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ओ ऐ मैं रोहित को रोज लंच अपनी ओर से कुछ ज्यादा ही देती थी, बढ़ती उमर में स्वाभावकि समझ कर। पर वह स्कूल से आते ही खाने को कुछ ऐसे मांगता जैसे कि भूखा आ रहा हो। मुझे बड़ा गुस्सा आता पर कहती कुछ नहीं। एक दिन रोहित एक लड़के के साथ घर लौटा और बोला, "मम्मी, यह आकाश है, मेरा बेस्ट फ्रेंड।" जब रोहित कपड़े बदल रहा था तो आकाश मुझसे बोला, "आंटी आप खाना बहुत अच्छा बनाती है।" अच्छा तो यह बात है, अब मेरी समझ में आया। मैं एकदम न जाने क्यों गुस्से से झुंझला उठी। अंदर जाकर मैं रोहित पर बरस उठी, "क्यों, मैं इतनी मेहनत करके अपने हाथ से नाता बनाकर तुम्हें देती हूं और तुम इस आकाश को उसी में से खिला देते हो, आखिर क्यों?" टीशर्ट पहनते रोहित के हाथ रुक गए। बड़ी मासूमियत से बोला, "इसकी मम्मी नहीं है न, इसके घर में खाना नौकर बनाता है पर इसका मन मम्मी के हाथ का खाना खाने का होता है, इसलिए।"
मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर कहीं कुछ भीग उठा है। न जाने क्यों ऐसा लगा कि मैं मां तो बहुत पहले बन चुकी हूं पर मातृत्व आज मिला है।
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