गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथाएँ - देश - निर्मला सिंह
आक्रोश

‘‘अरे क्यों मार रहे हो स्नोई को? विचारा वैसे ही ठंड से सिकुड़ रहा है।’’ मेमसाहेब ने अपने पति से कहा।
‘‘भई, वह अपने नये सोफा सैट पर बैठ गया। सारा सोफा ही खराब कर दिया।’’
‘‘तो क्या हुआ विचारा बच्चा है उसे कहाँ इतनी समझ है कि वह जमीन और सोफे में फर्क कर पाए। वह तो प्यार का भूखा है।’’
‘‘अरे, ओ कालू आ, चल ले जा इसे, घुमा दे थोड़ी देर और हाँ इसकी जंजीर कस कर पकड़े रखना...बच्चा हैं कहीं खो न जाए...।’’ ‘‘जी मेमसाहेब!’’ बेचारा दस वर्ष का बालक कालू स्नोई को पकड़ने लगा....कभी वह सोफे के नीचे कभी सोफे पर....तो कभी पलंग पर चढ़ जाता। कालू ने स्नोई को पलंग पर चढ़ कर उतारा ही था कि मेमसाहेब का करारा थप्पड़ उसके गाल पर पड़ गया और वह चिल्लाने लगीं–
‘‘बदतमीज कहीं का....तुझे रत्ती भर भी तमीज नहीं है सारी पलंग की चादर गंदी कर दी पाँव रख कर....चल हट यहाँ से....।’’
बेचारा कालू पलंग, कभी स्नोई द्वारा गंदा किया हुआ सोफा, कभी मेमसाहेब को देख कर बाहर चला गया।
और थोड़ी देर बाद बाहर से स्नोई के रोने–चिल्लाने की आवाजें आने लगीं। साहेब और मेमसाहेब ने बाहर आकर देखा–
बेचारा स्नोई लंगड़ाता हुआ कूं–कूं.....कर रहा है और कालू खूब तेजी से उसे छोड़ कर भागा जा रहा है।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°

 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above