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सुकेश साहनी और असगर वजाहत की लघुकथाएँ
 

प्रेम शशांक

लगभग पच्चीस बरस पहले की बात है जब मै पत्र–पत्रिकाओं में लघुकथाएँ देखता था तो मुझे लगता थ कि यही वह विधा है जहॉ कम मशक्कत मे ज्यादा से ज्यादा पत्र–पत्रिकाओं मे चमका जा सकता है । इसी प्रयास के तहत मैने उन दिनों कुछ लघुकथाएँ लिखी लेकिन मैने यह भी महसूस किया कि जो बात उन दिनों इस विधा मे सक्रिय सुकेश साहनी और जगदीश कश्यप की लघुकथाओं मे थी वहॉ पहुँचना इतना सरल नही है । जगदीश कश्यप अब नहीं रहे लेकिन एक सुखद बात यह है कि अन्य लघुकथाकारों के बर–अक्स सुकेश साहनी वह फर्क( बढ़त )आज भी बनाए हुए है ।
सुकेश साहनी चूँकि इस विधा मे न केवल लंबे समय से सक्रिय है बल्कि जिस शिद्दत के साथ इस विधा के प्रति जीने–मरने की हद तक समर्पित है, उनकी लघुकथा निश्चय ही इस विधा के लिए मानदंडों पर खरी कही जा सकती हैं बल्कि अन्य लघुकथाकारों के लिए आगे चलती हुई जलती मशाल कही जा सकती है ;क्योंकि सृजनात्मक स्तर पर वह आज भी स्पृहा जगाते है और समय–समय पर उनके रचनात्मक अनुदान मे इस विधा के विषय को लक्ष्य किया जा सकता है । ऐसा लघुकथा के संदर्भ मे ही कहा जा सकता है । यह एक बड़ी बात है कि एक रचनाकार के रचनात्मक अनुदान के संदर्भ मे उस विधा के विकास को लक्ष्य किया जाए जो लोग इस विधा से गहरे स्तर पर जुड़े हैं उन्हें इसमे अतिशयोक्ति नजर नही आएगी ।उनकी दो प्रकाशित लघुकथाएँ क्रमश: ‘बालीवुड डेज’ और कसौटी कथादेश जून 07 का जिक्र करना चाहूँगा । ये दोनों लघुकथाएँ न केवल शिल्प मे नयापन लिये हुए हैं बल्कि एक तरह की ताजगी भी लिये हुए हैं । ये ताजगी युगबोध से उद्भूत है । किसी भी रचनात्मक विधा के संदर्भ मे यह बहुत जरूरी है कि वह अपने समय–समाज की अश्लीलता के प्रति प्रतिक्रिया करें । इस दृष्टि से मुझे इन लघुकथाओं के अलावा कथाकार असगर वजाहत की दो लघुकथाएँ बहुत प्रिय है । एक ‘आग’ जो समकालीन भारतीय लघुकथाओं मे संकलित है और दूसरी ‘नाम’ उनके ताजा कहानी–संग्रह ‘ मै हिन्दू हूँ ’ में संगृहीत है ।

