विश्व साहित्य में लघुकथा लिखने की परंपरा प्रत्येक देश और भाषा में रही है और इसका अस्तित्व शताब्दियों से है। मुझे तो लघुकथा गागर में सागर भरने के समान प्रतीत होती है। इस में लेखक अपनी संवेदनाओं को सुंदर शब्दजाल में समेटकर पाठक के लिए परोसता है। लघुकथा आज के समय की एक खास ज़रूरत है ,जो अपनी सूक्ष्मता तथा लघुता लिये हुए लोगो के मन-मस्तिष्क पर छा रही है। लघुकथा, कहानी की निकटतम विधा है, इसका साररूप नहीं। इसका स्वरूप कहानी से छोटा अवश्य होता है ; लेकिन उसका प्रभाव अत्यधिक होता है।
लघुकथा का अपना स्वतंत्र अस्तित्व है ;लेकिन एक छोटा आकार। इसलिए एक लघुकथाकार जहाँ नपे -तुले शब्द- चयन को प्रमुख्य मानता है वहाँ भाषा की अभिव्यंजकता भी विशेष महत्व रखती है। मैं हाइकु लेखन से पहले जुड़ी और बाद में लघुकथा लेखन से। यहाँ मैं कहना चाहूँगी कि लघुकथा बिलकुल हाइकु जैसे है; इसमें थोड़ा कहा और ज्यादा अनकहा होता है । मगर जब ये अनकहा पाठक के हृदय को बहुत गहरे से छू जाता है। वही उस लघुकथा की शक्ति को प्रमाणित करता है। ऐसे ही जिन लघुकथाकारों की रचनाएँ मेरे अंतर्मन में छाई हुई है, उनमें श्याम सुन्दर अग्रवाल,सतीशराज पुष्करणा ,रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु', सुकेश साहनी, रमेश बतरा,सुभाषनीरव ,मुरलीधर वैष्णव,डॉ श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’,डॉसतीशदुबे ,आनन्द , सुदर्शनरत्नाकर , युगल, उर्मिलकुमारथपलियाल,डॉकमलचोपड़ा,कस्तूरी लाल तागरा , डॉपूरणसिंह , आदि प्रमुख हैं। इन्हीं में से मैं श्याम सुन्दर अग्रवाल तथा ,कस्तूरी लाल तागरा की लघुकथाओं पर बात करना चाहूँगी। इन दोनों लघुकथाकारों की लघुकथाएँ निरथर्क फैलाव न दिखाते हुए शिल्प तथा कथ्य की दृष्टि से उत्कृष्ट हैं।
श्याम सुंदर अग्रवाल की लघुकथा मरुस्थल के वासीमन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। एक ऐसा नेता जिसे भूख का एहसास तक नहीं कि भूख आखिर होती क्या है, अपने देश के लोगों को उपवास रखने का मशवरा देता है। ऐसे लोगभीहैं , जिन्हें दिन में एक बार भी रोटी कभी -कभी नसीब होती है। अन्न उगाने वाले ये लोग खुद अन्न से वंचित रह जाते हैं। इन नेता लोगों को वे अपना खुदा- अपना अन्नदाता मानते हैं। अपने खुदा को खुश करना वे अपना धर्म समझते हैं। इसीलिए जब नेता एक दिन के उपवास की बात करता है, तो वे दो दिन के उपवास के लिए तैयार हैं। उनका सब कुछ डकार लेने वाले इन नेता से वे मदद की आशा रखते हैं। भोले लोग ये नहीं जानते कि ऐसे नेताओं की वजह से हमारे देश की बहुतसारी जनता हर रोज़ रात को भूखी सोती है। अब तक के मिले सूत्रों के अनुसार हमारे देश के गोदामों में इतना अन्न मौजूद है कि अगले दस वर्ष तक काम आ सकता है। टनों के टन अन्न प्रति वर्ष गल -सड़ रहा है , बर्बाद हो रहा है , फैंका जा रहा है। देखो हमारे देश के नेताओं की नेतागिरी कि ये अन्न किसी भूखे की भूख नहीं मिटा सकता।
कस्तूरी लाल तागरा की लघुकथा 'पुरुष मन' में लेखक ने पुरुष तथा स्त्री मन की तुलना की है। खुद एक पुरुष लेखक होने के बावजूद भी लघुकथाकार ने स्त्री मन की अवस्था के साथ इंसाफ किया है। यह बात तो साफ़ जाहिर है कि इस लघुकथा के पात्र भारतीय समाज से सम्बन्ध रखते हैं ,किसी पश्मिमी सभ्यता से नहीं। तभी औरत की सहनशीलता तथा दरियादिली की बात हुई है। यही भारतीय नारी का वजूद है ,जो उसके घर -परिवार को बाँधे रखता है। मगर क्या हमारे पुरुष प्रधान समाज ने कभी औरत के इस गुण की प्रशंसा की है या कभी कद्र की है ? शायद नहीं। यही वजह है कि आज की भारतीय सभ्यता पिछले कुछ दशक के भारतीय समाज से भिन्न नजर आती है; जहाँ तलाक की संख्या प्रति वर्ष बढ़ रही है। पति के ज़ुल्मों का शिकार औरत कभी नहीं चाहेगी कि उसकी बेटी भी ऐसी ज़िंदगी जिए। इस लघुकथा में पति की तंगदिली उसे शक्की बना देती है। वह खुद असभ्यतापूर्ण हरकतें कर भी सकता है और फिर बिना किसी डर -खौफ के दूसरों को सुना भी सकता है, मगर अपनी पत्नी द्वार ऐसा करने की कल्पना भी उससे बर्दाश्त नहीं होती। वह उसकी वफादारी पर शक करता है। अगर एक पति अपनी पत्नी पर अधिनायककीतरह हक जताता है तो पत्नी भी वैसा ही चाहेगी। इसमें दिल का बड़ा या छोटा होना कोई मायने नहीं रखता। मगर एक घटिया सोच वाला व्यक्ति, किसी दूसरे को अच्छा, पवित्र तथा निर्मल मन का स्वामीहोने से भी इंकार कर देता है। ये उसका दुर्भाग्य है जिसे वह अपनी शान समझता है।
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गरीबों की एक बस्ती में लोगों को संबोधित करते हुए मंत्रीजी ने कहा, “इस साल देश में भयानक सूखा पड़ा है। देशवासियों को भूख से बचाने के लिए जरूरी है कि हम सप्ताह में कम से कम एक बार उपवास रखें।”
मंत्री के सुझाव से लोगों ने तालियों से स्वागत किया।
“हम सब तो हफते में दो दिन भी भूखे रहने के लिए तैयार हैं। भीड़ में सबसे आगे खड़े व्यक्ति ने कहा।
मंत्रीजी उसकी बात सुनकर बहुत प्रभावित हुए और बोले, “जिस देश में आप जैसे भक्त लोग हों, वह देश कभी भी भूखा नहीं मर सकता।
मंत्रीजी चलने लगे जैसे बस्ती के लोगों के चेहरे प्रश्नचिह्न बन गए हों।
उन्होंने बड़ी उत्सुकता के साथ कहा, ‘अगर आपको कोई शंका हो तो दूर कर लो।’
थोड़ी झिझक के साथ एक बुजुर्ग बोला, ‘साब! हमें बाकी पाँच दिन का राशन कहाँ से मिलेगा ?’
हो गया।
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