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लघुकथाएँ - देशान्तर - ली छ्याओया
पत्थर के फूल

वह क्या ढूंढ़ रही थी?
सूर्या‍र्स्त के समय। दूर बहुत दूर, नदी के बड़े पाट पर। एक लड़की किसी अकेली नन्हें सारस की तरह भटक रही थी। एक या दो घंटे के दौरान वह कभी पत्थरों के ढेर पर उकड़ूं बैठकर तो कभी धीरे–धीरे खड़े होकर इधर–उधर किसी चीज की तलाश में लग जाती थी।
यह लड़की किस घर की है? कसबे से आधा किलोमीटर दूर इस वीरान पाट पर क्यों आती है? उसका क्या खो गया है?
मैं मछली पकड़ने की बंसी को नदी के किनारे रखकर उसकी ओर गया।
उस लड़की ने मेरे कदमों की हलकी आहट सुन फौरन सिर उठाकर मुझे देखा।
लड़की की उम्र लगभग आठ वर्ष की थी। वह बहुत सुन्दर थी। उसकी दो बड़ी–बड़ी आंखें थीं। पर उसके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। उसके सफेद फ्राक पर कुछ गन्दे धब्बे थे। उसकी चोटी ढीले–ढीले तितलीनुमा फीते से बंधी हुई थी, जिसे देखकर आसानी से पता लगाया जा सकता था कि यह फाता उसने खुद ही बांधा था।
यह देखकर कि वह सजग नजरों से मुझे ताक रही है, मैंने बड़े कोमल स्वर में उससे पूछा, ‘‘छोटी बहन, तुम क्या ढूंढ़ रही हो?’’
वह अपनी आंखें मूंदे बेचैनी से एक कंकड़ हाथ में उलट–पुलट रही थी।
मैंने कहा, ‘‘क्या मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकता हूं?’’
बड़ी देर के बाद,मेरे उसकी ओर इतना ध्यान देने की वजह से, उसने खामोशी तोड़ी, ‘‘मैं पत्थर के फूल ढूंढ़ रही हूं।’’
‘‘पत्थर के फूल?’’
यह सुनकर मुझे बहुत गुस्सा आया। जरूर किसी ने इस लड़की को धोखा दिया था। क्या पत्थरों से फूल निकलेंगे?’’
‘‘तुम्हें इस फूल के बारे में किसने बताया?’’
वह खामोश नदी के लहरदार पानी को ताकती रही।
‘‘यह एकदम धोखा है, छोटी बहन!’’
‘‘नहीं, अम्मा ने बताया है,’’ उसने धीमे स्वर में कहा।
अम्मा? क्या उसकी मां भी...मैं अचंभे में पड़ गया।
थोड़ी देर बाद उसने सारी बात बताई। उसके मां–बाप के बीच हर रोज झगड़ा होता रहता था, कभी–कभी मारपीट तक हो जाती थी। चाचाओं और मौसियों ने यह देखकर उन दोनों के झगड़े खत्म करवाने के लिए कई बार बातचीत की। लेकिन उसकी मां हर बार कहती, ‘‘जब पत्थरों से फूल निकल जाएंगे और घोड़ों के सिरों पर सींग उग जाएंगे तो हम दोनों के बीच का झगड़ा खत्म हो जाएगा।’’
इस पर मुझे बहुत ताज्जुब हुआ।
‘‘मैं कई दिनों से यहां पत्थर के फूल ढूंढ़ रही हूं, लेकिन मुझे एक भी नहीं मिला है।’’
उसके कोमल चेहरे पर उदासी गहरा गई। अचानक उसने मुझसे पूछा, ‘‘चाचाजी, क्या आप अपने रिश्तेदारों से मिलने हमारे कसबे में आए हैं? क्या आपके वहां पत्थर के फूल होते हैं?’’ उसकी चिंतापूर्ण आंखों में आशा का प्रकाश चमक रहा था।
उन आंखों को देखकर मुझे बहुत दुख हुआ, पर मेरे पास उसके सवाल का जवाब न था!

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