सुकेश साहनी और वजाहत में वैसे तो सीधा कोई साम्य नही है । सुकेश साहनी लघुकथा मे प्रतिष्ठित नाम है और असगर वजाहत कभी–कभार ही लघुकथा में लिखते है । लेकिन इसके बावजूद युगबोध के संदर्भ में दोनों की सजगता काबिले तारीफ है । ‘बालीवुड डेज’ सुकेश साहनी की लिखी बहुत अच्छी लघुकथा है ।यह इसमें डायरी का शिल्प चुनते है । शिल्प के स्तर पर यह नयापन निश्चय ही विधा को एक ताजगी देता है । यह बच्ची की डायरी है । इसमे दस दिनों की छोटी–छोटी अनुभूतियॉ अलग–अलग तिथियों मे दो छह पंक्तियों मे अभिव्यक्त देती है । इन तिथिवार पंक्तियों मे न केवल उसकी निजी भावनाएँ प्रकट होती है बल्कि इनमे हमारे समय समाज की गतिशीलता को भी लक्ष्य किया जा सकता है । चाहे टी0वी0 खराब होने पर बोरियत की अनुभूति हो अथवा रेडियों पर गाने सुनने का क्रेज अथवा मम्मी को अपने पसंदीदा हीरों के कहने पर उनके साथ चले जाने का दिवास्वप्न का जवाब हो अथवा पी0सी0 पर वालपेपर सेट करने को लेकर पिता–पुत्री की द्वन्द्वात्मक दुविधा। इन दस दिनों की छोटी–छोटी अनुभूतियों के प्रकटीकरण मे हमारे समाज की कई महत्वपूर्ण परतें खुलती है ।समाज की गतिशीलता के संदर्भ मे मानवीय स्तर पर हो रहे बदलाव पर लघुकथाकार की पैनी नजर इस लघुकथा की शक्ति है । बच्चों के स्तर पर मम्मी–पापा के स्तर पर, शिक्षक के स्तर पर, मित्रता के स्तर पर , स्त्री–विमर्श के संदर्भ मे मध्यमवर्गीय स्त्रियों मे मानसिक स्तर पर हो रहे बदलावों के स्तर पर छोटी–छोटी अनुभूतियों के पीछे जो चीजे नजर आती है और वर्तमान समय में समाज के परिदृश्य का जो झरोखा खोलती है वहॉ से ताजी हवा के साथ कई विचारणीय बिन्दु भी यह लघुकथा छोड़ती है । कसौटी इसी चीज को आगे बढ़ाती है । हम किस तरह के समाज–निर्माण मे संलग्न है अथवा किस सुनहरे भविष्य की ओर अग्रसर है । यह लघुकथा ऐसे ही षडयंत्र का पर्दाफाश करती है । उदारीकरण और भूमण्डलीकरण की आड़ में मल्टीनेशनल कम्पनियॉ और कार्पोरेशन हमारी सम्यता और संस्कृति को किस तरह तहस–नहस कर डालने को उतारू है, इसका एक भविष्य का खाका इस लघुकथा के माध्यम से प्राप्त होता है । लड़के–लड़कियों की शिक्षा के समान अवसर की उपलब्धता क्या भविष्य मे भारतीय स्त्री को एक सेक्स उत्पाद से हटकर सोचने समझने का मौका नही दे सकेगी यह सत्योद्घाटन इस लघुकथा के माध्यम से जिस तरह से प्राप्त होता है । उससे इस षडयंत्र की एक झलक इस लघुकथा मे पाई जा सकती है कि योग्यताओं की संपूर्णता के बाजार स्त्री को उसके शरीर से पृथक कोई पहचान नही होगी । वह बाजार के नजरिए से एक सेक्स आब्जेक्ट ही रहेगी । स्त्री–अस्मिता को लेकर यह भूमण्डलीय षडयंत्र है जो वैश्विक पूँजी से संचालित है और बाजार के एकदम माफिक है । हमारे भावी समाज की बहू–बेटियों से सेक्स–केन्द्रित कितने घिनौने प्रश्न पूछे जा सकते है । क्या हम इस भावी समय –समाज का सामना करने को तैयार है ।

