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लघुकथाएँ - देशान्तर - नजीब महफूज
प्रार्थना

मेरी उम्र सात से भी कम रही होगी, जब मैंने क्रान्ति के लिए प्रार्थना की।
उस सुबह भी मैं रोज की तरह दाई की उंगली पकड़कर प्राथमिक पाठशाला की ओर जा रहा था। लेकिन मेरे पैर इस तरह घिसट रहे थे जैसे कोई जबरदस्ती मुझे कैदखाने की ओर खींचे लिए जा रहा होगा। मेरे हाथ में कापी,आँखों में उदासी और दिल में सबकुछ चकनाचूर कर डालने की अराजक मन:स्थिति थी।
नेकर के नीचे नंगी टांगों पर हवा बर्छियों की तरह चुभ रही थी। स्कूल पहुँचने पर बाहर का फाटक बंद मिला। दरबान ने गम्भीर शिकायती लहजे में बताया कि प्रदर्शनकारियों के धरने की वजह से कक्षाएं आज भी रद्द रहेगी।
खुशी की एक जबरदस्त लहर ने मुझे बाहर से भीतर तक सराबोर कर दिया।
अपने दिल की सबसे अन्दरूनी तह से मैंने इन्कलाब के जिन्दाबाद होने की दुआ मांगी।

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