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मेरी पसंद - सुभाष नीरव
सुभाष नीरव


हिंदी के अतिरिक्त भारतीय भाषाओं यथा- पंजाबी, उर्दू, मराठी, गुजराती, बंगला, तेलगू तथा विश्व की अनेक भाषाओं में लिखी गई नई-पुरानी कई लघुकथाएं मुझे पसंद हैं। पंजाबी लघुकथा लेखन के शुरुआती दौर से मेरा जुड़ाव रहा है और पंजाबी की पुरानी पीढ़ी के लेखकों से लेकर बिलकुल नई पीढ़ी के लेखकों की लघुकथाओं से मेरा वास्ता रहा है। मैंने बहुत सी अपनी पसन्द की चुनिंदा पंजाबी लघुकथाओं का हिंदी में अनुवाद भी किया है। पंजाबी की कुछ श्रेष्ठ लघुकथाएं हैं जो मेरे जेहन से छूटती नहीं हैं। जब जब मैं उन्हें पढ़ता हूँ, वे मुझे उसी तरह नई और ताज़ा लगती हैं जैसा कि पहली बार पढ़ते समय लगी थीं। उनमें से ही एक लघुकथा (स्वर्गीय) श्रीमती शरन मक्कड़ की है- ‘रोबोट’। इसे मैंने अपनी पुस्तक “पंजाबी की चर्चित लघुकथाएं’(वर्ष 1997) में भी शरन मक्कड़ की चुनिंदा दस लघुकथाओं में भी शामिल किया था।
‘रोबोट’ में दो मित्र हैं। एक वैज्ञानिक है और दूसरा इतिहास का अध्यापक। इन दो मित्रों के आपसी वार्तालाप से जो ‘सत्य’ उभरकर सामने आता है, वह शाश्वत और कालातीत हैं। लेखिका ने जिस रचना कौशल से अपनी लघुकथा में इस सत्य का उद्-घाटन किया है, वह देखते ही बनता है। लघुकथा के अन्त में इतिहास अध्यापक अपने वैज्ञानिक मित्र से कहता है – “ तुमने तो एक गधे को नचाया है। क्या तुम मुझे यह बता सकते हो कि हिटलर के हाथ में कौन-सा रिमोट कंट्रोल था जिससे उसने एक करोड़ बेगुनाह यहूदियों को मरवा दिया था !” अपने चरमोत्कर्ष पर लघुकथा मात्र इस वाक्य से एक ऊँचाई ग्रहण कर जाती है। इस सत्य को हम आज के सन्दर्भ में देखें तो कितना सही और सटीक प्रतीत होता है। आज के नेताओं, राजनैतिक पार्टियों, तथाकथित सन्तों-महात्माओं, धर्माचार्यों ने आम जनता को रोबोट बनाकर और अपने-अपने हाथों में रिमोट कंट्रोल लेकर जिस प्रकार उसका शोषण और दोहन किया है और कर रहे हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। यह लघुकथा वर्तमान समय में अपने सन्देश में यहीं तक सीमित नहीं रहती है, बल्कि विश्व की उन महाशक्तियों की ओर भी संकेत करती है जो अपने हाथ में रिमोट कंट्रोल लिए अपने से कमजोर देशों को अपनी मनमर्ज़ी से नचाते रह्ते हैं।

कम शब्दों और सधी-कसी भाषा में अपने उद्देश्य और मंतव्य की ओर अग्रसर होती यह लघुकथा अन्त में जिस सत्य का विस्फोट करती है, वह हमारी सोच और ज़ेहन की खिड़कियों को हिला जाता है। और यही इस लघुकथा को विशिष्ट भी बनाता है।
एक श्रेष्ठ लघुकथा में जिन आवश्यक तत्वों की दरकार आज की जाती है– मसलन वह आकार में बड़ी न हो, कम पात्र हों, समय के एक ही कालखंड को समाहित किए हो, अनावश्यक डिटेल्स न हों, शीर्षक रचना को पुष्ट और पुख्ता करता हो, उसकी गति अपने प्रारंभ-बिन्दु से अन्तिम बिन्दु(चरम बिन्दु) की ओर हो, विषय को लेकर किसी प्रकार का उलझाव न हों, और अपने चरमोत्कर्ष पर पहुंच कर अपनी मारक और असरदार शक्ति का प्रदर्शन करे, वे सभी तत्व मुझे इस लघुकथा में क्रमश: दिखाई देते हैं। यही कारण है कि यह लघुकथा मेरी प्रिय लघुकथाओं में से एक है।