वर्तमान समय – समाज मे निश्चय ही कुछ गड़बड़ है । संवेदना के स्तर पर काफी कुछ अनचाहा घटित हो रहा है । इसकी सही शुरूआत किस तरह हो चुकी है। यह हम असगर वजाहत की दोनों लघुकथाओं मे देख सकते है । ‘आग’ और ‘नाम’ दोनो लघुकथाएँ इस प्रक्रिया को बहुत संजीदगी से प्रस्तुत करती है ।असगर वजाहत सुगंध संप्रेषित कथाकार नही है । वह जीवन की उबड़–खाबड़ विश्वास प्रक्रिया पर गहरी नजर रखते है । वह एक अच्छे कथाकार है । उन्होने बहुत सी कहानियॉ और उपन्यास लिखे है । वे लघुकथाएँ क्यों लिखते है? यह एक सीधा–साधा प्रश्न है लेकिन इसके साथ ही यह एक कटु सत्ययुक्त प्रश्न भी है; क्योंकि असगर वजाहत इन दोनो लघुकथाओं मे जो तथ्य संप्रेषित करना चाहते हैं ,वह जिस खूबसूरती और तीव्रता मे व्यक्त हुआ है, यह चीज इसी विधा मे सम्पन्न हो सकती थी । संवेदनात्मक तीव्रता और खूबसूरत संप्रेषण के संदर्भ मे भुवनेश्वर की कहानी ‘भेडि़ए’ की स्मृति आती है । लेकिन किसानों और मजदूरों के संदर्भ मे हम जिस तरह से संवेदनहीन हो रहे है, उनकी अनिवार्य आवश्यकताओं को लेकर हम जिस तरह से बेपरवाह हो रहे है । उनके हकों को जिस कुटिलता से कुचला जा रहा है , वे भूख गरीबी से जिस तरह से हताशा में आत्महत्याएँ कर रहे है और ये घटनाएँ जिस तरह से एक खबर से ज्यादा अहमियत खोती जा रही है। ये भूख जिस तरह की आग को जन्म देगी कि उसे बुझाने के सारे प्रयास तुच्छ नजर आएँगें । इसकी एक झलक ‘आग’ लघुकथा मे प्रतीकात्मक रूप मे स्पष्ट महसूस की जा सकती है । इसके कारण असगर की दूसरी लघुकथा ‘नाम’ मे खोजे जा सकते है । सामाजिक बदलाव की इस प्रक्रिया मे हम किस तरह संवेदनहीन होते चले जाएँगे कि बंदर और इंसान की स्थानापन्नता ही हमें हॅसाएगीं तो ऐसे भविष्य के इंसान का ईश्वर ही मालिक है ।

वर्तमान समय- समाज के राजनीतिक,सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक मोर्चे पर हम कहॉ विफल हो रहे है । ये चारो लघुकथाएँ बहुत शिद्दत से संप्रेषित करती हैं । किसी भी रचनात्मक विघा के लिए ये जरूरी तत्व है ।और लघुकथा विधा उक्त लघुकथा के संदर्भ मे सचेत कही जा सकती है ।

आग
-असगर वज़ाहत

उस आदमी का घर जल रहा था । वह अपने परिवार–सहित आग बुझाने का प्रयास कर रहा था, लेकिन आग प्रचंड थी, बुझने का नाम न लेती थी । ऐसा लगता था जैसे शताब्दियों से लगी आग है, या किसी तेल के कुएँ में माचिस लगा दी गई है या कोई ज्वालामुखी फट पड़ा है । आदमी ने अपनी पत्नी से कहा,‘‘ इस तरह की आग तो हमने कभी नहीं देखी थी !’’

पत्नी बोली,‘‘ हॉ, क्योंकि इस तरह की आग तो हमारे पेट में लगा करती है । हम उसे देख नहीं पाते थे ।’’
वे आग बुझाने की कोशिश कर रहे थे कि दो पढ़े–लिखे वहॉ आ पहुँचे। आदमी ने उनसे कहा,‘‘ भाई, हमारी मदद करों ।’’ दोनों ने आग देखी और डर गए। बोले,‘‘ देखो, हम बुद्धिजीवी हैं, लेखक हैं, पत्रकार हैं, हम तुम्हारी आग के बारे में जाकर लिखते हैं ।’’ वे दोनों चले गए ।

