1-महत्वाकांक्षा
खलील जिब्रान
तीन आदमी शराबखाने की मेज पर मिले। एक जुलाहा, दूसरा बढ़ई और तीसरा हलवाहा। जुलाहा कहने लगा, ‘‘आज मैंने महीन कपड़े का कफन दो सोने के सिक्कों में बेचा। चलो आज जितनी चाहों शराब पी लो।’’
बढ़ई ने कहा, ‘‘मैंने आज अपना सबसे महँगा ताबूत बेचा । शराब के साथ भुना हुआ माँस भी खाएँगे।’’
फिर हलवाहा बोला, ‘‘मैंने तो आज कब्र खोदी, पर मेरे मालिक ने दुगुनी मजदूरी दी। आज हम शहदवाले केक भी खाएँगे।’’ और उस शाम शराब खाना बहुत व्यस्त रहा, क्योंकि वे तीनों बार–बार शराब,माँस और केक माँगते रहे। वे बहुत खुश थे। वहाँ का मालिक पत्नी की ओर देखकर मुस्कुराता रहा। उसके ग्राहक खूब खुले दिल से खर्चा कर रहे थे। आधी रात के बाद वे तीनों बाहर आए। उसकी पत्नी की ओर देखकर मुस्कुराता रहा। उसके ग्राहक खूब खुले दिल से खर्चा कर रहे थे। आधी रात के बाद वे तीनों बाहर आए। सड़क पर गाते–चिल्लाते हुए जा रहे थे। शराबखाने का स्वामी और उसकी पत्नी दरवाजे से उनको देखते रहे, फिर पत्नी ने कहा, ‘‘आह ! ये भद्र लोग कितने खुश मिजाज और खुले दिल वाले है? काश, ये रोज ऐसा भाग्य ला सकते, तो हम अपने बेटे को शराबखाने का मेहनत वाला काम न करवाते। उसे शिक्षित करके पादरी बना देते।’’
2-ठंडी रजाई
सुकेश साहनी
‘‘कौन था?’’
उसने अँगीठी की ओर हाथ फैलाकर तापते हुए पूछा। ‘‘वही सामने वालों के यहाँ से।’’ पत्नी ने कुढ़कर सुशीला की नकल उतारी, ‘‘बहन रजाई दे दो इनके दोस्त आए हैं।’’ फिर रजाई ओढ़ते हुए बड़बड़ायी, ‘‘इन्हें रोज–रोज रजाई जैसी चीज माँगते शर्म नहीं आती। मैंने तो साफ मना कर दिया, कह दिया–‘‘आज हमारे यहाँ भी कोई आने वाला है।’’
‘‘ठीक किया ।’’ वह भी रजाई में दुबकते हुए बोला, ‘‘इन लोगों का यही इलाज है।’’ ‘‘बहुत ठंड है।’’ वह बड़बड़ाया।
‘‘मेरे अपने हाथ–पैर सुन्न हुए जा रहे हैं।’’ पत्नी ने अपनी चारपाई को अँगीठी के और नजदीक घसीटते हुए कहा।
‘‘रजाई तो जैसे बिल्कुल बर्फ़ हो रही है, नींद आएगी तो कैसे?’’ वह करवट बदलते हुए बोला।
नींद का तो कहीं पता ही नहीं है। पत्नी ने कहा, ‘‘इस ठंड में मरी रजाई भी बेअसर हो गई है।’’
जब काफी देर तक नींद नहीं आई तो वे दोनों उठकर बैठ गए। और अँगीठी पर हाथ तापने लगे।
‘‘एक बात कहूँ, बुरा तो नहीं मानोगी, ‘‘पति ने कहा,
‘‘कैसी बात करते हो?’’
