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लघुकथाएँ - संचयन - महेश दर्पण
भय
‘‘यह आनन्द हैं। इनकी सबसे बड़ी खूबी है–आदमी के भीतर का सच जान लेना। तुमसे पहली बार मिल रहे हैं, पर थोड़ी ही देर में तुम्हारे भीतर की एक–एक परत खोलकर रख देंगे।’’ गली के मोड़ पर मिले मित्र ने उनसे मेरा परिचय करवाते हुए कहा।
‘‘आपसे मिलकर बहुत खुशी हुई मिस्टर आनन्द।’’ मैंने औपचारिकता निभाईं
‘‘आइए, कुछ देर गप–शप हो जाए।’’ कहा तो उसने बेहद सहज अन्दाज में था, पर मैं घबरा गया। कहीं यह आदमी मुझे पढ़ लेना तो नहीं चाहता?
‘‘देखिए, बात दरअसल यह है कि मैं बच्चे की दवाई लेने जा रहा हूँ....आप लोग बैठिए, मौका लगा तो मैं जरूर आऊँगा।’’ कहते हुए मैंने बचने का रास्ता निकाल ही लिया।
गली पार करते–करते मैं पसीना–पसीना हो आया था, यह सोचते हुए कि ऐसे लोग खतरनाक होते हैं। मैं उनके साथ बैठ जाता तो....?


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