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लघुकथाएँ - देश - माधव नागदा
असर

‘‘चाकू घुसा दूँगा।’’ तीन साल के पिंटू ने सब्जी काटने का चाकू उठाया और मेहमानों की तरफ आँखें तरेरकर बोला। हालांकि उसके चेहरे पर बालसुलभ भोलापन था। सभी मेहमान बच्चे की इस कातिलाना अदा पर मुस्करा दिए।
शर्माजी बोले, ‘‘बच्चा बड़ा होनहार है। पूत के पग पालने में दिख रहे हैं।’’
पिंटू के पापा शर्माजी के व्यंग्य को भाँप गए। अपना बचाव करते बोले, ‘‘इस टी.वी. ने सबको भ्रष्ट कर दिया है। बच्चों का मन तो फूल की तरह कोमल होता है। और इनके सामने परोसे जाते हैं सेक्स, हिंसा। बच्चे जैसा देखेंगे, वैसे ही तो बनेंगे।’’
पापा का भाषण शायद लंबा चलता, मगर एक और धमाका हुआ। पिंटू की मम्मी ने पुचकारते हुए कहा, ‘‘पिंटू बेटा, यह गंदी आदत है। चाकू मुझे दे दे। ’
पिंटू बेटे ने माँ को भी नहीं कहा, ‘‘चाकू घूसा दूँगा,’’ साथ ही एक भद्दी –सी गाली अपने डायलॉग में और जोड़ दी। माँ को बेटे की गाली चाकू के वार से भी अधिक मर्मांतक लगी। बच्चा तीन साल का, गाली तीस साल जितनी भारी–भरकम।
‘‘और यह गाली? क्या यह भी टी.वी. से?’’ शर्माजी ने फिर छेड़ा।
‘‘नहीं, यह अपने बाप से।’’ पिंटू की मम्मी ने अपने पति की ओर कोपदृष्टि डाली। पति महोदय को भी गुस्सा आ गया। बोले, ‘‘मेहमानों के सामने तो अपनी जीभ ठिकाने रखा कर हरामज़ादी !’’

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