‘‘आज जबरदस्त ठंड है, सामने वाले के यहाँ मेहमान भी आए हैं। ऐसे में उन्हें रजाई के बगैर काफी परेशानी हो रही होगी।’’
‘‘हाँ तो?’’ उसने आशाभरी नजरों से पति को ओर देखा।
‘‘मैं सोच रहा था....मेरा...मतलब यह था कि....हमारे यहाँ एक रजाई फालतू ही तो पड़ी है।’’
‘‘तुम ने तो मेरे मन की बात कह दी, एक दिन के इस्तेमाल से रजाई घिस थोड़े ही जाएगी, वह उछल कर खड़ी हो गई,
‘मैं अभी सुशीला को रजाई दे आती हूँ।’’
वह सुशीला को रजाई दे कर लौटी तो उसने हैरानीसे देखा, वह उसी ठंडी रजाई में घोड़े बेचकर सो रहा था। वह भी जमहाइयाँ लेती हुई बिस्तर में घुस गई। उसे सुखद आश्चर्य हुआ, रजाई काफी गर्म थी।
1.खलील जिब्रान की लघुकथा,‘महत्वकांक्षा’ मुझे बहुत अच्छी लगती हैं। एक जुलाहा जिसने, महीन कपड़े का कफन दो सोने के सिक्कों में बेचा, एक बढ़ई, जिसने अपने हाथ का बनाया ताबूत बहुत अच्छे दामों में बेचा, और एक हलवाहा, जिसे एक कब्र खोदने पर मालिक ने दोगुनी मजदूरी दी, एक शराबखाने में मिले। यहाँ उन्होंने भरपेट शराब, भुना माँस और शहदवाले केक का सेवन कर, इस खुशी के हर पल का आनन्द उठाया। उनकी तरह शराबखाने की मालकिन भी भविष्यहीनता की शिकार है, उसे भी अहसास है कि ऐसा भाग्यशाली दिन रोज नहीं, वरन् कभी–कभी आता है । वह इस अभाव के बोझ तले दबकर, भरपेट शराब, माँस और केक का सेवन न कर के, अपने टूटे सपने को याद करती है कि काश ! ऐसा भाग्यशाली दिन रोज होता और वह अपने बेटे को पढ़ा–लिखाकर पादरी का सम्मानित जीवन दे पाती, उसे शराबखाने में खटना नहीं पड़ता।
यह लघुकथा, मानवीय कमजोरियों, अभावों और अधूरे सपनों की पड़ताल करती है, व निम्न तथा मध्यम वर्ग की समग्र व्यथा कथा है।
2.श्री सुकेश साहनी की लघुकथा ‘ठंडी रजाई है’ मुझे बहुत पसंद है। मनुष्य मूल रूप से स्वार्थी है, परन्तु उसी दिलोदिमाग में परोपकार की भावना का निवास भी है। पड़ोसी सुशीला के रजाई माँगने पर, लेखक की पत्नी, उसका मजाक उड़ाती है। लेखक भी ऐसे लोगों का यही इलाज है, कहकर अपनी सहमति प्रकट करता है। अत्यधिक ठंड के कारण, उन दोनों पति–पत्नी को नींद नहीं आ रही थी। उस जानलेवा ठंड में, उन्होंने अपने सामने वाले पड़ोसी की परेशानी को, इस हद तक महसूस किया, कि उन्हें अपनी रजाई ठंडी लगने लगी। एक फालतू पड़ी रजाई ने इस अपराध बोध को और तीव्र कर दिया। पति के इशारा भर करने पर ही, पत्नी उत्साह से भर कर उछल कर खड़ी हो गई। यहाँ तक कि उसने यह स्वीकार करने में पल भर की देर नहीं कि कि एक रजाई फालतू पड़ी है, एक दिन के इस्तेमाल से घिस नहीं जाएगी। पड़ोसी की सहायता करने मात्र से, उन्ही पति–पत्नी को अपनी रजाई गर्म महसूस होने लगी और वह आराम से सो गए।
लघुकथा स्वार्थ और परोपकार का भावना का एक द्वन्द्व प्रस्तुत करती है, जिसमें अन्तिम जीत परोपकार की होती है। इस लघुकथा के माध्यम से लेखक, मानवीय व्यवहार व चिन्तन की बारीकियाँ, उतार -चढ़ाव का लेखाजोखा प्रस्तुत करने में सफल रहा ही है, अपितु उसी यह लघुकथा, समाज को एक कल्याणकारी दिशा भी प्रदान करती है। लघुकथा में कथ्य की सादगी और सहजता तो है ही साथ ही, हमारे घर के स्थान पर ‘हमारे यहाँ’, ‘सामने वाले के यहाँ,’ प्रयोग के स्थान पर ‘इस्तेमाल’ शब्द का प्रयोग, शिल्पगत रूप से उसे सहज, स्वाभाविक व प्रभावशाली बनाता है।