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लघुकथाएँ - देश - कविता सूद
बिसात


‘‘एक एफ.डी.बनवानी है।’’ दो–तीन स्वर टकराते–से बोले। मैंने नज़र उठाकर देखा–दो महिलाएं, एक पुरूष। पलभर में ही भाँप गई–सास–बहू और बेटा हैं। इसे इस तरह भी कहा जा सकता है–मां, बेटा और बहू या फिर मां और पति–पत्नी।
सास आगे–आगे, बहू बराबर कदम बनाने के प्रयास में और बेटा मां के पीछे–एक अच्छा बच्चा बनता हुआ।
‘‘कितने की, किसके नाम से?’’ मैंने फार्म सामने रखकर नाम लिखने का उपक्रम करते हुए पूछा।
‘‘तीन लाख की, मेरे, पुष्पा देवी के नाम से।’’ सास बोली।
मैं समा गई, सेवा निवृत्ति का पैसा लेकर आई है पुष्पा देवी। बेटा–बहू उसमें हिस्सेदारी के जुगाड़ में हैं।
‘‘क्यों मैडम, दो नाम से बन जाएगी?’’ बहू बोली।
‘‘हां, हां, क्यों नहीं, एक–एक फोटो दीजिए।’’
‘‘फोटो तो नहीं लाई मैं।’’बहू मायूस हो गई।
‘‘मैं लाई हूं न फोटो। मेरे अकेले नाम से बना दीजिए।’’ पुष्पा देवी ने पर्स से अपनी फोटो निकालकर मेरे सामने रख दी।
‘‘फोटो तो दस मिनट में खिंचकर आ जाएगी, अम्मा’’, लड़का आतुरता से बोला।
अम्मां तटस्थ–भाव रही।
मैंने पुष्पा देवी की फोटो ली और औपचारिकताएं पूरी करने लगी।
इस बीच पति–पत्नी में धीमे–से कुछ बात हुई।
पत्नी फिर आगे आई। ‘‘क्यों मैडम, नॉमिनेशन हो जाएगी क्या?’’
‘‘जी हां,नॉमिनेशन भी हो जाती है।’’
‘‘लेकिन बाद में फिर भुगतान लेने में कोई परेशानी तो नहीं होती।’’
पुष्पा देवी तटस्थ–भाव से फार्म पूरा करने में व्यस्त थीं
‘‘नहीं कोई समस्या नहीं होती मृत्यु–प्रमाणपत्र, दो साक्ष्य और कुछ अन्य औपचारिकताएं।’’
‘‘क्यों जी, फिर छोड़ो नाम डलवाने का नॉमिनेशन ही करवा लेते है। मैडम जी कह रही है। बाद में भुगतान में कोई परेशउनी नहीं होती दो साक्ष्य की जरूरत पड़ेगी। वे भी मिल जाएंगे न।’’
‘‘हां–हां,दो साक्ष्य तो आसानी से मिल जाएंगे।’’
‘‘क्यों मैडम, नॉमिनेशन कैंसल भी हो सकती है क्या?’’
लिखते–लिखते हाथ रोककर पुष्पा देवी ने पूछा।
‘‘हां–हां, क्यों नहीं। बस एक साक्ष्य चाहिए।’’
‘‘एक साक्ष्य तो आसानी से मिल जाएगा मुझे।’’
मुझे लगा मैं सामने एफ.डी. के काग़ज नहीं,शतरंज की बिसात देख रही हूं।
(हंस,जून 2001)

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