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मजहबी रूकावटों के बीच मानवता : युगल की लघुकथा नामांतरण:कमल चोपड़ा
 

साम्प्रदायिक कट्टरता, दंगों के उन्माद और वैमनस्य, नफरत के विषाक्त माहौल के बीच मानवता के जीवित होने की आहट सुनाई देना किसी के भी मर्म को छू सकता है।
युगल की लघुकथा नामांतरण ऐसी ही एक लघुकथा है जो मानवीय संवेदना को झकझोरती है।
नामांतरण लघुकथा में आर्थिक रूप से विपन्न और बेसहारा बच्चे का काम की तलाश में आना कानून की उस विसंगति को उजागर करता है जो बच्चों से काम करवाने के लिए रोक लगाता है लेकिन उनकी सहायता नहीं करता।
बच्चों के प्रति स्त्री के मनमें उपजी दया और सहानुभूति को उसका विधर्मी होना फिर से अटकाता और रोकता है।
बच्चे का अपनी अपनी निक्कर सरका कर अपनी छुछड़ी दिखा कर अपने धर्म का सबूत देने से जाहिर होती निर्दोष मासूमियत को देखकर स्त्री की मानवीयता और ममत्व जागृत होना मजहब के बांटने वाले स्वरूप की ऊँची रुकावटों के क्षणांश में ढह जाने का इस लघुकथा में बहुत मार्मिक चित्रण हुआ है। मजहब के जालों और अटकनों का नाम बदलने मात्र से हटने और पात्रों के बीच मां बेटे जैसे पवित्र और मानवीय संबंधों के स्थापित होने को संवेदना के स्तर पर उकेरा गया है।
इस लघुकथा की प्रस्तुति सहज शिल्प और शैली में मर्मस्पर्शी ढंग से हुई है। जटिल समस्या पर होने के बावजूद वस्तु शिल्प और भाषा में एक सहजता और सरलता है जिसे मानवीय संवेदनाओं के स्तर पर विन्यस्त किया गया है। इस रचना की भाषा कथ्य के अनुकूल है, मंजी हुई और अपने अभिप्राय को स्पष्ट करने में समर्थ है। सांकेतिकता इस लघुकथा की एक विशेषता है। पात्रों की विवशता, पीड़ा और मनोभावों का बहुत विश्लेषण हुआ है। यह लघुकथा अपनी सृजनात्मकता में न केवल प्रभावित करती है बल्कि सोचने को भी बाध्य करती है। इसीलिए यह मेरी पसन्द की लघुकथा है।

नामांतरण: युगल

‘‘अम्मा!’’
‘‘क्या है रे?’
‘‘काम चइए अम्मा!’’
‘‘इतना छोटा लड़का...क्या काम करेगा तू?’’
‘‘झाड़ू–पोंछा, बाज़ार से सौदा लाऊँगा, आप के पांव दबाऊँगा।’’
‘‘कानून वाला बोलता है, बच्चे से काम लेना जुर्म है।’’
‘‘मेरा दादा अंधा है। मां बीमार है।’’
‘‘और बाप?’’
‘‘कमाने गया था। बहुत दिन हुए, नहीं लौटा।’’
‘‘कोई और जगह देख बिट्टू! मेरे यहाँ काम नहीं है।’’
‘‘अम्मा, सब बड़ा लोग यही बोलता। घर वाला भूखा तो नहीं मरेगा?’’
लड़के की आँखें डबडबा आई। वे डबडबाई आँखें सविता शर्मा को विचलित करें, इसके पहले ही वह अंदर चली गई। कोई पांच–सात या दस मिनट बाद वह बाहर निकलीं, तो लड़का बरामदे की सीढ़ी पर घुटने में सिर डाले सिसक रहा था। दो क्षण वह खड़ी रहीं। पूछ बैठीं–‘‘तू गया नहीं रे?’’
लड़के ने सिर ऊपर किया। गाल आँसुओं से भींगे थे। शर्ट ओछी और मैली थी। लड़के के मुँह से बोल फूटा, ‘‘कहाँ जाऊँ अम्मा?’’ वह उठकर खड़ा हो गया। सविता शर्मा को देखता रहा, बोला, ‘‘अम्मा, आपके जानते कोई है, जो मेरे को काम दे?’’
सविता जी को थोड़ा सहानुभूति हुई, ‘‘क्या नाम है तेरा?’’
‘‘नूरुल्ला।’’
‘‘तू कटुआ है...मुसलमंटा?’’
न्रुरुल्ला अनबूझ दृष्टि से सविता देती को ताकता रहा। आँखें बिल्कुल निर्दोष। सविता देवी के जिस मन में आया था कि लड़का निहायत ज़रूरतमंद है, रख लेते हैं, वही मन अटक गया। धर्म–जाल...नाहक। उन्होंने वैसे ही पूछ लिया, ‘‘तेरा खतना हो गया है?’’
‘‘खतना क्या?’’
‘‘बचपन में मुसलमानों की छुछड़ी काटी जाती है।’’ कहते–कहते सविता देवी हँस पड़ीं।
लड़का बरामदे के ऊपर चढ़ गया और निश्छल भाव से अपना निकर नीचे खींच लिया। जांघ तक नंगा। सविता देवी, ‘‘अरे–अरे! क्या कर रहा है! बदमाश!’’ कहती हुई हँसने लगीं, ‘‘शर्म नहीं आती?...ऊपर का निकर’’
‘‘अम्मा, आपके आगे शरम कैसी?’’
सविता देवी का शंकालु मन तर्क–वितर्क करता रहा। लड़के का कोई ठीक अता–पता नहीं। बहुत ग़रीब और बेसहारा है। रखें या नहीं। लड़के ने अपने दादा का, बाप का, मुहल्ले का पता बतलाया। सविता देवी ने बेपरवाही से सोचा, पता लगा लिया जाएगा। बोलीं, ‘‘अंदर आ जा। कोई पूछे, तो नाम बतलाना, नीरूलाल। क्या बतलाएगा?’’
लड़के के ओठों पर अजब–सी मुस्कान खिली, ‘‘नीरूलाल।’’