कुछ देर बाद वहॉ एक आदमी और आया । उससे भी इस आदमी ने आग बुझाने की बात कही । वह बोला,‘‘ ऐसी आग तो मैंने कभी नहीं देखी़ .......... इसको जानने और पता लगाने के लिए शोध करना पड़ेगा । मैं अपनी शोध–सामग्री लेकर आता हूँ, तब तक तुम यह आग न बुझने देना।’’ वह चला गया । आदमी और उसका परिवार फिर आग बुझाने में जुट गए । पर आग थी कि काबू में ही न आती थी ।

दोनों थक–हारकर बैठ गए। कुछ देर में वहॉ एक और आदमी आया। उससे आदमी ने मदद मॉगी। उस आदमी ने आग देखी। अंगारे देखे। वह बोला,‘‘ यह बताओ कि अंगारों का तुम क्या करोगे ?’’

वह आदमी चकित था,क्या बोलता !
आगंतुक बोला, ‘‘ मैं अंगारे ले जाऊँगा।’’
‘‘ केवल अंगारे ले जाओंगें? ’’
‘‘ हॉ, ठंडे होने के बाद ....... जब वे कोयला बन जाएँगे.........’’
कुछ देर बाद आग बुझाने वाले आ गए। उन्होंने आग का जो विकराल रूप् देखा तो छक्के छूट गए। उनके पास जो पानी था वह आग क्या बुझाता ! उसके डालने से तो आग और भड़क जाती । दमकलवाले चिंता में डूब गए। उनमें से एक बोला,‘‘ यह आग इसी तरह लगी रहे, इसी में देश की भलाई है । ’’

‘‘ क्यों?’’ आदमी ने पूछा ।
‘‘ इसलिए कि इसको बुझाने के लिए पूरे देश में जितना पानी है, उसका आधा चाहिए होगा ।’’

 

‘‘ पर मेरा क्या होगा ?’’
‘‘ देखों, तुम्हारा नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकार्ड मे आ जाएगा। तुम्हारे साथ देश नाम भी .......समझे? ’’

यह बातचीत हो ही रही थी कि विशेषज्ञों का दल वहॉ आ पहुँचा। वे आग देखकर बोले, ‘‘ इतनी विराट आग....... इसका तो निर्यात हो सकता है .....विदेशी मुद्रा आ सकती है........यह आग खाड़ी के देशों में भेजी जा सकती है ...........’’

दूसरे विशेषज्ञ ने कहा,‘‘ यह आग तो पूरे देश के लिए सस्ता ऊर्जा–स्रोत बन सकती है । ’’
‘‘ ऊर्जा की बहुत कमी है देश में ।’’
‘‘ इस ऊर्जा से तो बिना पैट्रोल के गाडि्याँ चल सकती हैं । यह ऊर्जा देश के विकास में महान योगदान दे सकती है । ’’

‘‘ इस ऊर्जा से देश में ‘एकता’ भी स्थापित हो सकती है । इसे और फैला दो ....’’

‘‘ फैलाओ!’’ वह आदमी चिल्लाया ।
‘‘ हॉ, बड़े–बड़े पंखे लगाओ.......... तेल डालों ताकि ये आग फैले।’’
‘‘ पर मेरा क्या होगा?’’ वह आदमी बोला ।
‘‘ तुम्हारा फायदा ही फायदा है ......... तुम्हारा नाम तो देश के निर्माण के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में लिखा जाएगा..... तुम नायक हो । ’’
कुछ दिनों बाद देखा गया कि वह आदमी जिसके घर में उसके पेट जैसी भयानक आग लगी थी, आग को भड़का रहा है, हवा दे रहा है ।

