डा0 कमल चोपड़ा की एक विशिष्ट लघुकथा है–शान्ति–शान्ति’। ‘शान्ति–शान्ति’ लघुकथा ने अपनी बुनावट, कथ्य और शिल्प के माध्यम से मौजूद राजनैतिक निसंगतियों –धार्मिकता के नाम पर फैल रहे उन्माद और आँखों पर पट्टी बँधे उन एकतरफा विवेक के दुश्मनों की संकीर्ण सोच को श्वेत कबूतर के माध्यम से जिस प्रकार व्याख्याचित किया उनकी विरल प्रतिमा इसकी परिचायक है।
श्वेत रंग–यानी शान्ति का संदेश जब कुत्सित और स्वार्थी इरादों से घिरी राजनीति के हाथों में पहुँच चुका हो तो उसे फैलाने वालों के लंबे हाथों–जनमानस के बीच उत्तेजना और विंध्वंस ही तो बढ़ेंगे!
आग की तरफ फैल रही घिनौनी राजनीति श्वेत रंग की महत्ता और संदेश क्यों पहचानेगी? स्वार्थपरक राजनीति–प्रवृत्ति प्रदत्त संकेतों–प्रतीकों और सम्पदा तक को मारकाट और हिंसा की भेंट चढ़ा देने वाले बन जाते हैं।
‘शान्ति शान्ति– लघुकथा अपने सशक्त कथ्य के सहारे एक ओर जहर उगलने वालों का पर्दाफाश कर रही है तो दूसरी ओर बच्चे के माध्यम से यह सत्यता स्पष्ट करने में सफल हो रही है। कि निश्छल–अबोध मानस सदा विवेकी–सद्भावनापूर्ण एवं सौहार्द का प्रतीक होता है।
यदि बच्चे के अन्त : स्तल से निकली संवेदनाओं की झंकार हम सुनें ,तो पाएँगे कि चारों ओर फैल रही विसंगतियों के लिए जिम्मेदार हमारा मानस–शर्म से घिर जाएगा।
दूसरी ओर अनाचार को हटाने की संकल्प यात्रा के बीच आ रहे संघर्षों को एक नई दिशा देने में भी कमल चोपड़ा सफल हो रहे हैं।
‘‘देखो सफेद कबूतर। वाह! कितना सफेद और सुन्दर। पढ़ना भूलकर वे लोग उल्लसित हो उठे। मुझे लगा मेरी यात्रा अकारण नहीं गई है। लो–मेरे शान्ति प्रिय मित्रो! जान लो कि अहिंसा और शान्ति का संदेश देना कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं’’........(‘शान्ति शान्ति’ लघुकथा से)
निश्चित रूप से कहना चाहूँगी कि जो पक्तियाँ मेरे दिल को छू जाती है, उनमें निहित मर्म की तलाश ही मेरी पसंद बनती है। ये अन्वेषी यात्रा कहीं न कहीं इस लघुकथा को पाकर भी आश्वस्त हुई है कि अंधेरे और असहजता कितनी भी गहरी हो, उजली किरणें उनमें समाहित होती है।
आज हमें ऐसी ही अर्थपूर्ण शब्दशक्ति की दरकार है।
1-शान्ति.शान्ति....