रोबोट
शरन मक्कड़

दो मित्र आपस में बातें कर रहे थे। एक वैज्ञानिक था, दूसरा इतिहास का अध्यापक। वैज्ञानिक कह रहा था, “देखो, साइंस ने कितनी तरक्की कर ली है। जानवर के दिमाग में यंत्र फिट करके, उसका रिमोट हाथ में लेकर जैसे चाहो जानवर को नचाया जा सकता है।“
अपनी बात को सिद्ध करने के लिए वह एक गधा लेकर आया। रिमोट कंट्रोल हाथ में लेकर वह जैसे-जैसे आदेश देता, गधा वैसा-वैसा ही करता। वह कहता, “पूंछ हिला।“ गधा पूंछ हिलाने लगता। वह कहता, “सिर।“ गधा सिर हिलाने लगता। इसी प्रकार, वह दुलत्तियाँ मारता, ‘ढेंचू-ढेंचू’ करता। लोटपोट हो जाता। जिस तरह का उसे हुक्म मिलता, गधा उसी तरह उसकी तामील करता, वैज्ञानिक अपनी इस उपलब्धि पर बहुत खुश था।
वैज्ञानिक का मित्र जो बहुत देर से उसकी बातें सुन रहा था, गधे के करतब देख रहा था, चुप था। उसके मुँह से प्रशंसा का एक भी शब्द न सुनकर वैज्ञानिक को गुस्सा आ रहा था कि उसका मित्र इतनी बड़ी उपलब्धि पर भी खामोश था। आख़िर उसने झुंझला कर चुप्पी का कारण पूछ ही लिया। इस पर इतिहास का अध्यापक बोला, “भला इसमें ऐसी कौन सी बड़ी बात है? हज़ारों सालों से आदमी को मशीन बनाया जाता रहा है।“
वैज्ञानिक अपने मित्र की बात सुनकर हैरान था। इतिहास अध्यापक ने कहा, “आओ, मैं तुम्हें एक झलक दिखाता हूँ।“
वे दोनों सड़क पर चलने लगे। अध्यापक ने देखा, एक फ़ौजी अंडों की ट्रे उठाये जा रहा था। उसने उसके पीछे जाकर एकाएक ज़ोर से ‘अटेंशन” कहा। ‘अटेंशन” शब्द सुनते ही फ़ौजी के दिमाग में भरी मशीन घूम गई जो न जाने कितने साल उसके दिमाग में घूमती रही थी। वह भूल गया कि अब वह फ़ौज में नहीं, सड़क पर अंडे की ट्रे ले जा रहा था। ‘अटेंशन’ सुनते ही वह सावधान की मुद्रा में आ गया और अंडे हाथों से गिरकर टूट गए।
इतिहास का अध्यापक ठंडी साँस भरकर बोला, “यह है आदमी के दिमाग में फिट किया गया यंत्र। इसी तरह धर्म का, सियासत का, परंपरा का, सत्ता का रिमोट कंट्रोल हाथ में लेकर आदमी दूसरे आदमियों को रोबोट बना देता है।“ उसकी आँखों के सामने ज़ख्मी इतिहास के पन्ने फड़फड़ा रहे थे।
“तुमने तो एक गधे को नचाया है। क्या तुम मुझे बता सकते हो कि हिटलर के हाथ में कौन सा रिमोट कंट्रोल था जिससे उसने एक करोड़ बेगुनाह यहूदियों को मरवा दिया था !”
अब वैज्ञानिक चुप था।

 
 
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