कसौटी: सुकेश साहनी

खुशी के मारे उसके पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। साइबर कैफे से बाहर आते ही उसने घर का नम्बर मिलाया।
‘‘पापा!...’’ उससे बोला नहीं गया।
‘‘हमारी बेटी ने किला फतेह कर लिया! है न?’’
‘‘हाँ, पापा!’’ वह चहकी, ‘‘मैंने मुख्य परीक्षा पास कर ली है। मेरिट में दूसरे नम्बर पर हूँ !’’
‘‘शाबाश! मुझे पता था... हमारी बेटी है ही लाखों में एक!’’
‘‘पापा, पंद्रह मिनट के ब्रेक के बाद एक माइनर पर्सनॉलिटी टेस्ट और होना है। उसके फौरन बाद हमें अपाइंटमेंट लेटर दे दिए जाएंगे। मम्मी को फोन देना...’’
‘‘इस टेस्ट में भी हमारी बेटी अव्वल रहेगी। तुम्हारी मम्मी सब्जी लेने गई है। आते ही बात कराता हूँ। आल द बेस्ट, बेटा!’’
उसकी आँखें भर आईं। पापा की छोटी–सी नौकरी थी, लेकिन उन्होंने बैंक से कर्जा लेकर अपनी दोनों बेटियों को उच्च शिक्षा दिलवाई थी। मम्मी–पापा की आँखों में तैरते सपनों को हकीकत में बदलने का अवसर आ गया था। बहुराष्ट्रीय कम्पनी में एग्ज़ीक्यूटिव आफिसर के लिए उसने आवेदन किया था। आज आनलाइन परीक्षा उसने मेरिट में पोजीशन के साथ पास कर ली थी।
दूसरे टेस्ट का समय हो रहा था। उसने कैफे में प्रवेश किया। कम्प्यूटर में रजिस्ट्रेशन नम्बर फीड करते ही जो पेज खुला, उसमें सबसे ऊपर नीले रंग में लिखा था–‘‘वेलकम–मिस सुनन्दा!’’ नीचे प्रश्न दिए हुए थे, जिनके आगे अंकित ‘यस’ अथवा ‘नो’ को उसे ‘टिक’ करना था...
विवाहित हैं? इससे पहले कहीं नौकरी की है? बॉस के साथ एक सप्ताह से अधिक घर से बाहर रही हैं? बॉस के मित्रों को ‘ड्रिंक’ सर्व किया है? एक से अधिक मेल फ़्रेंड्स के साथ डेटिंग पर गई हैं? किसी सीनियर फ़्रेंड के साथ अपना बैडरूम शेअर किया है? पब्लिक प्लेस में अपने फ़्रेंड को ‘किस’ किया है? नेट स‍र्फ़िंग करती हैं? पार्न साइट्स देखती हैं? चैटिंग करती हैं? एडल्ट हॉट रूम्स में जाती हैं? साइबर फ़्रेंडस के साथ अपनी सीक्रेट फाइल्स शेअर करती हैं? चैटिंग के दौरान किसी फ़्रेंड के कहने पर खुद को वेब कैमरे के सामने एक्सपोज़ किया है?.....
सवालों के जवाब देते हुए उसके कान गर्म हो गए और चेहरा तमतमाने लगा। कैसे ऊटपटांग और वाहियात सवाल पूछ रहे हैं? अगले ही क्षण उसने खुद को समझाया–बहुराष्ट्रीय कम्पनी है, विश्व के सभी देशों की सभ्यता एवं संस्कृति को ध्यान में रखकर क्वेश्चन फ़्रेम किए गए होंगे।
सभी प्रश्नों के जवाब ‘टिक’ कर उसने पेज को रिजल्ट के लिए ‘सबमिट’ कर दिया। कुछ ही क्षणों बाद स्क्रीन पर रिजल्ट देखकर उसके पैरों के नीचे से जमीन निकल गई। सारी खुशी काफूर हो गई। ऐसा कैसे हो सकता है? पिछले पेज पर जाकर उसने सभी जवाब चेक किए, फिर ‘सबमिट’ किया। स्क्रीन पर लाल रंग में चमक रहे बड़े–बड़े शब्द उसे मुँह चिढ़ा रहे थे– ‘सॉरी सुनन्दा! यू हैव नॉट क्वालिफाइड। यू आर नाइंटी फाइव परसेंट प्युअर (pure)। वी रिक्वाअर एटलीस्ट फोर्टी परसेंट नॉटी (naughty )।’

 

 
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