सुकेश साहनी की लघुकथा -कसौटी : अपसंस्कृति से उत्पन्न विद्रूप का प्रतिवाद:
कमल चोपड़ा

बहुराष्ट्रीय कंपनियों के आगमन से हो रहे परिवर्तन और अपसंस्कृति के हमलों से उत्पन्न विद्रूप का प्रतिवाद करने वाली संख्या में बहुत कम लघुकथाओं में से सुकेश साहनी की लघुकथा कसौटी एक श्रेष्ठ लघुकथा है। यह संवेदना को झकझोरने वाली रचना है।
भारतीय संस्कृति जीवन मूल्यों और कुलीन संस्कारों के स्थान पर गिरी हुई छिछोरी,गंदी और घिनौनी अपसंस्कृति का प्रसार एक भारतीय के लिए चिंता का विषय है।
इस लघुकथा में सुशिक्षित कुलीन और काबिल लड़की के परीक्षा पास करके मेरिट में आने के बावजूद आन लाइन परीक्षा में पूछे गए गंदे,घिनौने और वाहियात प्रश्नों के उत्तर उनकी अपसंस्कृति के अनुकूल न होने के कारण उस लड़की को रिजेक्ट कर दिए जाने के कुचक्र को बेपर्द किया गया है। जो कि पर्सनालिटी टेस्ट के नाम पर चलाया जा रहा है। जिन सदगुणों और सुसंस्कारों के लिए प्राथमिकता दी जानी चाहिए उल्टा उन्हीं के चलते उसे रिजेक्ट किए जाने का संवेदनात्मक चित्रण है।
ऐसी कसौटी जो कि भारतीय संदर्भ में बहुत संभव न पाकर उसे कम–से–कम फॉर्टी नॉटी तक आवश्यक करना भारतीय जन मानस को आहट करने और स्थिति की गंभीरता को व्यक्त करने के लिए काफी है।
इस रचना को प्रस्तुत करने का ढंग भाषा, शिल्प और दृष्टिबोध तटस्थ भाव से पात्रों के मनोविश्लेषण के साथ बेहतर मानवीय मूल्यों की चिंता को बेहद संयमित और संतुलित ढंग से व्यक्त किया गया है। कथ्य में नवीनता के साथ गहनता और सांकेतिकता है जो लघुकथा के लिए उपयुक्त है। छोटे वाक्यों में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग रचना की विश्वसनीयता और प्रामाणिकता को बढ़ाता है। ऐसे नाजुक विषय पर होने के बावजूद भाषा में एक शालीनता है जो इसे एक श्रेष्ठ रचना बनाती है। एक मध्यवर्गीय परिवार की लड़की और उसके पिता ऐसे पात्र हैं जो पाठक को अपने आसपास के जाने–पहचाने से लगते हैं। कथ्य शिल्प और विचार की दृष्टि से यह एक उत्कृष्ट और उल्लेखनीय रचना है। इसलिए यह मेरी पसंद की लघुकथा है।