कमल चोपड़ा
उसके नुचे हुए पंख, घायल देह और उखड़ी हुई साँसें देखकर उसके साथी दहल उठे।
‘‘हे महाश्वेत कपोत श्रेष्ठ! कहें कि आपकी यह दशा क्यों और कैसे हुई? आप तो शन्ति के संदेश फैलाने गए थे।
कराहते हुए कपोत ने कहा,’’ साथियों, हे पवनप्रिय मित्रों! मुझे अपनी यात्रा बीच में ही स्िागित कर वापिस आना पड़ा। प्रेम, शान्ति और अहिंसा का संदेश देने गया था मैं तो, उलटा मेरी वजह से तो.......हुआ यह कि शान्ति संदेश देने के लिए मैंने इस देश के छोटे से जनपद को चुना और एक मकान की मुंडेर पर जा बैठा। मकान वहाँ के मेन बाजार के चौराहे पर था। बाजार चहल–पहल और रोशनियों से भरा हुआ था। अचानक एक गोली आकर मुझे लगी। गोली लगने के हल्के धमाके ने लोगों को भी थर्रा दिया। लोगों ने मुझे घायल होकर चौराहे पर गिरते हुए देखा। एक निशान्ची को लोगों ने धर दबोचा जिसने यह गोली चलाई थी। अपनी सफाई में बंदूकची झुँझला रहा था, उसने कहा मेरा क्या कसूर है? मुझे तो विघायक जी ने भेजा है! अभी कुछ देर पहले विधायक जी यहाँ से गुजरे थे। उनकी नजर इस कबूतर पर पड़ गई थी। वे तुरन्त घर पहुँचे और मुझे इसे मार कर आने का हुक्म दिया! उन्होंने यह भी कहा कि इसे असली गोली नहीं पत्थर की गोली से मारना! बारूद की गोली से यह खाने लायक नहीं बचेगा।
सुना है कबूतर का मांस कमजोरी और लकवे में बहुत फायदेमंद होता है। जंगली ना सही सफेद ही सही, कसूर तो मुझे यहाँ भेजनेवाले का है।
आपे से बाहर हुए जा रहे थे लोग–इस निरीह निर्दोष बेजुबान पक्षी को तुमने मारा है। निर्दयी हिंसक हत्यारे तुम हो.....। संयोग से बंदूकची दूसरे धर्म का था। लोग बँट गए। कुछ लोगों ने उसे पीटना शुरू कर दिया। बात बढ़ती चली गई और बंदूकची के मजहब के लोगों की दुकानें लूटी जाने लगीं। घर जलाए जाने लगे और मारकाट होने लगी। वे लोग जो स्नेह, शान्ति और अहिंसा के प्रेमी थे और जो एक पक्षी पर होती हुई हिंसा को बर्दाश्त नहीं कर पा रहे थे वे अब स्वयं हिंसक होकर मारकाट मचा रहे थे। बात धर्म की आती है तो जाने क्यों लोग अपना विवके खो बैठते हैं......? पीढ़ियों से हम अहिंसा का संदेह फैला रहे हैं लेकिन आज काम....? ताकि कोई हिंसा न करे इसलिए लोग खुद ही हिंसा करने लगते हैं!!
वहाँ सन्नाटे और खामोशी में डूबी सभा को और भी दहला गयां काफी देर आँखें बन्द रखने के बाद सफेद कबूतर ने फिर कहा, ‘‘नहीं, मेरे शांतिप्रिय मित्रो! मैं जब चौराहे पर घायल अवस्था में पड़ा था तो एक बच्चा मुझे उठाकर अपनी छत पर ले आया। उसने मुझे दवा–पानी दिया। जख्मों पर फाहा लगाया। दूर से आती गोलियों की आवाजों से मेरी रूह कांप उठती। मुझे डरकर फड़फड़ाता हुआ देखकर बच्चा मुँडेर पर जाता और चीखकर कहता–बन्द करो ये लड़ाई, इधर एक सफेद कबूतर डर रहा है। शाम तक ठीक होकर मैं वापिस आने के लिए उड़ा तो बच्चे की आँखों में पवित्र चमक थी। उसने हाथ हिलाकर मुझे विदा किया फिर वैसा ही हुआ जैसाकि पहले भी होता था। रास्े में एक जगह कुछ लोग लड़–झगड़ रहे थे। मेरा मन भारी हो आया। तभी एक आदमी की नजर मुझ पर पड़ी। वह चहका–वो देखो सफेद कबूतर! वह कितना सफेद और सुन्दर! लड़ना भूलकर वे लोग उल्लसित हो उठे। मुझे लगा, मेरी यात्रा अकारण नहीं गई है। तो मेरे शांतिप्रिय मित्रो, जान लो, कि अहिंसा और शांति का संदेश देना कठिन अवश्य है पर असंभव नहीं।’’
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