौ का नोट भी साथ में पकड़ा दिया। तेवतिया जी ने सौ का नोट अपनी पेंट की जेब में ठूसा तथा छह सौ अस्सी रूपए का बिल संशोधित कर एक सौ पैतीस रुपए का कर दिया बिल के ऊपर अपने पेन से ‘‘रीडिंग वेरीफाइड’’ लिखकर हस्ताक्षर कर दिए तेवतिया जी अब मुस्करा रहे थे।
मेरा काम हो चुका था। मैं सीढ़ियां उतरने के लिए आगे बढ़ा तो मैंने एक बार पीछे मुड़कर देखा। लड़का सुबकता हुआ मुझे ही घूर रहा था।
तेवतिया जी के घर से काफी दूर निकलने के बाद मुझे लगा रहा था मानो उस बच्चे की घूरती आंखें अभी तक मेरा पीछा कर रही हैं।