कसौटी: सुकेश साहनी

खुशी के मारे उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। साइबर कैफे से बाहर आते ही उसने घर का नम्बर मिलाया।
‘‘पापा!...’’ उससे बोला नहीं गया।
‘‘हमारी बेटी ने किला फतेह कर लिया! है न?’’
‘‘हाँ, पापा!’’ वह चहकी, ‘‘मैंने मुख्य परीक्षा पास कर ली है। मेरिट में दूसरे नम्बर पर हूँ !’’
‘‘शाबाश! मुझे पता था... हमारी बेटी है ही लाखों में एक!’’
‘‘पापा, पंद्रह मिनट के ब्रेक के बाद एक माइनर पर्सनॉलिटी टेस्ट और होना है। उसके फौरन बाद हमें अपाइंटमेंट लेटर दे दिए जाएंगे। मम्मी को फोन देना...’’
‘‘इस टेस्ट में भी हमारी बेटी अव्वल रहेगी। तुम्हारी मम्मी सब्जी लेने गई है। आते ही बात कराता हूँ। आल द बेस्ट, बेटा!’’
उसकी आँखें भर आईं। पापा की छोटी–सी नौकरी थी, लेकिन उन्होंने बैंक से कर्जा लेकर अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाई थी। मम्मी–पापा की आँखों में तैरते सपनों को हकीकत में बदलने का अवसर आ गया था। बहुराष्ट्रीय कम्पनी में एग्ज़ीकयूटिव आफिसर के लिए उसने आवेदन किया था। आज आनलाइन परीक्षा उसने मेरिट में पोजीशन के साथ पास कर ली थी।
दूसरे टेस्ट का समय हो रहा था। उसने कैफे में प्रवेश किया। कम्प्यूटर में रजिस्ट्रेशन नम्बर फीड करते ही जो पेज खुला, उसमें सबसे ऊपर नीले रंग में लिखा था–‘‘वेलकम–मिस सुनन्दा!’’ नीचे प्रश्न दिए हुए थे, जिनके आगे अंकित ‘यस’ अथवा ‘नो’ को उसे ‘टिक’ करना था...
विवाहित हैं? इससे पहले कहीं नौकरी की है? बॉस के साथ एक सप्ताह से अधिक घर से बाहर रही हैं? बॉस के मित्रों को ‘ड्रिंक’ सर्व किया है? एक से अधिक मेल फ़्रेंड्स के साथ डेटिंग पर गई हैं? किसी सीनियर फ़्रेंड के साथ अपना बैडरूम शेअर किया है? पब्लिक प्लेस में अपने फ़्रेंड को ‘किस’ किया है? नेट स‍र्फ़िंग करती हैं? पार्न साइटस् देखती हैं? चैटिंग करती हैं? एडल्ट हॉट रूम्स में जाती हैं? साइबर फ़्रेंडस के साथ अपनी सीक्रेट फाइल्स शेअर करती हैं? चैटिंग के दौरान किसी फ़्रेंड के कहने पर खुद को वेब कैमरे के सामने एक्सपोज़ किया है?.....
सवालों के जवाब देते हुए उसके कान गर्म हो गए और चेहरा तमतमाने लगा। कैसे ऊटपटांग और वाहियात सवाल पूछ रहे हैं? अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया–बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, विश्व के सभी देशों की सभ्यता एवं संस्कृति को ध्यान में रखकर क्वेश्चन फ़्रेम किए गए होंगे।
सभी प्रश्नों के जवाब ‘टिक’ कर उसने पेज को रिजल्ट के लिए ‘सबमिट’ कर दिया। कुछ ही क्षणों बाद स्क्रीन पर रिजल्ट देखकर उसके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। सारी खुशी काफूर हो गई। ऐसा कैसे हो सकता है? पिछले पेज पर जाकर उसने सभी जवाब चेक किए, फिर ‘सबमिट’ किया। स्क्रीन पर लाल रंग में चमक रहे बड़े–बड़े शब्द उसे मुँह चिढ़ा रहे थे– ‘सॉरी सुनन्दा! यू हैव नॉट क्वालिफाइड। यू आर नाइंटी फाइव परसेंट प्युअर (pure)। वी रिक्वाअर एटलीस्ट फोर्टी परसेंट नॉटी (naughty )।’

 

 
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