एक उच्च–मध्यमवर्गीय दंपती ट्रेन में अपने दो बच्चों के साथ सफर कर रहा था। पाँच और सात वर्ष के बच्चों की सार–संभाल के लिए बारह–तेरह वर्ष की नौकरानी गुड्डी भी उनके साथ थी।
मई के आखिरी सप्ताह की धूप और लू के कारण प्यासे बच्चे पानी–पानी की रट लगाने लगे। पुरुष ने थर्मस उठाया तो उसमें पानी नदारद। तभी उधर से ठंडा बेचनेवाला गुजरा।
पुरुष ने ‘लिमका’ की दो बोतलें लेकर दोनों बच्चों को पकड़ा दी। बच्चे खुशी–खुशी लिमका पीने लगे तो पुरुष को गुड्डी का भी खयाल आया।
‘‘क्यों गुड्डी, तुम भी पियोगी?’’
प्यासी गुड्डी कोई जवाब देती, इससे पहले ही पत्नी बोल पड़ी, ‘‘गुड्डी को यह सब अच्छा नहीं लगता।’’
ठंडावाला आगे बढ़ गया और गुड्डी ललचाई आँखों से उसे देखती रही।
पत्नी अब पूरी तरह आश्वस्त होकर बैठ गई।
तब तक बच्चों ने तीन–चौथाई बोतलें खाली कर ली थीं और अब दोनों ने अपनी–अपनी बोतलें चुपचाप गुड्डी की ओर सरका दी।
प्यासी गुड्डी अपनी मालकिन से नजरें बचाकर जल्दी–जल्दी बोतलों का शेष पेय पीने लगी। गुड्डी की मालकिन अपने दोनों बेटों को आग्नेय दृष्टि से घूर रही थी। बच्चे जानबूझकर मम्मी की तरफ से बेखबर होकर गुड्डी के साथ चुहल करने लग गए थे।