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लघुकथाएँ - देश - हबीब कैफी
पड़ोसी


लोग अभी रोज्ञमर्रा का जरूरी सामान खरीदने में व्यस्त थे कि शहर में कर्फ़्यू लगा दिया गया। कर्फ़्यू का ऐलान होते ही सब लोग अपने-अपने घरों की तरफ लपके। हड़बड़ी में किसी के जूते-चप्पल तो किसी का जरूरी सामान ही पीछे छूट गया। अफरातफरी में छोटी-मोटी दुर्घटाएं भी हो चली थीं। इसके बावजूद लोग घरों की तरफ भागे जा रहे थे। और देखते ही देखते सड़कें सूनी हो गई।
कर्फ़्यू लगा सो लगा लेकिन हिंसक वारदातों, आगजनी और लूटपाट के चलते यह खत्म होने में ही नहीं आ रहा था। लोग, खासतौर पर बच्चे घरों में अकुलाने लगे। उन लोगों की हालत तो और ज्यादा खराब हो गई जो रोज कुआं खोदकर पानी पीते थे। ऐसे घरों में खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका था और वहां भुखमरी के हालात बने हुए थे।
ऐसे ही एक घर में फाका करते लोगों का यह तीसरा दिन था। घर के बड़े सदस्य तो जैसे-तैसे जब्त किए बैठे थे, लेकिन बच्चों का बुरा हाल था। भोजन के अभाव में वे बिलखना तक भूल चुके थे। ऐसे में दीवार के पार पड़ोस में कुछ खटरपटर कानों में पड़ी तो घर के तमाम लोग सहम कर संभल गए। आशंकाओ से घिरे घर के सदस्यों को सोचते देर नहीं लगी कि दूसरे सम्प्रदाय के पड़ोसी की शह पर दंगाई इधर आ पहुंचे हैं, और किसी भी क्षण उनका अनिष्ट हो सकता है। थोड़ी देर बाद ही खटरपटर की गति बढ़ गई। यह देखकर इन लोगों ने संभावित हमले से बचाव और प्रत्याक्रमण की व्यूह रचना तक कर डाली। और जब उधर से दीवार पर बाकायदा थपकियां दी जाने लगी तो उनकी आशंकाएं यकीन में बदल गई कि निश्चय ही हमले लूटपाट, छुरेबाजी और आगजनी की योजना तक को अंतिम रूप दिया जा चुका है। ये तमाम लोग बचाव और प्रत्याक्रमण तक के लिए तैयार थे। और देखते ही देखते दीवार पर हथौड़े जैसी किसी भारी चीज से चोटें की जाने लगीं। यह दीवार कोई बहुत मजबूत नहीं थी। आन की आन में वहां आदमी के आने-जाने लायक शिगाफ हो गया। इधर के लोगों ने देखा-पड़ोसी खाने-पीने का बहुत सारा सामान लिए दाखिल हो रहा है।

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