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लघुकथाएँ - देश - मार्टिन जॉन
ये कैसी डगर है?

बरसों बाद जब वह अपना गाँव आया तो सबसे पहले उस स्कूल को देखने पहुँच गया जहाँ उसने अपनी शुरूआती तालीम पाई थी, स्कूल के करीब पहुँचते ही उसके कानों से उसी गीत के बोल टकराए जिसे वह सांस्कृतिक कक्षा में प्रतिदिन हेडमास्टर के स्वर में ‘स्वर मिलाकर’ समस्त छात्रों के साथ गाया करता था, ‘इंसाफ की डगर पे बच्चों’ दिखाओ चलके, ये देश है तुम्हारा नेता तुम्हीं हो कल के।’
उसे हैरत हुई, हेडमास्टर साहब अभी भी इस गीत का गायन बरकरार रखे हुए हैं। उसे हैडमास्टर से मिलने की तीव्र इच्छा हुई। समूहगीत का गायन खत्म होते ही जा पहुँचा उनके कार्यालय में। परिचय देते ही वह उसे पहचान गए। इज़ाजत पाकर वह कुर्सी खींच कर बैठ गया। हाल समाचार के बाद बातचीत का दौर शुरू हुआ। घर, परिवार, गाँव समाज, राजनीति से गुज़रते हुए बातचीत का सिलसिला देश पर जा टिका,
‘‘सर,एक बात पूछूँ?’’
हाँ, हाँ क्यों नहीं।’’
‘‘आप एक लम्बे अरसे से बच्चों को वही गीत गवा रहे है....गीत गाने वाले कल के बच्चे आज बड़े हो ही गए होंगे।’’
‘‘ हाँ हाँ बिल्कुल! जैसे तुम।’’
‘‘तो सर, इस दौरान आपको कोई ऐसा बच्चा मिला जिसने इस गीत को अपने जीवन में उतारा हो? मेरा मतलब कोई ऐसा नेता, अफ़सर देशभक्त....’’
सवाल सुनकर उन्होंने अपना चश्मा उतारकर टेबुल पर रख दिया, एक लम्बी साँस खींचकर गर्दन पीछे कर ली। एक पल यथावत् रहने के बाद इन्होंने पहलू बदला। गर्दन सीधी कर उसकी आँखों में झाँका। कुछ कहने के लिए उनके होंठ अभी खुलते कि उन दोनों की नज़र उस व्यक्ति पर पड़ी जो तेज कदमों से कार्यालय में दाखिल हुआ और बड़ी बेअदबी से कुर्सी खींचकर बैठ गया। बैठते ही शुरू हो गया ।
‘‘इम्तहान कब शुरू हो रहा है सर?’’
‘‘अगले सप्ताह से।’’ हेडमास्टर ने धीमे स्वर में ज़वाब दिया।
‘‘देखिए, इस मर्तबा मेरा बेटवा सोनू को पास करवाना ही पड़ेगा।’’
‘‘अच्छा लिखेगा तो पास करेगा ही।’’
‘‘ऊ सब छोडि़ए सर, दो साल तो अटका दिया उसको। इस बार ऐसा नहीं होना चाहिए।’’
‘‘लेकिन ऐसा करने से उसकी नींव खराब हो जाएगी।’’
‘‘उसकी नींव का फिकर मत कीजिए सर। आप मेरा फिकर करें।’’
‘‘आपको क्या हुआ सूरजभान जी?’’
‘‘सर, आप तो जानबे करते हैं, जब हम इस स्कूल में पढ़ते थे तो गाँव समाज का कितना ख्याल रखते थे। अब मौका आया है कुछ बड़ा करने का....अगले महीने पंचायत का चुनाव होने वाला है, आपको जानकर खुशी होगी कि हम भी चुनाव लड़ रहे हैं।’’
‘‘लेकिन सोनू के पास फेल होने से इसका क्या संबंध?’’
सूरजभान की बातें उन दोनों को पहेली सी लग रही थी।
‘‘आप नहीं समझ रहे है सर, देखिए हम समझाते हैं आपको। अगर सोनू फेल हो गया तो मेरी साख गिर जाएगी। गाँववाले यही समझेंगे कि अपने बेटवा को पास करवाने जैसा मामूली काम ई उम्मीदवार नहीं करा सका तो आगे चलकर हमारा काम क्या खाक करेगा......हमारा इज्ज़त और भविष्य का सवाल है सर। आपको मेरा मदद करना ही पड़ेगा।’’ कहकर वह झटके से उठा और तेज कदमों से बाहर हो गया।
दफ्तर में सन्नाटा पसर गया। तूफान गुजर जाने के बाद का सन्नाटा। कश्ती डूब जाने के बाद की मातमी खामोशी। हेडमास्टर साहब ने बुझी आँखों से अपने पुराने छात्र को निहारा। आँखें जैसे कह रही हो, ‘मिल गया न ज़वाब।’

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